ISRO spy case, Nambi Narayanan, fake spy scandal: कल्पना कीजिए कि एक नाटकीय लम्हे में आपकी पूरी जिंदगी बदल जाए. 26 साल पहले ऐसा ही कुछ भारत के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के साथ हुआ था. आज हम आपको बताएंगे उस शख्स की कहानी. हम बात कर रहे हैं इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन की जिन्हें केरल सरकार ने मंगलवार को ढाई दशक पुराने जासूसी मामले के निपटारे के लिए 1.30 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मुआवजा दिया. पिछले साल दिसंबर में ही केरल राज्य कैबिनेट ने इसरो के पूर्व वैज्ञानिक एस नांबी नारायणन को 1.30 करोड़ रुपये का मुआवजा देने की मंजूरी दे दी थी.
न्यू इंडियन एकस्प्रेस के मुताबिक, मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों ने नारायणन को राशि के भुगतान की पुष्टि की. केरल सरकार द्वारा मुआवजे की राशि का चेक स्वीकार करते हुए नांबी नारायणन ने कहा कि मैं खुश हूं. यह केवल मेरे द्वारा लड़ी गई लड़ाई धन के लिए नहीं है. मेरी लड़ाई अन्याय के खिलाफ थी. राज्य पुलिस ने उन्हें इस मामले में फंसाया था. बता दें कि, पिछले साल दिसंबर महीने में केरल मंत्रिमंडल ने पूर्व इसरो वैज्ञानिक को 1.30 करोड़ रुपये का मुआवजा देने की मंजूरी दे दी थी.
जासूसी के आरोप से सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरी किए गए इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को पद्म भूषण (2019) से भी नवाजा गया. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस केस में वैज्ञानिक एस. नंबी नारायणन को केरल पुलिस द्वारा बेवजह गिरफ्तार किया गया था. उन्हें (नारायणन) परेशान किया गया और मानसिक प्रताड़ना दी गई.
शीर्ष अदालत ने इसरो वैज्ञानिक को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया था. कोर्ट ने यह भी कहा था कि नांबी नारायणन इससे ज्यादा के हकदार हैं और वे उचित मुआवजे के लिए निचली अदालत का रुख कर सकते हैं. वहीं, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उन्हें अलग से 10 लाख रुपये का मुआवजा सौंपे जाने की सिफारिश की थी.
ये सब 30 नवंबर 1994 को हुआ. 53 वर्षीय नांबी नारायणन उस वक़्त इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान) के क्राइजेनिक रॉकेट इंजन कार्यक्रम का नेतृत्व कर रह थे. इस प्रोजेक्ट के लिए वो रूस से तकनीक ले रहे थे. उनपर जासूसी के झूठे मामले में आरोप लगाया गया था कि नारायणन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से संबंधित कुछ बेहद गोपनीय दस्तावेज विदेशी देशों को हस्तांतरित करने में शामिल हैं. कहा जाता है कि यह प्रकरण राजनीतिक खींचतान का नतीजा था. अगले कुछ महीनों में नारायण की प्रतिष्ठा और इज़्ज़त जैसे टुकड़ों में बिखर गई. नारायणन को उस गुनाह के लिए सजा और जिल्लत झेलनी पड़ी, जो कभी हुई ही नहीं.
उन्हें लोगों ने गद्दार कहा, इस झूठे आरोप के कारण उनका करियर तक बर्बाद हो गया. दो माह तक जेल में भी रहे. फिर जमानत पर बाहर आए. केरल पुलिस ने उन्हें रॉकेट के क्रायोजेनिक इंजन की परियोजना से जुड़े दस्तावेजों की चोरी कर मालदीव के रास्ते पाकिस्तान देने के आरोप में गिरफ्तार किया. जबकि सच्चाई यह थी कि वह तकनीक मौजूद ही नहीं थी. आरोप लगाया गया था कि महिला खुफिया अधिकारियों के साध उन्होंने ऐसा किया. नारायणन के साथ दो वैज्ञानिकों डी शशिकुमारन और डेप्युटी डायरेक्टर के चंद्रशेखर को भी गिरफ्तार किया गया था. केरल पुलिस ने दावा किया था कि उन्होंने कुछ गुप्त दस्तावेज पाकिस्तान को दिए थे.
जांच के बाद सीबीआई ने कहा था कि ये आरोप झूठे हैं. हालांकि फिर से जांच के आदेश दिए गए पर 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को रद्द कर दिया. लंबी चली अदालती लड़ाई के बाद 14 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने जासूसी के आरोप से बरी कर दिया था. साल 2019 में नांबी नारायणन को भारत सरकार के प्रतिष्ठित पद्म भूषण पुरस्कार से भी नवाजा गया.नारायणन और पांच अन्य लोगों के ख़िलाफ़ इस तरह की साज़िश क्यों रची गई, यह आज भी रहस्य बना हुआ है. नारायणन को शक़ है कि शायद यह षड्यंत्र किसी प्रतिद्वंद्वी अंतरिक्ष शक्ति ने रचा होगा ताकि भारत की रॉकेट टेक्नॉलजी को विकसित होने से रोका जा सके. बाद में यही तकनीक अंतरिक्ष में भारत की सफलता के लिए वरदान साबित हुई.
Posted By: Utpal kant