नयी दिल्ली : भारत में नोवेल कोरोना वायरस संक्रमण के अधिकतर मामलों में इसका प्रकार दुनिया के अन्य हिस्सों में संक्रमण सरीखा ही है और यह एकरूपता दुनिया में कहीं भी विकसित टीके या दवा के प्रभाव के लिहाज से अच्छी है..
एक शीर्ष वैज्ञानिक ने यह बात कही है.सेलुलर और आणविक जीवविज्ञान केंद्र के निदेशक राकेश मिश्रा ने कहा कि कोरोना वायरस की विस्तृत जीन मैपिंग से भी संकेत मिलता है कि इसके और अधिक खतरनाक स्वरूप में बदलने की संभावना नहीं है.
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उक्त केंद्र ने कोरोना वायरस की वायरल जीनोम श्रृंखला के संग्रह पर 315 जीनोम जमा किये हैं और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध 1700 से अधिक वायरस श्रृंखलाओं का विश्लेषण किया है जिनके नमूने देशभर में लिये गये.मिश्रा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘वायरस का उत्परिवर्तन एक साल में 26 की दर से (हर 15 दिन में एक बार) हो रहा है जो दुनियाभर में देखी गयी दर के अनुरूप ही है और वायरस की स्थिरता की ओर संकेत करता है.
वायरस के मौजूदा प्रकार के किसी और खतरनाक स्वरूप में परिवर्तित होने की आशंका बहुत कम है।” उन्होंने कहा, ‘‘अब तक हमारे आंकड़ों में उत्परिवर्तनों के विश्लेषण से भी यही बात पता चलती है कि या तो वे खुद क्षय होने वाले हैं और इस तरह कमजोर वायरस बन जाते हैं.
इसलिए नये नमूनों की और जीनोम श्रृंखलाओं का अध्ययन वायरस के प्रकार और टीका विकास तथा उपचार में इसके प्रभाव को समझने में अहम भूमिका निभा सकता है।” वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के तहत हैदराबाद स्थित संस्थान सीसीएमबी द्वारा किये गये जीनोम श्रृंखला के विश्लेषण से सामने आया कि भारत में वायरस के दो प्रमुख प्रकार (क्लेड) हैं.
इनमें ए2ए क्लेड और ए3आई क्लेड हैं.मिश्रा के अनुसार ए2ए क्लेड दुनियाभर में सर्वाधिक व्याप्त प्रकार है.मिश्रा ने कहा, ‘‘भारत में व्याप्त वायरस के स्वरूप की यह एकरूपता अच्छी है क्योंकि दुनिया में कहीं भी प्रभावशाली दवा या टीका विकसित होता है तो यह हमारे देश में भी उतना ही असरदार होगा . ”
Posted By – Pankaj Kumar Pathak