Sri Lanka Economic Crisis: श्रीलंका के संकट से भारत को हो रहा है ये लाभ, जानें वहां के कैसे हैं हालात
सिलीगुड़ी में एक चाय बगान के मालिक सतीश मित्रुक ने कहा है कि श्रीलंका 300 मिलियन किलो चाय तैयार करता है जिसका ज़्यादातर निर्यात अमेरिका, यूरोप के देशों में वो करता है. आर्थिक संकट की वजह से निर्यातक भारत की ओर अपना रुख करेंगे. पिछले साल भारत में 1,200 मिलियन किलो चाय का उत्पादन हुआ था.
श्रीलंका का संकट अभी खत्म नहीं हुआ है. यहां की नयी सरकार को सरकारी कर्मचारियों की सैलरी देने के लिए नये नोट छापने पर मजबूर होना पड़ रहा है. ब्लूमबर्ग ने इस बाबत रिपोर्ट प्रकाशित की है. रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका की विक्रमसिंघे सरकार के पास 14 लाख कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए फंड्स नहीं हैं. इस बीच श्रीलंका संकट से भारत को एक लाभ पहुंच रहा है. भारत के चाय उद्योग की उम्मीद श्रीलंका संकट से जागी है. चाय बगान के मालिकों की राय इस संबंध में आ रही है.
श्रीलंका में आर्थिक संकट से भारतीय चाय उद्योग में उम्मीदें जगीसिलीगुड़ी में एक चाय बगान के मालिक सतीश मित्रुक ने कहा है कि श्रीलंका 300 मिलियन किलो चाय तैयार करता है जिसका ज़्यादातर निर्यात अमेरिका, यूरोप के देशों में वो करता है. आर्थिक संकट की वजह से निर्यातक भारत की ओर अपना रुख करेंगे. पिछले साल भारत में 1,200 मिलियन किलो चाय का उत्पादन हुआ था. सिलीगुड़ी चाय नीलामी समिति के अध्यक्ष कमल कुमार तिवारी ने इस संबंध में कहा है कि श्रीलंका अपने उत्पादन का करीब 90% निर्यात करता था. वह जब निर्यात नहीं कर रहे हैं तो भारत के चाय उद्योग को इससे लाभ पहुंचेगा. खरीदार अच्छी गुणवत्ता वाली चाय लेने के लिए भारत पर निर्भर होंगे, जिसका भारत उत्पादन करता रहा है. यहां चर्चा कर दें कि श्रीलंका में आर्थिक संकट से भारतीय चाय उद्योग में उम्मीदें जगी हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल श्रीलंका की अर्थव्यवस्था बहुत जोखिम पूर्ण स्थिति में है और देश को जरूरी सामानों के लिए लगी कतारों में कमी लाने के लिए अगल दो-चार दिनों में 7.5 करोड़ डॉलर हासिल करना होगा. विक्रमसिंघे ने कहा है कि श्रीलंका की समुद्री सीमा में मौजूद पेट्रोल, कच्चे तेल, भट्ठी तेल की खेपों का भुगतान करने के लिए खुले बाजार से अमेरिकी डॉलर जुटाये जायेंगे. ब्लूमबर्ग ने कहा है कि 1948 में मिली आजादी के बाद से सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहे श्रीलंका में विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी से ईंधन, रसोई गैस एवं अन्य जरूरी चीजों के लिए लंबी मीलों लंबी कतारें लग गयी हैं.