Explainer : चंद्रयान-3 से चंद्रमा पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में भारत की महारत, जानें मिशन की रोचक बातें
वर्ष 2008 में पहले चंद्र मिशन के साथ शुरू हुई चंद्रयान शृंखला के बारे में एक अनोखी समानता उसका तमिलनाडु से संबंध है. तमिलनाडु में जन्मे मयिलसामी अन्नादुरई और एम वनिता के चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 का नेतृत्व करने के बाद अब विल्लुपुरम के मूल निवासी पी वीरमुथुवेल तीसरे मिशन की निगरानी कर रहे हैं.
नई दिल्ली : चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है. पृथ्वी के लोग अपने उपग्रह चंद्रमा के बारे में जानने के लिए वैसे ही उत्साहित रहते हैं, जैसे कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी के घर की बात जानना चाहता है. चंद्रमा की सतह की जानकारी एकत्र करने के लिए भारत 20 साल से लगातार प्रयास कर रहा है. इसके लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में 15 अगस्त 2003 को चंद्रयान अभियान की शुरुआत की गई थी. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के तीसरे चंद्र मिशन ‘चंद्रयान-3’ की सफलता का वैज्ञानिक समुदाय बेसब्री से इंतजार कर रहा है. इसरो अगर चंद्रयान-3 को सफलता पूर्वक चंद्रमा की सतह पर उतार लेता है, तो भारत अपने उपग्रह चंद्रमा पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में महारत हासिल कर लेगा. इन 20 वर्षों में भारत में चंद्र अभियान कैसे विकसित हुआ? आइए जानते हैं सिलसिलेवार घटनाक्रम…
चंद्रयान-1
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चंद्रयान कार्यक्रम की कल्पना भारत सरकार द्वारा की गई थी, जिसकी औपचारिक घोषणा 15 अगस्त 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा की गई थी.
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वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत तब रंग लाई, जब 22 अक्टूबर, 2008 को इसरो के विश्वसनीय पीएसएलवी-सी 11 रॉकेट के जरिए पहले मिशन ‘चंद्रयान-1’ का प्रक्षेपण किया गया.
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इसरो के अनुसार, पीएसएलवी-सी11, पीएसएलवी के मानक विन्यास का एक अपडेट संस्करण था. प्रक्षेपण के समय 320 टन वजनी इस वाहन में उच्च उपकरण क्षमता प्राप्त करने के लिए बड़ी ‘स्ट्रैप-ऑन मोटर्स’ का उपयोग किया गया था. इसमें भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में निर्मित 11 वैज्ञानिक उपकरण थे.
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तमिलनाडु से संबंध रखने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक मयिलसामी अन्नादुरई ने ‘चंद्रयान-1’ मिशन के निदेशक के रूप में इस परियोजना का नेतृत्व किया था.
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अंतरिक्ष यान चंद्रमा के रासायनिक, खनिज विज्ञान और फोटो-भूगर्भिक मानचित्रण के लिए चंद्र सतह से 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा के चारों ओर परिक्रमा कर रहा था.
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मिशन ने जब सभी वांछित उद्देश्य हासिल कर लिए, तो प्रक्षेपण के कुछ महीनों बाद मई 2009 में अंतरिक्ष यान की कक्षा को 200 किमी तक बढ़ा दिया गया.
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उपग्रह ने चंद्रमा के चारों ओर 3,400 से अधिक चक्कर लगाए, जो इसरो टीम की अपेक्षा से अधिक थे. मिशन अंततः समाप्त हुआ और अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिकों ने घोषणा की कि 29 अगस्त, 2009 को अंतरिक्ष यान से संपर्क टूट गया.
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विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम ने पीएसएलवी-सी11 को डिजाइन और विकसित किया था.
चंद्रयान-2
चंद्रयान-1 की सफलता से उत्साहित इसरो ने एक जटिल मिशन के रूप में ‘चंद्रयान-2’ की कल्पना की थी.
‘चंद्रयान-2’ चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अन्वेषण के लिए एक ‘ऑर्बिटर’, ‘लैंडर’ (विक्रम) और ‘रोवर’ (प्रज्ञान) ले गया था.
चंद्रयान-2 मिशन 22 जुलाई, 2019 को उड़ान भरने के बाद उसी वर्ष 20 अगस्त को सफलतापूर्वक चंद्र कक्षा में स्थापित कर दिया गया था.
अंतरिक्ष यान का हर कदम सटीक था और चंद्रमा की सतह पर उतरने की तैयारी में ‘लैंडर’ सफलतापूर्वक ‘ऑर्बिटर’ से अलग हो गया.
100 किलोमीटर की ऊंचाई पर चंद्रमा का चक्कर लगाने के बाद ‘लैंडर’ का चंद्र सतह की ओर आने की योजना के अनुसार था और 2.1 किमी की ऊंचाई तक यह सामान्य था.
मिशन अचानक तब समाप्त हो गया, जब वैज्ञानिकों का ‘विक्रम’ से संपर्क टूट गया.
‘विक्रम’ का नाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक दिवंगत विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया था.
‘चंद्रयान-2’ मिशन चंद्रमा की सतह पर वांछित ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने में विफल रहा, जिससे इसरो टीम को काफी दुख हुआ.
उस समय वैज्ञानिक उपलब्धि को देखने के लिए इसरो मुख्यालय में मौजूद रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तत्कालीन इसरो प्रमुख के सिवन को सांत्वना देते देखा गया, जो भावुक हो गए थे.
‘चंद्रयान-2’ मिशन का उद्देश्य स्थलाकृति, भूकंप विवरण, खनिज पहचान, सतह की रासायनिक संरचना और ऊपरी मिट्टी की तापीय-भौतिक विशेषताओं के विस्तृत अध्ययन के माध्यम से चंद्र वैज्ञानिक ज्ञान का विस्तार करना था, जिससे चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास की नयी समझ पैदा हो सके.
चंद्रयान-3 मिशन
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शुक्रवार को चंद्र यात्रा पर रवाना होने वाला तीसरा मिशन पूर्ववर्ती ‘चंद्रयान-2’ का अनुवर्ती मिशन है, जिसका लक्ष्य चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में महारत हासिल करना है.
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चंद्रमा की सतह पर सफल ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ से भारत ऐसी उपलब्धि हासिल कर चुके अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ जैसे देशों के क्लब में शामिल हो जाएगा.
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एलवीएम3एम4-चंद्रयान-3 मिशन शुक्रवार-14 जुलाई को 14.35 बजे (अपराह्न 2 बजकर 35 मिनट) पर प्रक्षेपित किया गया.
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‘चंद्रयान-3’ कार्यक्रम के तहत इसरो अपने चंद्र मॉड्यूल की मदद से चंद्र सतह पर ‘सॉफ्ट-लैंडिंग’ और चंद्र भूभाग पर रोवर के घूमने का प्रदर्शन करके नई सीमाएं पार करने जा रहा है.
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एलवीएम3एम4 रॉकेट शुक्रवार को इसरो के महत्वाकांक्षी ‘चंद्रयान-3’ को चंद्र यात्रा पर ले जाएगा.
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इस रॉकेट को पूर्व में जीएसएलवीएमके3 कहा जाता था.
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भारी उपकरण ले जाने की इसकी क्षमता के कारण अंतरिक्ष वैज्ञानिक इसे ‘फैट बॉय’ भी कहते हैं.
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अगस्त 2023 के अंत में ‘चंद्रयान-3’ की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की योजना बनाई गई है.
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उम्मीद है कि यह मिशन भविष्य के अंतरग्रही अभियानों के लिए सहायक होगा.
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चंद्रयान-3 मिशन में एक स्वदेशी प्रणोदन मॉड्यूल, लैंडर मॉड्यूल और एक रोवर शामिल है, जिसका उद्देश्य अंतर-ग्रहीय अभियानों के लिए आवश्यक नई प्रौद्योगिकियों को विकसित करना और प्रदर्शित करना है.
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शुक्रवार का मिशन एलवीएम3 की चौथी अभियानगत उड़ान है, जिसका उद्देश्य ‘चंद्रयान-3’ को भू-समकालिक कक्षा में प्रक्षेपित करना है.
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एलवीएम3 रॉकेट ने कई उपग्रहों को प्रक्षेपित करने, अंतरग्रही अभियानों सहित अधिकतर जटिल अभियानों को पूरा करने करने की अपनी विशिष्टता साबित की है. यह घरेलू और अंतरराष्ट्रीय ग्राहक उपग्रहों को ले जाने वाला सबसे बड़ा और भारी प्रक्षेपण यान भी है.
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तीसरे चंद्र मिशन के माध्यम से इसरो के वैज्ञानिकों का लक्ष्य विभिन्न क्षमताओं का प्रदर्शन करना है, जिनमें चंद्रमा की कक्षा तक पहुंचना, लैंडर का उपयोग करके चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट-लैंडिंग करना’ और चंद्रमा की सतह का अध्ययन करने के लिए लैंडर से एक रोवर का निकलना और फिर इसका चंद्र सतह पर घूमना शामिल है.
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13 जुलाई 2023 दिन मंगलवार को चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण की संपूर्ण तैयारी और प्रक्रिया को देखने के लिए श्रीहरिकोटा में ‘प्रक्षेपण अभ्यास’ किया गया, जो 24 घंटे से अधिक समय तक चला.
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12 जुलाई को वैज्ञानिकों ने मिशन तैयारी से संबंधित समीक्षा पूरी की.
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13 जुलाई को उल्टी गिनती शुरू हुई.
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14 जुलाई को चंद्रयान-3 इसरो की ओर से श्रीहरिकोटा से चंद्रमा की कक्षा में प्रक्षेपित कर दिया गया.
चंद्रयान से संबंधित अहम जानकारी
चंद्रयान-3 लॉन्चपैड पर पुस्तक का विमोचन
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता और लेखक विनोद मनकारा की नई किताब श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) में रॉकेट लॉन्चपैड से जारी की गई. विज्ञान लेखों के संग्रह ‘प्रिज्म: द एनसेस्ट्रल एबोड ऑफ रेनबो’ का अनोखा लॉन्च कार्यक्रम गुरुवार शाम एसडीएससी-शार में आयोजित किया गया, जहां चंद्र मिशन चंद्रयान -3 के लिए तैयारियां चल रही थीं. इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने पुस्तक को विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के निदेशक एस उन्नीकृष्णन नायर को सौंपकर जारी किया.
चंद्रयान का तमिलनाडु से नाता खास रिश्ता
भारत की ओर से शुरू किया गया चंद्रयान अभियान का तमिलनाडु से खास रिश्ता है. वर्ष 2008 में पहले चंद्र मिशन के साथ शुरू हुई चंद्रयान शृंखला के बारे में एक अनोखी समानता उसका तमिलनाडु से संबंध है. तमिलनाडु में जन्मे मयिलसामी अन्नादुरई और एम वनिता के चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 का नेतृत्व करने के बाद अब विल्लुपुरम के मूल निवासी पी वीरमुथुवेल तीसरे मिशन की निगरानी कर रहे हैं. 46 साल के वीरमुथुवेल फिलहाल सोमनाथ के नेतृत्व में चंद्रयान-3 मिशन के परियोजना निदेशक हैं. एस सोमनाथ की अध्यक्षता में इसरो का मकसद उन विशिष्ट देशों की सूची में शामिल होना है, जिन्होंने चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में महारत हासिल कर ली है. दिलचस्प बात यह है कि पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत डॉ एपीजे अब्दुल कलाम, जिन्होंने भारत के रॉकेट कार्यक्रम का नेतृत्व किया, वह भी तमिलनाडु के रामेश्वरम से ही थे.
चंद्रयान-3 में योगदान देने वाले सीटीटीसी भुवनेश्वर को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का इंतजार
शुक्रवार को भारत के चंद्र मिशन चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण के बाद भुवनेश्वर के ‘सेंट्रल टूल रूम एंड ट्रेनिंग सेंटर’ (सीटीटीसी) के तकनीशियन और छात्र इस यान को चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करता देखने के लिए उत्सुक हैं. सीटीटीसी भुवनेश्वर ने इस अभियान के लिए अहम घटकों की आपूर्ति की है. संस्थान के महाप्रबंधक एल राजशेखर ने कहा कि हम व्याकुल हैं और परीक्षा परिणाम का इंतजार कर रहे छात्र जैसा महसूस कर रहे हैं. हम अत्यधिक आशावादी हैं कि इस बार भारत इतिहास रचेगा. भुवनेश्वर स्थित इस सरकारी उपक्रम (पीएसयू) ने चंद्रयान-3 प्रक्षेपण वाहन के एलवीएम3 (लॉन्च व्हीकल मार्क-3), सेंसर और रेग्युलेटर में इस्तेमाल किए जाने वाले कई प्रवाह नियंत्रण वाल्व का निर्माण किया है. संस्थान ने यान के लिए गाइरोस्कोप और प्रक्षेपक के कलपुर्जों की भी आपूर्ति की है. 2019 में चंद्रयान-2 के दौरान चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में आंशिक विफलता के बाद इसरो ने वाहन लैंडर के डिजाइन में कुछ बदलाव किए हैं. चंद्र मिशन में इस्तेमाल होने वाले 50,000 से ज्यादा अहम घटकों के निर्माण के लिए 150 से अधिक तकनीशियनों ने पिछले दो वर्षों में दिन-रात काम किया है.
गोदरेज एयरोस्पेस का प्रमुख योगदान
चंद्रयान-3 में गोदरेज एयरोस्पेस का भी महत्वपूर्ण योगदान है. चंद्रयान-3 को ले जाने वाले रॉकेट के दूसरे चरण के दो इंजन गोदरेज एयरोस्पेस ने बनाए हैं. गोदरेज एयरोस्पेस के एसोसिएट वाइस प्रेसीडेंट और बिजनेस हेड मानेक बहरामकामदिन ने बताया कि चंद्रयान-3 एक बहुत ही प्रतिष्ठित मिशन है, गोदरेज ने दो इंजनों के लिए हार्डवेयर में योगदान दिया है, जो दूसरे चरण के इंजन हैं.