श्री अरबिंदो सोसाइटी का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, ऋषि अगस्त्य, श्री अरविन्द और पुदुच्चेरी की वैदिक परंपरा की विरासत पर चर्चा

श्री अरविन्द सोसाइटी की ओर से केंद्र शासित प्रदेश पुदुच्चेरी में ऋषि अगस्त्य, श्री अरविन्द और पुदुच्चेरी की वैदिक परंपरा पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया. इसके आठवें दिवस की थीम थी सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए सिद्ध. इस अवसर पर श्री अरविन्द सोसाइटी पुदुच्चेरी के चेयरमैन प्रदीप नारंग ने श्री अरविन्द और महर्षि अगस्त्य के बीच संबंध पर टिप्पणी की.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 23, 2024 10:07 PM

श्री अरविन्द सोसाइटी की ओर से केंद्र शासित प्रदेश पुदुच्चेरी में ऋषि अगस्त्य, श्री अरविन्द और पुदुच्चेरी की वैदिक परंपरा पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया. कार्यक्रम की शुरूआत 19 दिसंबर को हुई थी. इसके आठवें दिवस की थीम थी सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए सिद्ध. इस अवसर पर श्री अरविन्द सोसाइटी पुदुच्चेरी के चेयरमैन प्रदीप नारंग ने श्री अरविन्द और महर्षि अगस्त्य के बीच संबंध पर टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि वेदों के सार को समझने के लिए सटीक अनुवाद जरूरी है. श्री अरविन्द की व्याख्याएं वैदिक संस्कृति, अनुष्ठानों और पारंपरिक प्रथाओं के महत्व पर जोर देती हैं.

कार्यक्रम के दौरान श्री अरविन्द सोसायटी ऑरोभारती के सदस्य सचिव डॉ. किशोर कुमार त्रिपाठी ने कहा कि सम्मेलन का प्राथमिक उद्देश्य प्राचीन वेदपुरी के महत्वपूर्ण तत्वों और इस स्थान में ऋषि अगस्त्य और श्री अरविन्दसे जुड़े आश्रम का पता लगाना है. ताकी ज्ञान के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए सिद्ध प्रणाली को विरासत मिले. वेदपुरी, ऋषि अगस्त्य, श्री अरविन्द, और पुदुच्चेरी की वैदिक परंपरा शीर्षक से चल रही परियोजना पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट सदस्य सचिव और ऑरोभारती, एसएएस की एसोसिएट निदेशक चारू त्रिपाठी की ओर से प्रस्तुत की गई. कार्यक्रम में वैदिक विद्वता के केंद्र के रूप में वेदपुरी के प्राचीन नाम के महत्व और इस पवित्र स्थान पर ऋषि अगस्त्य और श्री अरविन्द के आश्रम के अस्तित्व पर चर्चा की गई.

दक्षिण भारत में ऋषि अगस्त्य के गहन योगदान, ऋग्वैदिक सूक्तों की उनकी रचना और व्याकरण में तमिल साहित्य पर उनका प्रभाव, श्री अरविन्द के परिवर्तनकारी दर्शन के साथ-साथ श्री अरविन्द सोसायटी के सदस्य कार्यकारी डॉ. अजीत सबनीस ने प्रकाश डाला. इस अवसर पर आईपीएस सह ऑरोविले फाउंडेशन की उप सचिव स्वर्णंबिका ने ऋषि अगस्त्य को सिद्ध चिकित्सा के जनक के रूप में कहा. उन्होंने श्री अरबिंदो को एक जीवित सिद्ध के रूप में अगस्त्य और उनकी दिव्य क्षमताओं का भी उल्लेख किया.

पुदुच्चेरी विश्वविद्यालय के कुलपति (प्रभारी) प्रो. के थारानिकारासु ने इस बात पर जोर दिया कि सिद्धों के लिए आध्यात्मिकता आवश्यक है. उन्होंने पुदुच्चेरी में वैदिक परंपरा की विरासत पर भी प्रकाश डाला. ऐतिहासिक रूप से इसे वेदपुरी के नाम से जाना जाता है. अरबिंदो आश्रम की ओर से श्री अरबिंदो, ऋषि अगस्त्य और वैदिक परंपरा पर एक विशेष भाषण दिया. इस अवसर पर, ऑरो विश्वविद्यालय, गुजरात के संस्थापक अध्यक्ष एचपी राम, भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के तहत केंद्रीय सिद्ध अनुसंधान परिषद के आयोजन अध्यक्ष और महानिदेशक, प्रोफेसर डॉ एन जे मुथुकुमार, नागेश भंडारी, गुजरात में इंडस विश्वविद्यालय के अध्यक्ष ने वैदिक और सिद्ध परंपराओं पर विचार साझा किए. समापन सत्र में पुदुच्चेरी सरकार के कला और संस्कृति विभाग के निदेशक वी कालियापेरुमल और वैदिक विद्या केंद्र, पुडुचेरी के संरक्षक पीयूष आर्य भी मौजूद रहे.

सम्मेलन में शैक्षिक विकास, संस्थागत सहयोग, अनुसंधान और सामुदायिक भागीदारी पहल पर जोर देने के साथ पुदुच्चेरी की वैदिक परंपरा की विरासत को पुनर्जीवित करने के महत्व पर प्रकाश डाला गया. भारत और विदेश के विभिन्न संस्थानों के प्रतिष्ठित विद्वानों और शोधकर्ताओं, जिनमें प्रो. वेदव्यास द्विवेदी, डॉ. सुंदर मुरुगन, प्रो. कृष्ण मोहन कोटरा, प्रो. चार्लोट श्मिट और कई अन्य लोगों ने ऋषि अगस्त्य, श्री अरविन्द और पर अपने व्याख्यान दिये. उनकी चर्चाओं में वैदिक और सिद्ध प्रथाओं से संबंधित व्याख्याएं, विद्वानों के दृष्टिकोण और दस्तावेजीकरण शामिल थे.

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