ISRO New Mission: चंद्रयान-3 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतारने के एक पखवाड़े से भी कम समय के अंदर इसरो ने सूर्य के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए ‘आदित्य-एल1’ मिशन को सफलतापूर्वक रवाना कर दिया है. दोनों मिशन की कामयाबी से इसरो का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है. आदित्य एन-1 के बाद इसरो अपने नये प्रोजेक्ट पर लग गया है. यानी जल्द ही एक बार फिर इसरो दुनिया में धूम मचाने अपने नये प्रोजेक्ट के साथ आने वाला है. इसरो का नया मिशन भी देश दुनिया के लिए अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होने वाला है. जी हां, अब इसरो की नजर अगले मिशन पर है, जिसका मकसद अंतरिक्ष का अध्ययन करना है. ISRO का नया मिशन एक्सपोसैट i होने वाला है, जरा समझते हैं क्या है यह मिशन…
भारत का पहला समर्पित पोलारिमेट्री मिशन
एक्सर रे पोलारिमीटर सैटेलाइट (एक्पोसैट, XPoSat) देश का पहला समर्पित पोलारिमेट्री मिशन है जो कठिन परिस्थितियों मे भी चमकीले खगोलीय एक्सरे स्रोतों के विभिन्न आयामों का अध्ययन करेगा. इसके अपने नये मिशन के लिए पृथ्वी की निचली कक्षा में अंतरिक्ष यान भेजा जाएगा जिसमें दो वैज्ञानिक अध्ययन उपकरण यानी पेलोड लगे होंगे. इसरो ने मिशन की जानकारी देते हुए कहा कि प्राथमिक उपकरण ‘पोलिक्स’ (एक्सरे में पोलारिमीटर उपकरण) खगोलीय मूल के 8 से 30 केवी फोटॉन की मध्यम एक्स-रे ऊर्जा रेंज में पोलारिमेट्री मापदंडों (ध्रुवीकरण की डिग्री और कोण) को मापेगा. इसरो के अनुसार, एक्सस्पेक्ट (एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी और टाइमिंग) पेलोड 0.8 से 15 केवी की ऊर्जा रेंज में स्पेक्ट्रोस्कोपिककी जानकारी देगा. बता दें , स्पेक्ट्रोस्कोपिककी भौतिक विज्ञान की एक शाखा है जिसमें पदार्थों द्वारा उत्सर्जित या अवशोषित विद्युत चुंबकीय विकिरणों के स्पेक्ट्रमों का अध्ययन किया जाता है और इस अध्ययन से पदार्थों की आंतरिक रचना का ज्ञान प्राप्त किया जाता है.
इसरो के एक अधिकारी ने कहा है कि एक्सपोसैट प्रक्षेपण के लिए हम तैयार हैं. ब्लैक होल, न्यूट्रॉन तारे, सक्रिय गैलेक्टिक नाभिक, पल्सर पवन निहारिका जैसे विभिन्न खगोलीय स्रोतों से उत्सर्जन तंत्र जटिल भौतिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न होता है और इसे समझना चुनौतीपूर्ण है.ऐसे में इसरो क वैज्ञानिकों का कहना है कि हालांकि विभिन्न अंतरिक्ष-आधारित वेधशालाओं द्वारा प्रचुर मात्रा में स्पेक्ट्रोस्कोपिक जानकारी प्रदान की जाती है, लेकिन ऐसे स्रोतों से उत्सर्जन की सटीक प्रकृति को समझना अभी भी खगोलविदों के लिए चुनौतीपूर्ण है. इसरो ने कहा, पोलारिमेट्री माप हमारी समझ में दो और आयाम जोड़ते हैं, ध्रुवीकरण की डिग्री और ध्रुवीकरण का कोण और इस प्रकार यह खगोलीय स्रोतों से उत्सर्जन प्रक्रियाओं को समझने का एक उत्कृष्ट तरीका है.
सूर्य के सफर पर निकला इसरो का आदित्य L1
श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से ISRO ने अपने पहले सोलर मिशन को लॉन्च कर दिया है. आदित्य L1 मिशन का काम सूर्य के ऊपरी वायुमंडल की स्टडी करना है. इससे सूरज की बाहरी परत की जानकारियां मिलेगी. आदित्य L1 15 लाख किलोमीटर दूरी तय करेगा. आदित्य एल-1 सैटेलाइट को लैग्रेंज प्वाइंट 1 में स्थापित किया जाएगा. बता दें, बिना ग्रैविटी वाले क्षेत्र को ‘लैग्रेंज पॉइंट’ कहा जाता है. इसी L1 प्वाइंट पर आदित्य L1 सूर्य के चक्कर लगाएगा. दरअसल लैग्रेंज बिंदु 1 के चारों ओर स्थापित करने से उपग्रह बिना किसी रुकावट या ग्रहण के लगातार सूर्य का अध्ययन कर सकता है.
क्या है लैग्रेंज पॉइंट-1
अंतरिक्ष में लैग्रेंज बिंदु दो विशाल परिक्रमा करने वाले पिंडों के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के तहत छोटे द्रव्यमान वाली वस्तुओं के लिए संतुलन पॉइंट होता हैं. आम तौर पर इस पॉइंट पर दो विशाल पिंड एक बिंदु पर असंतुलित गुरुत्वाकर्षण बल लगाते हैं, जिससे उस बिंदु पर जो कुछ भी होता है उसकी कक्षा बदल जाती है. लैग्रेंज प्वाइंट 1 को एल1 भी कहा जाता है. धरती और और सूर्य के संबंध में यह वह बिंदु है जहां धरती और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल एक-दूसरे को प्रभावित करता है. ऐसे में आदित्य-एल1 मिशन का उद्देश्य एल1 के चारों ओर की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है, विभिन्न तरंग बैंडों में प्रकाशमंडल, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परत (कोरोना) का निरीक्षण करना है. आदित्य एल-1 अध्ययन के लिए अपने साथ सात पेलोड लेकर गया है.
क्या अध्ययन करेगा आदित्य एल-1
आदित्य-एल1 मिशन सूर्य का अध्ययन करने उड़ान भर चुका है. यह सौर कोरोना के दूरस्थ अवलोकन और लैग्रेंज पॉइंट पर सौर वायु का अवलोकन करेगा. बता दें, एल1 पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है. यह एल1 के चारों ओर की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करेगा. यह अंतरिक्ष यान अपने साथ सात पेलोड ले जा रहा है. जो अलग-अलग वेव बैंड में फोटोस्फेयर , क्रोमोस्फेयर और सूर्य की सबसे बाहरी परत (कोरोना) का अध्ययन करेगा. इसरो के एक अधिकारी ने कहा कि आदित्य-एल1 पूरी तरह से स्वदेशी प्रयास है, जिसमें राष्ट्रीय संस्थानों की भागीदारी है. आदित्य-एल1, अल्ट्रावायलेट पेलोड का उपयोग करके सूर्य की सबसे बाहरी परत (कोरोना) और एक्स-रे पेलोड का उपयोग कर सौर क्रोमोस्फेयर परतों का अवलोकन कर सकता है.
भाषा इनपुट से साभार