Jayaprakash Narayan Jayanti: जब अपनी मौत की खबर सुनकर खुद ही मुस्कुरा दिए थे जेपी
समाचार एजेंसियों ने पूरे देश में संदेश प्रसारित कर दिया और कुछ ही मिनटों में जसलोक अस्पताल के बाहर भीड़ जमा हो गई. उसमें संवाददाता, फोटोग्राफर और हजारों लोग सुरक्षा कॉर्डन तोड़कर अस्पताल में घुसने की कोशिश करने लगे.
प्रभात कुमार
पटना : भारत के संसदीय इतिहास की यह एक शर्मनाक और दुखद घटना है, जब जेपी (जयप्रकाश नारायण) की मौत से पहले ही संसद में उनके निधन की घोषणा कर दी गई थी. 23 मार्च, 1979 को देश का ध्यान बॉम्बे (अब मुंबई) के जसलोक अस्पताल के एक कमरे पर केंद्रित था, जहां जनता पार्टी (जनता परिवार) के ‘रचयिता’ लोकनायक जयप्रकाश नारायण जीवन के लिए लड़ रहे थे. एक अर्थ में देश उन्हें अपने सबसे बड़े संकट के पल में फिर से खोज रहा था, क्योंकि केंद्र की जनता पार्टी (जेपी) सरकार में अंतर्कलह की खबरें आ रही थीं. इससे पहले ही लोकसभा में जेपी की ‘मौत’ की सूचना दे दी गई. उसी दिन 1.10 बजे दिन में ऑल इंडिया रेडियो ने अपने नियमित कार्यक्रम को रोकते हुए घोषणा की कि जयप्रकाश नारायण की मृत्यु हो गई है. यह जनता सरकार की असंवेदनशीलता और अक्षम्य लापरवाही या गलती के रूप में इतिहास में दर्ज है.
समाचार एजेंसियों ने पूरे देश में संदेश प्रसारित कर दिया और कुछ ही मिनटों में जसलोक अस्पताल के बाहर भीड़ जमा हो गई. उसमें संवाददाता, फोटोग्राफर और हजारों लोग सुरक्षा कॉर्डन तोड़कर अस्पताल में घुसने की कोशिश करने लगे. उधर, इस सूचना के बाद परंपरागत दो मिनट का मौन रख कर सदन को स्थगित कर दिया गया. और हद तो यह हो गई कि प्रधानमंत्री ने भी जेपी के ‘निधन’ पर शोक की राष्ट्रीय अवधि के बारे में कोई घोषणा नहीं की, जैसा कि आम तौर पर जेपी के कद के लोगों के लिए किया जाता है.
लोकसभा स्थगन के करीब आधे घंटे बाद जेपी के जीवित होने की खबर आ गयी. विडंबना यह कि जब उनके निधन की घोषणा हुई, तब मुंबई में जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर अस्पताल से लाउडस्पीकरों पर या घोषणा कर रहे थे कि जेपी अभी जिंदा हैं. चंद्रशेखर जी जसलोक के बाहर भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन भीड़ बेकाबू हो रही थी. केंद्र सरकार से लोगों का विश्वास उठ सा गया था. आम नागरिक को महसूस हुआ कि जेपी के स्वास्थ्य को लेकर जनता जितनी चिंतित थी, उतनी सरकार नहीं थी. अन्यथा, जेपी के बारे में ऐसी सूचना बिना किसी पूरी तरह से कन्फर्म होने के बाद लोकसभा में कैसे दी जा सकती थी.
सच यह भी है कि ये वही समय है, जब तब तक जेपी भी जनता पार्टी सरकार के कार्यों से निराश होने लगे थे. खुश तो नहीं ही थे. 5 जून, 1978 को उन्होंने सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी, ‘जनता (पार्टी) सरकार पिछले कांग्रेस शासन के मार्ग का भी पालन कर रही है. लोग उम्मीद खो रहे हैं, क्योंकि जनता पार्टी लोगों की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर रही है.’
यह भी उल्लेखनीय है कि आपातकाल में चंडीगढ़ जेल में जेपी के गुर्दों को काफी नुकसान पहुंचा था. डॉक्टरों का कहना था कि उन्हें पहले जेल से रिहा कर दिया जाता, तो उनकी किडनी बच सकती थी. वैसे जनता पार्टी के कार्यों के कार्यकलापों ने भी जेपी की बीमारी को बढ़ाने में कम भूमिका नहीं अदा की थी. हालांकि, हम लोगों (वाहिनी के साथियों) के पूछने पर जेपी ने कहा था कि इस सरकार को एक वर्ष का मौका देना चाहिए. जेपी ने पूरे एक वर्ष के लिए जनता पार्टी और सरकार के प्रदर्शन के बारे में कुछ भी नहीं कहने की शपथ ली थी. लेकिन, जनता पार्टी के अधिकतर नेताओं ने जेपी को भूलने के लिए काफी कम समय लगाया.
उधर, जेपी की बीमारी गंभीर होती गयी. जनता पार्टी सही मायनों में आंदोलन के गर्भ से पैदा भी नहीं हुई थी. इसीलिए, उसका नेतृत्व अंतर्कलह से घिरा हुआ था. न तो उनके पास समय था और न ही उनमें अपनी समस्याओं के लिए लोकनायक से सलाह लेने की इच्छा थी.
उधर, जसलोक अस्पताल में जेपी ठीक हो गए. शायद जनता की प्रार्थना का भी असर हुआ हो. स्वास्थ्य मंत्री राज नारायण और राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी भी तिब्बती मंदिर में प्रार्थना करते नजर आए. माना यह भी जाता है कि जब आपातकाल के दौरान जेपी किडनी फेल हो गई, तो श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने उनको एक गुप्त अंतिम संस्कार देने के लिए विस्तृत व्यवस्था कर दी थी. अंतिम संस्कार के बाद उनके शरीर को कैसे लिया जाना चाहिए… कहां और कैसे रखा जाना चाहिए… इसकी भी तैयारी हो गई थी. प्रशासन तंत्र को सारा दिशा-निर्देश दे दिया गया था, लेकिन सच यह भी है कि श्रीमती इंदिरा गांधी उनके प्रति अपनी चिंता दिखाने के लिए अस्पताल पहुंचने वाले पहले व्यक्तियों में से एक थीं. अस्पताल में डॉक्टरों के साथ प्रधानमंत्री श्री देसाई का भी आगमन हुआ.
राज्यसभा और लोकसभा में मुख्य रूप से कांग्रेस (आई) के अनेक सदस्यों ने उस झूठी घोषणा के लिए प्रधानमंत्री के तत्काल इस्तीफे की मांग की और यह भी कहा कि जनता पार्टी ‘शासन करने के लिए अनुपयुक्त’ पार्टी है. जेपी के लंबे समय के निजी सचिव, थॉमस अब्राहम ने कहा, ‘यह एक अक्षम्य गलती थी. जेपी बहुत पीड़ा में हैं, लेकिन वह अब भी जीवित हैं.’ लोकसभा में उनकी मौत की खबर गलत तरीके से घोषित होने के बाद राज्यसभा में कांग्रेस (आई) के कमलापति त्रिपाठी ने जेपी को एक महान व्यक्ति के रूप में याद किया. अन्य सांसदों ने भी उनकी प्रशंसा की. साथ ही, ऐसी गलत घोषणा के लिए सरकार की भर्त्सना की. जेपी की मौत की घोषणा से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई थी. उस समय जेपी अस्पताल में भर्ती थे. जेपी को अपनी ही मौत के बारे में इस प्रकार की घटना पता चली, तो वे बस मुस्कुरा दिए.
नाेट : लेखक जयप्रकाश नारायण द्वारा गठित छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी के होलटाइमर और बोधगया भूमि आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका में रहे. अब भी समाजकर्मी.