नयी दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पश्चिम बंगाल के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष को बंगाल की राजनीति से निकालकर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया है. दिलीप घोष की जगह सुकांत मजुमदार को पश्चिम बंगाल बीजेपी की कमान सौंप दी गयी है. दिलीप घोष ने फेसबुक पोस्ट के जरिये बंगाल बीजेपी के नये प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजुमदार को नयी जिम्मेदारी के लिए शुभकामनाएं दी है. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह ने नयी नियुक्तियों के बारे में सोमवार की रात में चिट्ठी जारी की है.
बंगाल बीजेपी के नये प्रदेश अध्यक्ष डॉ सुकांत मजुमदार इस वक्त लोकसभा के सांसद हैं. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बालूरघाट लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की थी. बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष, जो अब पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाये गये हैं, मेदिनीपुर से लोकसभा सांसद निर्वाचित हुए थे.
Dr Sukanta Majumdar appointed as the West Bengal BJP chief. The current chief Dilip Ghosh has now been appointed as the national vice president of the party. pic.twitter.com/veIlRKGXWd
— ANI (@ANI) September 20, 2021
सुकांत मजुमदार बॉटनी के प्रोफेसर हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे हैं. बंगाल चुनाव के बाद बाबुल सुप्रियो समेत कई अन्य भाजपा नेताओं के तृणमूल में शामिल होने के बाद दिलीप घोष की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे थे. इसके पहले बंगाल में बीजेपी को स्थापित करने में दिलीप घोष ने अहम भूमिका निभायी थी. उनके नेतृत्व में ही बंगाल में बीजेपी ने अपना सबसे बढ़िया प्रदर्शन किया.
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वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पश्चिम बंगाल की 42 में से 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी. उस वक्त बंगाल बीजेपी की कमान दिलीप घोष के ही हाथों में थी. मध्यप्रदेश के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय के साथ मिलकर उन्होंने बेहतरीन रणनीति बनायी थी. लोकसभा चुनाव से पहले मुकुल रॉय और अर्जुन सिंह सरीखे ममता बनर्जी के बेहद करीबी नेताओं को बीजेपी में शामिल कराकर तृणमूल सुप्रीमो को कमजोर कर दिया था.
दिलीप घोष और उनकी टीम ने बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में भी इसी रणनीति पर काम किया था. ममता बनर्जी के बेहद करीबी कई नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराया. हालांकि, इस बार दांव उल्टा पड़ गया. बीजेपी ने बंगाल विधानसभा की 200 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था, लेकिन 100 सीटें भी नहीं जीत पायी. बंगाल के चुनाव में आशा के अनुरूप परिणाम नहीं आने के बाद पार्टी के कई सीनियर लीडर्स ने दिलीप घोष और कैलाश विजयवर्गीय को आड़े हाथ लिया.
चुनाव के एक महीने बाद ही मुकुल रॉय वापस ममता बनर्जी की शरण में लौट गये. उनके साथ कई और नेताओं ने तृणमूल कांग्रेस में वापसी की. पार्टी के लिए सबसे बुरी स्थिति तब हुई, जब नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में दो बार मंत्री रहे सिंगर से नेता बने बाबुल सुप्रियो ने बंगाल बीजेपी के नेतृत्व पर सवाल खड़े करते हुए पहले पार्टी छोड़ी और बाद में तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया.