अनुमति के बिना सुप्रीम कोर्ट पहुंचा यासीन मलिक, परिसर में मची सनसनी, जानें पूरा मामला
आतंकी वित्तपोषण मामले में तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के प्रमुख यासीन मलिक ने शुक्रवार को खचाखच भरे अदालत कक्ष में पहुंचकर उच्चतम न्यायालय में एक प्रकार से सनसनी मचा दी.
Yasin Malik In Supreme Court : आतंकी वित्तपोषण मामले में तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के प्रमुख यासीन मलिक ने शुक्रवार को खचाखच भरे अदालत कक्ष में पहुंचकर उच्चतम न्यायालय में एक प्रकार से सनसनी मचा दी. मलिक को अदालत की अनुमति के बिना जेल के वाहन में सुप्रीम कोर्ट परिसर में लाया गया था और इस वाहन को सशस्त्र सुरक्षाकर्मियों ने सुरक्षा दी हुई थी. मलिक के अदालत कक्ष में कदम रखते ही वहां मौजूद सभी लोग हैरान रह गए.
अदालत कक्ष में आने की मंजूरी देने की एक प्रक्रिया
मलिक की मौजूदगी पर आश्चर्य जताते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति सूर्यकांत तथा न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ से कहा कि उच्च जोखिम वाले दोषियों को अपने मामले की व्यक्तिगत तौर पर पैरवी करने के लिए अदालत कक्ष में आने की मंजूरी देने की एक प्रक्रिया है. पीठ पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के 1989 में हुए अपहरण के मामले में जम्मू की निचली अदालत द्वारा 20 सितंबर, 2022 को पारित आदेश के खिलाफ सीबीआई की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इसी दौरान यासीन मलिक अदालत कक्ष में उपस्थित हुआ.
मलिक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा
सीबीआई ने अदालत को बताया कि जेकेएलएफ का शीर्ष नेता मलिक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है और उसे तिहाड़ जेल परिसर से बाहर ले जाए जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है. शीर्ष अदालत ने सीबीआई की अपील पर 24 अप्रैल को एक नोटिस जारी किया था जिसके बाद मलिक ने 26 मई को उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार को पत्र लिखा था और अपने मामले की पैरवी के लिए व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित रहने की मंजूरी का अनुरोध किया था.
तिहाड़ जेल के अधिकारियों ने प्रत्यक्ष तौर पर गलत समझा
मामले में एक सहायक रजिस्ट्रार ने 18 जुलाई को मलिक के अनुरोध पर गौर किया और कहा कि शीर्ष अदालत आवश्यक आदेश पारित करेगी. तिहाड़ जेल के अधिकारियों ने प्रत्यक्ष तौर पर इसे गलत समझा कि मलिक को अपने मामले की पैरवी के लिए उच्चतम न्यायालय में पेश किया जाना है. मेहता ने जब मलिक की अदालत कक्ष में मौजूदगी पर प्रश्न किया तो पीठ ने कहा कि उसने मलिक को कोई अनुमति नहीं दी या व्यक्तिगत तौर पर अपने मामले की जिरह की अनुमति देने वाला कोई आदेश परित नहीं किया.
न्यायमूर्ति दत्ता ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि न्यायमूर्ति दत्ता ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है और अब इसे उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष रखा जाएगा. न्यायमूर्ति दत्ता ने सुनवाई से खुद को अलग करने का कोई कारण नहीं बताया है. मेहता ने कहा, ‘‘यह एक गंभीर सुरक्षा मुद्दा है. मलिक को जेल अधिकारियों के लापरवाही भरे रवैये के कारण अदालत में लाया गया है और भविष्य में ऐसा न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे. वह राष्ट्र के लिए खतरा है. वह दूसरों के लिए एक बड़ा सुरक्षा खतरा है.’’
आदेश की ‘गलत व्याख्या’ के कारण अदालत में लाया गया मलिक
उन्होंने कहा कि मलिक को कुछ आदेश की ‘गलत व्याख्या’ के कारण अदालत में लाया गया है. सीबीआई की ओर से भी पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि अदालत स्पष्ट कर सकती है और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक आदेश पारित कर सकती है कि ऐसी घटना दोबारा न हो. न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि किसी आरोपी द्वारा व्यक्तिगत रूप से बहस करना अब कोई समस्या नहीं है क्योंकि शीर्ष अदालत इन दिनों वर्चुअल सुनवाई की अनुमति दे रही है. इस पर मेहता ने कहा कि सीबीआई मलिक को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बहस करने की अनुमति देने के लिए तैयार थी लेकिन वह वर्चुअल रूप से पेश होने से इनकार कर रहा है.
मामले को चार सप्ताह के बाद सूचीबद्ध किया
मेहता ने रुबैया सईद अपहरण मामले में गवाहों से जिरह के लिए मलिक को जम्मू लाने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपनी अपील में सीबीआई के तर्क का उल्लेख किया और कहा कि सीआरपीसी की धारा 268 के तहत राज्य सरकार कुछ लोगों को जेल की सीमा से स्थानांतरित नहीं करने का निर्देश दे सकती है. इसके बाद पीठ ने मेहता से अपनी दलीलें अन्य पीठ के समक्ष पेश करने को कहा जो न्यायमूर्ति दत्ता के हटने के बाद गठित होगी. इसने मामले को चार सप्ताह के बाद सूचीबद्ध किया.