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India Pakistan War 1971: मुजीबुर्रहमान का हक छीन रहा था पाकिस्तान, भारत से खानी पड़ी करारी शिकस्त

India Pakistan War 1971: 26 मार्च, 1970 को अवामी लीग पर प्रतिबंध लगा दिया और शेख मुजीबुर्रहमान गिरफ्तार कर पाकिस्तान ले जाये गये. बगावत को कुचलने में लाखों निर्दोष लोगों की जान चली गयी. इस आक्रोश ने बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन का रूप लिया.

India Pakistan war 1971: शेख मुजीबुर्रहमान पूर्वी पाकिस्तान के बड़े नेता यूं ही थे. उनकी पूर्वी पाकिस्तान की अवाम पर जो पकड़ थी, उसमें सांस्कृतिक अस्मिता और भाषाई एकता की प्रवल भावना निहित थी, जिसे याह्या खान, जुल्फिकार अली भुट्टो और पाकिस्तान की सेना आंक नहीं सकी. इसी भूल में उनके नेत‍ृत्व वाली पार्टी को चुनाव में जीत के बाद भी पूर्वी पाकिस्तान की सत्ता सौंपने की बजाय दमन का उन्होंने रास्ता चुना और अंतत: मुंह की खानी पड़ी.

मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश के जनक हैं. उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ सशस्त्र संग्राम की अगुआई करते हुए बांग्लादेश को मुक्ति दिलायी. पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली संस्कृति का प्रभाव था और वह पाकिस्तान की तुलना में अधिक उदार था. पाकिस्तान सरकार ने इन तमाम बातों को नजरअंदाज कर पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर उर्दू भाषा तथा पश्चिमी पाकिस्तान की अन्य बातों को थोपने की लगातार कोशिश की.

पाक सरकार व सेना के पक्षपातपूर्ण रवैये व अत्याचार ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के भीतर पनप रहे विद्रोह को बेहद मजबूत कर दिया. 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद यह विद्रोह का खुल कर सामने आ गया. इस विद्रोह को अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर्रहमान का नेतृत्व मिला और देखते ही देखते पूर्वी पाकिस्तान में स्वायत्तता के लिए संग्राम शुरू हो गया.

1965 की जंग में भारत से करारी शिकस्त और पूर्वी पाकिस्तान के बिगड़ते हालात को आधार बनाकर पाक सेना के तत्कालीन कमांडर इन चीफ जनरल याह्या खान ने तत्कालीन सैन्य शासक अयूब खान को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया और खुद राष्ट्रपति बन गया. याह्या खान ने पूर्वी पाकिस्तान के विद्रोह पर काबू पाने के लिए नयी चाल चली और 28 नवंबर, 1969 को जल्द आम चुनाव करवाकर जनप्रतिनिधियों को सत्ता स्थानांत‍रित करने का वादा कर दिया. याह्या की सोच गलत साबित हुई और विद्रोह कम होने की जगह और मजबूत होता चला गया.

याह्या खान ने जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ मिलकर सियासी साजिश रची और दिसंबर 1970 में चुनाव कराने का ऐलान कर दिया. याह्या खान को पूरी उम्मीद थी कि आम चुनाव में अवामी पार्टी के शेख मुजीबुर्रहमान बहुमत हासिल नहीं कर सकेंगे. लेकिन नतीजे इसके उलट आये. अवामी लीग ने पाकिस्तान की 313 संसदीय सीटों में से 167 पर जीत हासिल कर ली. पूर्वी पाकिस्तान में शेख मुजीबुर रहमान की अवामी लीग को 169 में से 167 सीटें मिली थीं.

वहीं, जुल्फिकार अली भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी बमुश्किल 88 सीटों पर जीत हासिल कर सकी. पूर्वी पाकिस्तान में जश्न का माहौल था. सभी यह तय मान रहे थे कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर शेख मुजीबुर्रहमान की ताजपोशी होगी और पूर्वी पाकिस्तान को उसका हक मिलेगा. लेकिन, ऐसा हुआ नहीं. याह्या खान और भुट्टो की साजिश से नाराज शेख मुजीबुर्रहमान ने असहयोग का खुला एलान कर दिया.

26 मार्च, 1970 को अवामी लीग पर प्रतिबंध लगा दिया और शेख मुजीबुर्रहमान गिरफ्तार कर पाकिस्तान ले जाये गये. बगावत को कुचलने में लाखों निर्दोष लोगों की जान चली गयी. इस आक्रोश ने बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन का रूप लिया और भारत के सहयोग से पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के रूप में सामने आया.

Posted by: Pritish Sahay

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