(गांधीनगर से अंजनी कुमार सिंह)
मौजूदा समय में दुनिया कई स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना कर रही है. ऐसे में लोगों को सस्ती और पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के जरिये स्वस्थ बनाने की पहल जोर पकड़ रही है. ऐसे में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को आधुनिक विज्ञान के प्रयोग से अधिक बेहतर बनाया जा सकता है. इसे लेकर गांधीनगर में दुनिया के विशेषज्ञों ने वैश्विक सम्मेलन में मंथन किया. दुनिया भर की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के जानकारों ने आयुष मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आयोजित पहले पारंपरिक चिकित्सा पद्धति पर आयोजित वैश्विक सम्मेलन में हिस्सा लिया. इस सम्मेलन में 75 से भी अधिक देशों के प्रतिनिधि और कई देशों के स्वास्थ्य मंत्री ने शिरकत की. सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन के महासचिव डॉक्टर ट्रेडोस घेब्येययस ने पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में भारत की ऐतिहासिक पहल की तारीफ करते हुए कहा कि पारंपरिक और एकीकृत चिकित्सा दुनिया को स्वस्थ बनाने में मददगार साबित हो सकती है.
आम लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए भारत के डिजिटल हेल्थ प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि इससे दूर-दूराज में रहने वालों लोगों को स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने में मदद मिली है. साथ ही आम लोगों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड संरक्षित करने से इलाज करने में डॉक्टरों को आसानी होती है. उन्होंने भारत के घर-घर में पूजा की जाने वाली तुलसी का जिक्र करते हुए कहा कि इस पौधे में कई औषधीय गुण हैं और यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे तुलसी पौधा लगाने का मौका मिला.
इस मौके पर केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल के कारण वैश्विक सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है और उनके सक्षम और समर्थ नेतृत्व में पारंपरिक चिकित्सा को नयी पहचान मिली है. आयुष मंत्रालय पारंपरिक चिकित्सा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए काम कर रहा है. आयुष उत्पादों के प्रति भारत ही नहीं दुनिया के लोगों का भरोसा बढ़ा है और यही कारण है कि आज आयुष उत्पाद का कारोबार लाख करोड़ रुपये से अधिक का हो गया है. पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को लेकर दुनिया भारत की ओर देख रही है और आने वाले समय में भारत इस क्षेत्र का नेतृत्व करेगा और लोगों को स्वस्थ बनाने के काम में अग्रणी भूमिका निभायेगा. पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में भारत की महती भूमिका को देखते हुए पिछले साल जामनगर में एक अंतर्राष्ट्रीय ट्रेडिशनल मेडिसिन सेंटर का शिलान्यास किया गया.
वहीं गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा कि कोरोना काल के दौरान दुनिया के अधिकांश देशों की मेडिकल सेवा धराशायी हो गयी थी. ऐसे कठिन दौर में दुनिया भारत के आयुष पद्धतियों की महत्ता पर गयी और इसकी उपयोगिता से लोगों को लाभ भी मिला. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत की पारंपरिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए उठाये गए कदमों को लाभ पूरी दुनिया को कोरोना काल में मिला.
केंद्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि पारंपरिक औषधियों की फार्मास्यूटिकल और कॉस्मेटिक उद्योग में काफी मांग है. दुनिया के 170 से भी अधिक देशों में इन औषधियों का प्रयोग किसी ने किसी तौर पर किया जा रहा है.
सम्मेलन में भूटान की स्वास्थ्य मंत्री डाशो डेचेन वांगमो ने एलोपैथिक डॉक्टर और पारंपरिक पेशेवरों को समान वेतन मुहैया कराने को कहा. उन्होंने कहा कि भूटान में पारंपरिक और एलोपैथिक डॉक्टर को समान वेतन दिया जाता है. यही नहीं भूटान में एक ही स्वास्थ्य केंद्र पर एलोपैथी और ट्रेडिशनल मेडिसिन से इलाज की व्यवस्था उपलब्ध है.
गौरतलब है कि विश्व के पहले पारंपरिक चिकित्सा वैश्विक शिखर सम्मेलन के पहले दिन परंपरागत चिकित्सा से जुड़ी फिल्म और वृत्त चित्र भी दिखाये गये, जिसमें देश- दुनिया के अलग अलग कोने में प्रचलित पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को दिखाया गया. प्रदर्शनी में आकर्षण का केंद्र बिंदु बना पौराणिक कल्प वृक्ष का आधुनिक रूप. कल्पवृक्ष के जरिये यह संदेश देने की कोशिश की गयी कि जैसे कल्पवृक्ष इंसान की हर मनोकामना को पूर्ण करने का सामर्थ्य रखता है, उसी तरह पारंपरिक चिकित्सा पद्धति इंसान को हर रोग का इलाज करने में सक्षम है.