पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ देश के 14वें उपराष्ट्रपति चुने गये हैं. शनिवार को उपराष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में उन्होंने राजग के प्रत्याशी के तौर पर विपक्ष की साझा उम्मीदवार मार्ग्रेट अल्वा को पराजित किया. धनखड़ को 528 मत मिले, जबकि अल्वा ने सिर्फ 182 मत हासिल किये. चुनाव में कुल 725 सांसदों ने मतदान में हिस्सा लिया, जिनमें से 710 वोट वैध पाये गये और 15 मतपत्रों को अवैध पाया गया. आपको बता दें कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला कोटा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. वहीं, नये उपराष्ट्रपति व रास के नये सभापति धनखड़ भी झुंझुनू से ताल्लुक रखते हैं. यानी लोकसभा और राज्यसभा दोनों के प्रमुख अब राजस्थान से हो गये हैं.
राजस्थान के झुंझुनू के एक छोटे से गांव किठाना से निकल कर देश के दूसरे सबसे सर्वोच्च पद तक का सफर तय करनेवाले नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की जिंदगी काफी संघर्षों वाली रही है. जिस क्षेत्र में उन्होंने कोशिश की, उसमें उन्हें सफलता मिली. 12वीं के बाद आइआइटी में चयन हुआ. एनडीए के लिए भी चुने गये. स्नातक के बाद सिविल सर्विसेज परीक्षा भी पास की, लेकिन उन्होंने वकालत का पेशा ही चुना.
जगदीप धनखड़ का जन्म 18 मई, 1951 को झुंझुनू के किठाना गांव में हुआ था. पिता का नाम गोकल चंद और मां का नाम केसरी देवी है. वह अपने चार भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर आते हैं. शुरुआती पढ़ाई गांव किठाना के ही सरकारी विद्यालय से हुई. गांव से पांचवीं तक की पढ़ाई के बाद उनका दाखिला गरधाना के सरकारी मिडिल स्कूल में हुआ. जब वह छठी कक्षा में थे, तब वह 4-5 किमी पैदल चल कर एक सरकारी स्कूल जाते थे. इसके बाद उन्होंने चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल में भी पढ़ाई की. भौतिकी में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से एलएलबी की उपाधि ली. धनखड़ ने राजस्थान हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट, दोनों में वकालत की.
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धनखड़ ने अपनी राजनीति की शुरुआत जनता दल से की थी. देवीलाल ने उन्हें 1989 में कांग्रेस का गढ़ रहे झुंझुनू संसदीय क्षेत्र से विपक्षी उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा था और धनखड़ ने जीत दर्ज की. इसके बाद वह एक जाट नेता के तौर पर उभरे. धनखड़ 1990 में चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली अल्पमत सरकार में केंद्रीय मंत्री बने. हालांकि, जब 1991 में हुए लोकसभा चुनावों में जनता दल ने धनखड़ का टिकट काट दिया, तो वह पार्टी छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गये. अजमेर के किशनगढ़ से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 1993 में चुनाव लड़ा और विधायक बने. 2003 में उनका कांग्रेस से मोहभंग हुआ और वह कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गये. जुलाई 2019 में धनखड़ को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया था.