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जोशीमठ की स्थिति गंभीर चेतावनी, केदारनाथ आपदा और ऋषि गंगा में आयी बाढ़ से कुछ भी नहीं सीखा: विशेषज्ञ

विशेषज्ञों ने कहा कि उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन का धंसना मुख्य रूप से राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) की तपोवन विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना के कारण है और यह एक बहुत ही गंभीर चेतावनी है कि लोग पर्यावरण के साथ इस हद तक खिलवाड़ कर रहे हैं कि पुरानी स्थिति को फिर से बहाल कर पाना मुश्किल होगा.

उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन धंसने और सैकड़ों घरों में दरारें आने से लोग दहशत में हैं. वहां के कई परिवारों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया जा रहा है. जोशीमठ की स्थिति को विशेषज्ञों ने गंभीर चेतावनी करार दिया है.

विशेषज्ञों ने जोशीमठ में जमीन धंसने के पीछे एनटीपीसी परियोजना को मुख्य कारण बताया

विशेषज्ञों ने कहा कि उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन का धंसना मुख्य रूप से राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) की तपोवन विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना के कारण है और यह एक बहुत ही गंभीर चेतावनी है कि लोग पर्यावरण के साथ इस हद तक खिलवाड़ कर रहे हैं कि पुरानी स्थिति को फिर से बहाल कर पाना मुश्किल होगा. उन्होंने कहा कि बिना किसी योजना के बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का विकास हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति और भी कमजोर बना रहा है.

जोशीमठ समस्या के दो पहलू, एक बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का विकास, दूसरा जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी समिति की नवीनतम रिपोर्ट के लेखकों में से एक, अंजल प्रकाश ने कहा, जोशीमठ समस्या के दो पहलू हैं. पहला है बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का विकास, जो हिमालय जैसे बहुत ही नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र में हो रहा है और यह बिना किसी योजना प्रक्रिया के हो रहा है, जहां हम पर्यावरण की रक्षा करने में सक्षम हैं. उन्होंने कहा, दूसरा पहलू, जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख कारक है. भारत के कुछ पहाड़ी राज्यों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दिख रहे हैं. उदाहरण के लिए, 2021 और 2022 उत्तराखंड के लिए आपदा के वर्ष रहे हैं. प्रकाश ने कहा, हमें पहले यह समझना होगा कि ये क्षेत्र बहुत नाजुक हैं और पारिस्थितिकी तंत्र में छोटे परिवर्तन या गड़बड़ी से गंभीर आपदाएं आएंगी, जो हम जोशीमठ में देख रहे हैं.

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केदारनाथ आपदा और 2021 में ऋषि गंगा में आई बाढ़ से कुछ भी नहीं सीखा

एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो वाई पी सुंद्रियाल ने कहा, सरकार ने 2013 की केदारनाथ आपदा और 2021 में ऋषि गंगा में आई बाढ़ से कुछ भी नहीं सीखा है. हिमालय एक बहुत ही नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र है। उत्तराखंड के ज्यादातर हिस्से या तो भूकंपीय क्षेत्र पांच या चार में स्थित हैं, जहां भूकंप का जोखिम अधिक है.

जोशीमठ के सैकड़ों घरों में आयीं दरारें

बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब जैसे कुछ प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों के प्रवेश द्वार जोशीमठ के सैकड़ों घरों में दरारें आ गई हैं. चमोली के जिलाधिकारी (डीएम) हिमांशु खुराना ने बताया कि जोशीमठ को भूस्लखन के व्यापक खतरे वाला क्षेत्र घोषित किया गया है और 60 से अधिक प्रभावित परिवारों को अस्थायी राहत केंद्रों में स्थानांतरित कर दिया गया है. जमीनी स्तर पर स्थिति की निगरानी करने वाली समिति के प्रमुख कुमार ने कहा कि नुकसान की सीमा को देखते हुए, कम से कम 90 और परिवारों को जल्द से जल्द सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जायेगा. उन्होंने कहा कि जोशीमठ में कुल 4,500 मकान हैं और इनमें से 610 में बड़ी दरारें पड़ गई हैं, जिससे ये रहने लायक नहीं रह गई हैं.

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