भारत और नेपाल के बीच जारी विवाद के बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का बयान सामने आया है. सोमवार को डिजिटल रैली में राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत और नेपाल के बीच यदि कोई गलतफहमी है, तो हम उसे बातचीत के जरिये सुलझाएंगे. भारत-नेपाल के बीच असाधारण संबंध हैं, हमारे बीच रोटी-बेटी का रिश्ता है और दुनिया की कोई ताकत इसे तोड़ नहीं सकती है. आगे रक्षा मंत्री ने कहा कि लिपुलेख रोड बनने के कारण अगर कोई गलतफहमी नेपाल के लोगों में पैदा हुई है तो उसका समाधान हम लोग मिल बैठकर निकालेंगे. मैं पूरे विश्वास के साथ कहना चाहता हूं भारत में रहने वाले लोगों के मन में कभी भी नेपाल को लेकर किसी प्रकार की कटुता पैदा हो ही नहीं सकती है.
इधर, दोनों देशों के बीच जारी विवाद को लेकर विदेश मामलों के जानकारों का मानना है कि नेपाली घरेलू राजनीति में उथल-पुथल, उसकी बढ़ती आकांक्षाएं, चीन से मजबूत आर्थिक सहयोग के कारण बढ़ रही हठधर्मिता और इस पड़ोसी देश से बातचीत करने में भारतीय शिथिलता के चलते नेपाल ने दोनों देशों के बीच दशकों पुराने सीमा विवाद को नये स्तर पर पहुंचा दिया है.
Also Read: नेपाल की हिमाकत ! तनाव के बीच भारत-नेपाल बॉर्डर से पिलर गायब, भारत चौकस
उत्तर प्रदेश से सटी नेपाल सीमा से पिलर गायब होने की खबर आयी है. इस संबंध में सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के अधिकारियों ने गृह विभाग और लखीमपुर खीरी जिला मैजिस्ट्रेट को अवगत कराया है. एसएसबी की 39वीं बटालियन लखीमपुर खीरी में 62.9 किलोमीटर की भारत नेपाल सीमा की निगरानी में लगी हुई है. पिछले दिनों एसएसबी कमांडेंट मुन्ना सिंह ने डीएम शैलेंद्र सिंह को पत्र लि खा था जिसमें उन्होंने इस बात का उल्लेख किया था कि सीमा पर पिलर गायब हो गए हैं और अतिक्रमण बढ़ गया है.
Some misconception has risen in Nepal regarding this road. But I would like to say that as far as Nepal is concerned, we not only have social, geographical, historical or cultural relations with them but also a devotional relation. India can never forget this: Defence Minister https://t.co/9fEFYp7TPb
— ANI (@ANI) June 15, 2020
जानकारों का मानना है कि नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को नेपाली भू-भाग प्रदर्शित करने वाले एक नये नक्शे के संबंध में देश की संसद के निचले सदन से आमसहमति से मंजूरी लेने में सफल रही है. इस पर भारत को यह कहना पड़ा कि इस तरह का कृत्रिम क्षेत्र विस्तार का दावा स्वीकार्य नहीं है. नेपाली संसद में इस पर मतदान कराया जाना, दोनों देशों के बीच सात दशक पुराने सांस्कृतिक, राजनीतिक और व्यापारिक संबंधों के अनुरूप नहीं हैं. यह क्षेत्रीय महाशक्ति भारत से टकराव मोल लेने की नेपाल की तैयारियों को प्रदर्शित करता है और यह संकेत देता है कि उसे दोनों देशों के बीच पुराने संबंधों की परवाह नहीं है.