महामारी में सबसे अधिक तनाव झेल रही है आधी आबादी, जानें महिलाओं को मेंटल स्ट्रेस से बचाने का क्या उपाय बता रहे हैं एक्सपर्ट

महिलाओं के लिए बीते एक साल से पूरा रूटीन बदल गया है. पहले महिलाएं बच्चों के स्कूल और पुरुषों को काम पर जाने के बाद अपने घर का काम करती थी, लेकिन कोरोना काल में उन्हें सबसे अधिक ध्यान अपने बच्चों पर देना पड़ रहा है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 10, 2021 8:22 AM
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नई दिल्ली : देश में कोरोना की दूसरी लहर अपने चरम पर है. 22 मार्च 2020 यानी कोरोना की चेन को तोड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से जनता कर्फ्यू के ऐलान के बाद से लेकर आज तक पूरा भारत छिटपुट तरीके से या फिर संपूर्ण लॉकडाउन का सामना करता आ रहा है. इन पाबंदियों और कोरोना के नए मामलों के बीच देश की एक भयावह तस्वीर भी उभरकर सामने आ रही है, जिस पर आम विशेषज्ञ, आम आदमी या फिर सरकार का ध्यान नहीं जा रहा है और वह महामारी में महिलाओं का सबसे अधिक तनाव में रहना है. रिसर्च बताते हैं कि इस महामारी में अगर सबसे अधिक तकलीफ किसी को उठाना पड़ रहा है, तो वह महिलाएं ही हैं. आइए, जानते हैं कि बेंगलुरु स्थित निमहांस के वरिष्ठ मनोचिकित्सक और पूर्व डीन डॉ संतोष कुमार चतुर्वेदी महिलाओं को मेंटल स्ट्रेस से उबारने का क्या उपाय बताते हैं?

महिलाओं में मेंटल स्ट्रेस बढ़ने के क्या हैं कारण

बेंगलुरु स्थिति निमहांस के वरिष्ठ मनोचिकित्सक और पूर्व डीन डॉ संतोष कुमार चतुर्वेदी कहते हैं कि महिलाओं के लिए बीते एक साल से पूरा रूटीन बदल गया है. पहले महिलाएं बच्चों के स्कूल और पुरुषों को काम पर जाने के बाद अपने घर का काम करती थी, लेकिन कोरोना काल में उन्हें सबसे अधिक ध्यान अपने बच्चों पर देना पड़ रहा है. बच्चे जब ऑनलाइन क्लास करते हैं, उस समय भी घर की महिलाओं को ही सचेत रहना पड़ता है. बच्चों को गाइड करना होता है. इससे उन पर एक नया दबाव आया है. इससे महिलाओं के अपने समय में कमी आई है. इस कारण महिलाएं न तो अपना निजी ध्यान रख पाती हैं और न ही घर का ख्याल पहले की तरह रख पाती हैं.

घर में काम करने के तौर-तरीकों में करना पड़ा बदला

डॉ चतुर्वेदी कहते हैं कि महामारी के दौरान महिलाओं को अपने घर में काम करने के तौर-तरीकों में बदलाव करना पड़ा है. यदि कोई महिला वर्किंग हैं, तो उनके लिए और भी अधिक प्रेसर है. उन्हें घर के काम, बच्चों के साथ के साथ अपने ऑफिस के काम भी करने पड़ रहे हैं. हर महिला को अपने कामों की प्राथमिकता तय करनी पड़ रही है. महामारी के पहले तक घर में ज्यादातर नौकरानियां काम किया करती थीं, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की वजह से उन्हें काम से छुट्टी दे दी गई है. इससे कहीं न कहीं आम महिलाओं का लो निजी समय था, उसमें कमी आई है. इसका असर यह हुआ है कि उनके मन-मस्तिष्क पर अधिक प्रेशर पड़ने लगा है.

महामारी को इतना लंबा चलने का नहीं था अनुमान

एक सवाल के जवाब में डॉ चतुर्वेदी कहते हैं कि बीते साल जब कोरोना को लेकर लॉकडाउन शुरू हुआ था, तब लोगों ने यह नहीं सोचा था कि यह इतना लंबा चलेगा. सबसे पहले कोरोना की पहली लहर आई, फिर दूसरी चल रही है और अब तीसरे लहर के आने की भी खबरें आने लगी हैं. संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए स्टे होम और स्टे सेफ का नारा जरूरी है, लेकिन अभी के समय में मैं कह सकता हूं कि घर में हर महिला का खान-पान बिगड़ गया है. उनको अपने लिए आराम करने का समय नहीं मिलता है. इसका कहीं न कहीं तो साइड इफैक्ट होगा ही. यदि उनका घर अपेक्षाकृत छोटा है, तो दिन में कुछ पल आराम करने का स्थान तक नहीं मिल पाता है. पहले बच्चों को स्कूल और पति को काम पर जाने के बाद वे टीवी आदि देखती थीं, पड़ोस की महिलाओं से बातें करती थी, लेकिन कोरोना में सबकुछ थम गया है. यह रूकावट स्ट्रेस तो पैदा करेगा ही.

घर में मनोरंजन और आराम का साधन होना बेहद जरूरी

डॉ चतुर्वेदी कहते हैं कि हर व्यक्ति के लिए मनोरंजन और आराम करने के लिए साधन तथा समय का होना बेहद जरूरी है. खासकर, महिलाओं के मनोरंजन का साधन तो बेहद जरूरी है. जब कोई भी मनोरंजन के साधनों के साथ होता है, तो उसका स्ट्रेस कम होता है. कोरोना ने लोगों से मनोरंजन छीना है, खासकर घर की महिलाओं से. ऐसे में परिवार के अन्य सदस्यों को महिलाओं को स्पेस देना होगा. उनके स्वास्थ्य का भी ख्याल रखना होगा. सभी को समझना होगा कि अभी कोरोना काल में सबसे अधिक स्ट्रेस घर की महिलाओं पर पड़ा है.

महिलाओं के कामों में हाथ बंटाएं

उन्होंने कहा कि यह सच है कि हम सभी इस समय में शायद सबसे कठिनतम दौर को देख रहे हैं. कोरोना महामारी ने हमारी दिनचर्या से लेकर सबकुछ बदल कर रख दिया है. कुछ ऐसी महिलाएं भी हैं, जिन्होंने इस कोरोनाकाल में अपनी जिम्मेदारियों का भरपूर निर्वहन किया है. हमारी जिम्मेदारी है कि सभी अपने घर की महिलाओं के मेंटल स्ट्रेस को कम करने में उनका साथ दें. घर के कामों में महिलाओं का हाथ बंटाएं और उन पर किसी बात या काम को लेकर दबाव न बनाएं. महिलाएं अगर स्वस्थ रहेंगी, तो पूरा संसार स्वस्थ रहेगा.

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Posted by : Vishwat Sen

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