आदिवासी भाषा ‘हो’ को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर जंतर-मंतर पर प्रदर्शन
लिखित और मौखिक तौर पर 'हो' भाषा में काफी साहित्य मौजूद है और इसकी किताबें देवनागरी, ओडिया, बंगाली और वारंगचिटी में उपलब्ध है.
(इनपुट दिल्ली ब्यूरो) : देश में 40 लाख से अधिक आदिवासी ‘हो’ भाषा का प्रयोग करते हैं. वर्षों से आदिवासी समाज हो भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग करता रहा है.
सोमवार को इसी मांग को लेकर आदिवासी हो समाज युवा महासभा ने ऑल इंडिया हो लैंग्वेज एक्शन कमेटी के साथ मिलकर जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया.
इस प्रदर्शन में झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के हो समाज के हजारों लोग परंपरागत परिधान में शामिल हुए. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि हो भाषा काफी पुरानी है और इसका प्रयोग झारखंड के विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में हो रहा है. लिखित और मौखिक तौर पर हो भाषा में काफी साहित्य मौजूद है और इसकी किताबें देवनागरी, ओडिया, बंगाली और वारंगचिटी में उपलब्ध है. ओडिशा में प्राथमिक स्तर पर हो भाषा में पढ़ाई होती है.
झारखंड सरकार ने इस भाषा को राज्य की दूसरी भाषा के तौर पर अधिसूचित किया है. यही नहीं झारखंड और ओडिशा सरकार ने हो भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने की सिफारिश केंद्र सरकार को की है. लेकिन इसके बावजूद आदिवासी समाज की मांग को पूरा नहीं किया जा रहा है.
इस प्रदर्शन में झारखंड के जगन्नाथपुर से विधायक सोनाराम सिंकु, आदिवासी हो समाज युवा महासभा की चेयरपर्सन बबलू सुंडी, आदिवासी हो समाज युवा महासभा के महासचिव गब्बर सिंह हेम्ब्रम के अलावा अन्य लोगों ने संबोधित किया.