Jammu Kashmir Election Result: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे आज घोषित होंगे. राज्य की 90 सीटों पर तीन चरणों में मतदान हुआ था. जहां पहले राजनीतिक विशेषज्ञ 90 सीटों के आंकड़ों और समीकरणों पर चर्चा कर रहे थे, वहीं अब ध्यान 5 मनोनीत विधायकों पर केंद्रित हो गया है, जिन्हें उपराज्यपाल बिना चुनाव लड़े सीधे विधानसभा में भेजेंगे. अगर उपराज्यपाल किसी को नामित करेंगे, तो वह विधायक किसे समर्थन देगा, यह भी उपराज्यपाल ही तय करेंगे, जिसे लेकर सवाल उठने लगे हैं.
इसका मतलब है कि सरकार बनाने की प्रक्रिया काफी हद तक उपराज्यपाल पर निर्भर हो गई है, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार की वास्तविक शक्ति कितनी होगी. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद यहां चुनाव तो हुआ, लेकिन यह एक राज्य के बजाय केंद्रशासित प्रदेश में हुआ, जहां उपराज्यपाल को पहले ही काफी अधिकार दिए जा चुके हैं. अब यह सवाल उठ रहा है कि चाहे चुनाव कोई भी जीते, असल में सरकार चलाएंगे उपराज्यपाल ही.
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राज्य की प्रमुख शक्तियां LG के हाथ में
यह केवल आशंका नहीं, बल्कि इसमें सच्चाई भी है कि राज्य सरकार की कई प्रमुख शक्तियां अब उपराज्यपाल के पास हैं. पुलिस से लेकर सिविल सेवा अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले तक के फैसले चुनाव के बाद भी उपराज्यपाल के हाथ में होंगे. ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं है कि चुनी हुई सरकार की भूमिका सीमित होगी. आमतौर पर किसी भी राज्य में सरकार बनने के बाद गृह विभाग सबसे ताकतवर माना जाता है और बड़े नेता इसे अपने पास रखना चाहते हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर में यह विकल्प ही नहीं होगा.
सिर्फ पुलिस ही नहीं, बल्कि सार्वजनिक व्यवस्था जैसे बड़े क्षेत्र भी चुनी गई सरकार के अधिकार से बाहर होंगे. यहां तक कि समवर्ती सूची में शामिल विषयों, जिन पर राज्य और केंद्र दोनों कानून बना सकते हैं, लेकिन फिर भी जम्मू-कश्मीर विधानसभा कानून नहीं बना पाएगी. ये सभी अधिकार उपराज्यपाल या केंद्र सरकार के पास रहेंगे. यह स्थिति और अधिक जटिल है और इसे समझने के लिए धैर्य से स्थिति का विश्लेषण करना होगा.
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मंत्रिपरिषद नहीं कर सकती LG के फैसले की समीक्षा
जम्मू-कश्मीर सरकार में मंत्री बनने वाले अधिकारियों की सीमित शक्तियों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मंत्रियों के कार्यक्रम और बैठकों के एजेंडे पहले से उपराज्यपाल कार्यालय को सौंपने होंगे, और वह भी कम से कम दो दिन पहले. इसके अलावा, भ्रष्टाचार मामलों से निपटने वाली एसीबी (एंटी करप्शन ब्यूरो), जम्मू-कश्मीर फॉरेंसिक साइंस लैब और जेल विभाग जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां भी चुनी हुई सरकार के पास नहीं होंगी, बल्कि उपराज्यपाल के नियंत्रण में होंगी.
उपराज्यपाल की राजनीतिक ताकत का स्पष्ट संकेत जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून की धारा 55 से मिलता है, जिसके तहत उपराज्यपाल के किसी भी फैसले की समीक्षा चुनी गई मंत्रिपरिषद नहीं कर सकती. बात सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है. इसके अलावा, एक प्रावधान यह भी है कि उपराज्यपाल का प्रतिनिधि प्रदेश सरकार की हर कैबिनेट बैठक में शामिल होगा, जिससे उसकी भूमिका और भी प्रभावी हो जाती है.
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सरकार किसी की बने लेकिन पॉवर LG के हाथों में
स्वतंत्र भारत के इतिहास में शायद ही किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की कैबिनेट बैठक में केंद्र का कोई प्रतिनिधि मौजूद रहा हो. अगर केंद्र का प्रतिनिधि बैठकों में भाग लेता है, तो यह साफ संकेत है कि प्रदेश की सरकार नीति निर्धारण और अंतिम फैसले लेने में कितनी स्वतंत्र होगी. इस वजह से यह धारणा काफी हद तक सही है कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव के बाद चाहे कोई भी सरकार बने, असल में शासन उपराज्यपाल ही चलाएंगे.