भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने बार के वरिष्ठ सदस्यों को अपने जूनियर के साथ अच्छे व्यवहार और उनके वेतन के बारे में तत्काल कार्रवाई करने का आह्वान किया. उन्होंने बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में यह भी पूछा कि कितने वरिष्ठ अपने कनिष्ठों को अच्छा वेतन देते हैं.
कई जूनियर वकीलों के पास खुद के बैठने के लिए कोई कमरा भी नहीं
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, कितने की जूनियर वकील हैं, जिनके पास बैठने के लिए खुद का कोई स्थान नहीं है, कोई कुर्सी नहीं है. उन्होंने आगे कहा, यदि आप दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बैंगलोर में रहते हैं, तो एक युवा वकील को रहने में कितना खर्च आयेगा. उसके पास घर का किराया, ट्रांसपोटेशन और खाने का खर्च पूरा करने का दबाव रहता है. उन्होंने जूनियरों को संरक्षण देने की बात दोहराते हुए कहा, युवा वकीलों के वेतन के बारे में हमें विचार करना चाहिए. कुछ बदलाव की जरूरत है. सीजेआई ने कहा, सीनियर होने के नाते ऐसा करने का बोझ हमपर है.
सीजेआई ने सुनायी अपनी कॉलेज लाइफ की कहानी
सेजेआई ने कार्यक्रम में वकीलों को संबोधित करते हुए अपने कॉलेज लाइफ की एक अच्छी और प्रेरणादायी स्टोरी सुनायी. जब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में लॉ का छात्र हुआ करता था. उस उसय मेरे एक दोस्त ने चाय पीने के दौरान पूछा, अब तू करेगा क्या? जिंदगी कैसे गुजारेगा. उसके सवाल पर मैंने बताया कि लॉ की प्रैक्टिस कर अपना जीविकोपार्जन करेंगे. तो मेरे जवाब से असंतुष्ट मेरे दोस्त ने सलाह दी, क्यों नहीं गैस एजेंसी या ऑयल डीलरशिप ले लेते हो, ताकी जीवन आसानी से चल सके. उन्होंने कहा, मेरे दोस्त की चिंता हमारे पेशे के बारे में सच्चाई को दर्शाता है.
युवा वकीलों को मानते हैं अपना गुलाम
सीजेआई ने कहा, हमारे पेशे अकसर अपने से जूनियर वकीलों को अपना गुलाम मानने की परंपरा चल पड़ी है. ऐसा इसलिए क्योंकि हम इसी तरह आगे बढ़े हैं. उन्होंने आगे कहा, लेकिन अब हम जूनियर को यह नहीं बता सकते हैं कि हम कैसे आगे बढ़े.
मुकदमे की फाइल के बगैर वकील वैसे ही जैसे बिना बल्ले के सचिन : सीजेआई
इससे पहले सीजेआई ने मुकदमे की फाइल के बिना पेश होने पर एक वकील को फटकार लगाते हुए कहा था, ब्रीफ के बिना वकील वैसे ही होता है, जैसे बिना बल्ले के सचिन तेंदुलकर. ये खराब लगता है. सीजेआई के इस बयान को भी लोगों ने काफी पसंद किया था.