राजधानी दिल्ली में निर्भया के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उसकी हत्या के बाद पूरा देश आंदोलित हो उठा था. देश के कोने-कोने से एक ही मांग उठ रही थी कि निर्भया को इंसाफ मिले और उसके गुनहगारों को फांसी दी जाये. आखिरकार, सात साल तीन महीने तीन दिन बाद वह वक्त आया.
16 दिसंबर, 2012
देश की राजधानी की वो मनहूस रात
23 साल की फिजियोथेरेपी छात्रा निर्भया अपने दोस्त अवनींद्र पांडे के साथ दक्षिण दिल्ली के साकेत मॉल से ‘लाइफ ऑफ पाई’ फिल्म देखकर निकलती है. रात के लगभग 9 बजे रहे थे. रविवार था इसलिए सड़कों पर भीड़ कम थी. दोनों एक ऑटो लेकर मुनीरका आये, जहां से उन्हें अपने घर पालम जाने के लिए बस पकड़नी थी. दोनों बस स्टॉप पर इंतजार कर रहे थे तभी एक खाली चार्टर्ड बस पहुंची. नाबालिग खलासी ने ‘पालम, नजफगढ़, द्वारका’ की आवाज लगायी. यह वही ‘यादव’ बस थी जिसे लेकर आरके पुरम के रविदास कैंप से ड्राइवर राम सिंह, मुकेश, अक्षय, पवन, विनय और एक नाबालिग गलत नीयत से निकले थे. सभी नशे में थे. उन्होंने निर्भया के साथ अभद्रता शुरू कर दी.
विरोध करने पर उसके दोस्त अवनींद्र को लोहे के सरिये से पीटा गया, जिसके बाद वह होश खो बैठा. इसके बाद सभी छह मुजरिमों ने निर्भया के साथ दुष्कर्म किया. नाबालिग बलात्कारी ने निर्भया के गुप्तांग में लोहे का सरिया घुसा दिया, जिससे उसकी आंतें तक क्षतिग्रस्त हो गयीं. फिर उन्होंने दोनों को लगभग निर्वस्त्र हालत में महिपालपुर इलाके के पास चलती बस से ही बाहर फेंक दिया. राहगीरों से सूचना पाकर पुलिस पहुंची और दोनों को सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया.
17-21 दिसंबर
पांच दिन में गिरफ्तार हुए सभी मुजरिम
देश के दिल में हुई इस हैवानियत से देशवासी दहल उठे. भारी दबाव के बीच दिल्ली पुलिस ने 17 दिसंबर को ताबड़तोड़ छानबीन शुरू की और उसी दिन मुख्य मुजरिम ड्राइवर राम सिंह को बस से ही गिरफ्तार किया गया. उसकी निशानदेही पर 18 को तीन मुजरिम मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, और विनय शर्मा गिरफ्तार किये गये. 19 को नाबालिग मुजरिम की गिरफ्तारी हुई. इसके बाद बचे एक मुजरिम अक्षय ठाकुर को 21 दिसंबर को बिहार से गिरफ्तार किया गया.
20-29 दिसंबर
10 दिन जब दिल्ली हिल उठी
सामूहिक दुष्कर्म की इस नृशंस घटना ने सभी को झकझोर दिया. सभी के दिल में एक ही बात थी- बस! बहुत हुआ, यह रुकना चाहिए. 18 दिसंबर को इस मामले की गूंज संसद में सुनायी पड़ी, जहां आक्रोशित सांसदों ने बलात्कारियों के लिए मृत्युदंड की मांग की. विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत 20 दिसंबर को दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के घर के सामने से हुई. 22 तारीख तक आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया. इंडिया गेट पर जनाक्रोश का अभूतपूर्व नजारा देखने को मिला. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच कई बार संघर्ष भी हुआ.
हालात को देखते हुए केंद्र सरकार ने 23 दिसंबर को जस्टिस वर्मा समिति का गठन किया गया, जिसे दुष्कर्म के मामलों के जल्दी निबटारे और सजा बढ़ाने के प्रावधानों पर सिफारिश देने को कहा गया. 24 दिसंबर को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को टीवी के माध्यम से इंडिया गेट पर जमे प्रदर्शनकारियों से घर लौटने की अपील की गयी. उन्होंने महिलाओं की सुरक्षा मजबूत करने का आश्वासन दिया. निर्भया के सिंगापुर में अंतिम सांस लेने के बाद भी जोरदार विरोध प्रदर्शन हुए. कुल मिलाकर, लगभग 10 दिनों तक दिल्ली हिल उठी. इसके अलावा, देशभर में जगह-जगह मोमबत्ती मार्च निकाले गये.
29 दिसंबर
निर्भया ने सिंगापुर में ली आखिरी सांस
सफदरजंग अस्पताल में डॉक्टर निर्भया के साथ हुई बर्बरता देख सिहर उठे. 10 दिनों तक उन्होंने उसे बचाने के लिए अथक प्रयास किया, लेकिन उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी. उसे वेंटिलेटर पर रखा गया था. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सफदरजंग अस्पताल जाकर पीड़ित लड़की का हालचाल जाना. 11वें दिन 26 दिसंबर को बेहद नाजुक हाल में निर्भया को एयर-एंबुलेंस से सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल ले जाया गया. 29 दिसंबर को निर्भया ने भोर में करीब 2.15 बजे वहां दम तोड़ दिया.
11 मार्च, 2013
जेल में ही खुदकुशी की मुख्य मुजरिम ने
11 मार्च, 2013 की भोर में मुख्य मुजरिम राम सिंह का शव तिहाड़ जेल के उसके वार्ड में एक ग्रिल से लटका मिला. जेल प्रशासन का कहना था कि राम सिंह ने अपने बिस्तर से धागे निकालकर फंदा बनाया और खुदकुशी कर ली. हालांकि उसके मां-बाप ने हत्या का आरोप लगाते हुए कहा था कि राम सिंह एक हाथ में समस्या के चलते खुद से फांसी नहीं लगा सकता. यह बात भी सामने आयी थी कि जेल के बाकी कैदी निर्भया के गुनहगारों से नफरत करते थे.
10 सितंबर, 2013
नौ महीने के अंदर दोषी करार दिये गये आरोपी
दिल्ली पुलिस ने घटना के 15 दिनों बाद ही 2 जनवरी, 2013 को इस मामले में आरोपपत्र दाखिल कर दिया. साकेत स्थित फास्ट ट्रैक कोर्ट ने नौ महीने तक सुनवाई करने के बाद 10 सितंबर, 2013 को चारों जीवित बचे बालिग आरोपियों को दोषी करार दिया और 13 सितंबर को उन्हें मौत की सजा सुनायी. मुजरिमों ने निचली अदालत के फैसले को दिल्ली हाइकोर्ट में चुनौती दी. हाइकोर्ट ने भी तेजी से सुनवाई करते हुए 13 मार्च, 2014 को चारों बालिग आरोपियों की मौत की सजा पर मुहर लगा दी.
5 मई, 2017
सुप्रीम कोर्ट ने लगायी फांसी की सजा पर मुहर
दिल्ली हाइकोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर हुई. उसने 27 मार्च 2017 को सुनवाई पूरी की और 5 मई को चारों बालिग आरोपियों की मौत की सजा बरकरार रखी. इसके बाद मुकेश सिंह ने 9 नवंबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट में फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की. तब से लेकर फांसी के ठीक पहले तक मुजरिमों की ओर से बारी-बारी से क्यूरेटिव पिटीशन व राष्ट्रपति के पास दया याचिकाओं का सिलसिला चलता रहा. सुप्रीम कोर्ट व राष्ट्रपति द्वारा सभी याचिकाएं खारिज की गयीं.
निर्भया के छह गुनहगार
पवन गुप्ता
पवन का परिवार यूपी के बस्ती जिले के लालगंज थाने के जगन्नाथपुर गांव से दिल्ली आकर बसा था. वह फल व जूस बेचने का काम करता था. पवन दिल्ली में ही पैदा हुआ. उसका परिवार गांव में नया मकान बनवा रहा था, लेकिन इस कांड के बाद से काम रुक गया और निर्माणाधीन घर अब खंडहर जैसा हो चुका है. वारदात के समय पवन की उम्र 19 साल थी. उसकी ओर से खुद के नाबालिग होने का दावा किया गया था, जो अदालत में खारिज हो गया.
अक्षय ठाकुर
स्कूली पढ़ाई बीच में ही छोड़ अक्षय कुमार सिंह उर्फ अक्षय ठाकुर बिहार से दिल्ली आया था. उसका परिवार औरंगाबाद जिले के टंडवा थाने के लहंगकर्मा गांव में रहता है. घर में मां-बाप, भाई, पत्नी और सात साल का बेटा है. उसके दो भाई विनय और अभय भी दिल्ली में काम करते थे, लेकिन इस घटना के बाद दोनों की नौकरी छूट गयी. अभी दोनों गांव में मजदूरी कर रहे हैं. वारदात के समय अक्षय की उम्र 28 साल थी और वह बस में खलासी का काम करता था.
मुकेश सिंह
वारदात के समय मुकेश की उम्र 22-23 साल थी. वह मुख्य आरोपी राम सिंह का छोटा भाई था और अन्य आरोपियों की तरह ही दक्षिण दिल्ली के आरके पुरम स्थित रविदास कैंप में ही, दो कमरों की एक झुग्गी में बड़े भाई के साथ रहता था. वह बीच-बीच में गाड़ी चलाने का काम करता था. आरोप है कि वारदात के दिन गाड़ी मुकेश ही चला रहा था. वह शराब और झगड़े-झमेले में अक्सर ही बड़े भाई का साथी रहता था. इलाके में वह खासा बदनाम था.
विनय शर्मा
जिम असिस्टेंट और फिटनेस इंस्ट्रक्टर का काम करनेवाला विनय शर्मा वारदात के समय 20 साल का था. सभी मुजरिमों में वह अकेला है, जिसने कॉलेज का मुंह देखा था. वह कामचलाऊ अंग्रेजी भी बोल लेता था. उसका घर रविदास कैंप में वारदात के मुख्य मुजरिम राम सिंह के घर से थोड़ी ही दूर पर है. 24 अगस्त, 2016 की रात उसने तिहाड़ जेल में एक गमछे के जरिये वेंटीलेटर से लटक कर जान देने की कोशिश की थी, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने उसे बचा लिया.
राम सिंह
मुख्य मुजरिम राम सिंह वारदात के समय 33 साल का था. उसका परिवार राजस्थान के करौली जिले से आकर रविदास कैंप में बसा था. इस मामले के बाकी सभी गुनहगार भी दक्षिण दिल्ली की इसी झुग्गी बस्ती के थे. राम सिंह ने गांव में प्राइमरी के दौरान भी पढ़ाई छोड़ दी थी. वह ड्राइवर का काम करता था. पड़ोसियों के मुताबिक वह शराब पीकर झमेला करने के लिए बदनाम था और बस्ती की औरतों-लड़कियों पर बुरी नजर रखता था.
वह पड़ोस में रहनेवाली, तीन बच्चों की एक मां को लेकर भाग गया था. 2008 में उस महिला की कैंसर से मौत के बाद वह रविदास कैंप लौट आया था. 2009 में सड़क हादसे में उसका दाहिना बुरी तरह टूट गया था. हाथ में रॉड पड़े होने के बावजूद उसने ड्राइवरी नहीं छोड़ी थी. शराब की लत और बुरी संगत ने उसे दरिंदगी की हद तक पहुंचा दिया.
नाबालिग मुजरिम
छठा गुनहगार वारदात के समय 17 साल का, यानी नाबालिग था. इसलिए उसका मामला जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड भेजा गया. 31 अगस्त, 2013 को बोर्ड ने उसे सामूहिक दुष्कर्म और हत्या का दोषी करार देते हुए तीन साल की सजा सुनायी, जो नाबालिगों के लिए अधिकतम सजा है.
तीन साल बाल सुधार गृह में रहने के बाद 20 दिसंबर 2015 को उसे रिहा कर दिया गया. बताया जाता है कि सरकार की पुनर्वास योजना के तहत वह एक एनजीओ की निगरानी में बदले नाम से दक्षिण भारत में किसी होटल में बावर्ची का काम करता है. पश्चिम उत्तर प्रदेश का बाशिंदा यह मुजरिम 11 साल की उम्र में दिल्ली आया था. उसका परिवार बेहद गरीब था और पिता मानसिक रोगी. छह-भाई बहनों में सबसे बड़े इस लड़के ने दिल्ली आकर छोटे-मोटे काम शुरू किये और कुसंगत का शिकार बन गया.
महिला सुरक्षा के लिए देश को जगा गयी निर्भया : निर्भया मामले के बाद बनी जस्टिस जेएस वर्मा समिति ने 23 जनवरी 2013 को अपनी सिफारिशें दीं. इसके आधार पर केंद्र सरकार ने संसद में आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक लाकर आइपीसी, भारतीय साक्ष्य कानून और सीआरपीसी में संशोधन किया, जो 3 अप्रैल 2013 से लागू हुआ. इस संशोधन के जरिये ‘बलात्कार’ की परिभाषा का दायरा बढ़ाया गया. तेजाब हमले में सजा के प्रावधान कड़े किये गये. इसके अलावा, महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों की श्रेणी में ताक-झांक और पीछा करने को भी शामिल किया गया. पहले जबरन किये गये पिनिट्रेटिव सेक्स को ही बलात्कार माना जाता था, लेकिन इस संशोधन के बाद दूसरे तरीकों से किये गये गंभीर यौन हमलों को भी बलात्कार की परिभाषा में शामिल किया गया.
इसके अलावा संसद से नया जुवेनाइल जस्टिस कानून भी पास हुआ, जिसमें बलात्कार, हत्या और तेजाब हमले जैसे जघन्य अपराधों में 16 से 18 साल के नाबालिग आरोपियों पर भी बालिगों की तरह ही आम अदालतों में मुकदमा चलता है. इस नये कानून के तहत 16 से 18 साल के ऐसे नाबालिगों को जघन्य अपराधों के लिए बाल संरक्षण गृह की जगह जेल की सजा मिल सकती है. हालांकि, यह सजा अधिकतम 10 साल ही हो सकती है और फांसी या उम्रकैद नहीं दी जा सकती.
1947 से लेकर अब तक देश में 720 को फांसी : उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, 1947 से लेकर अब तक कुल 720 मुजरिमों को फांसी पर लटकाया जा चुका है. जितनी फांसियां हुई हैं उनमें से आधी उत्तर प्रदेश में हुई हैं. इसके बाद हरियाणा में 90 और मध्य प्रदेश में 73 फांसियां हुई हैं. आजादी के बाद सबसे चर्चित फांसी 15 नवंबर 1949 को महात्मा गांधी के हत्यारों नाथूराम गोडसे और नारायण डी आप्टे को हुई. दोनों को हरियाणा के अंबाला जेल में लटकाया गया. भारत में अंतिम फांसी 1993 के मुंबई धमाकों के दोषी याकूब मेमन को जुलाई 2015 में दी गयी. इसके बाद निर्भया के गुनहगारों की बारी है.
दुष्कर्म व हत्या के मामले में आखिरी फांसी 2004 में : दुष्कर्म व हत्या के मामले में आखिरी बार फांसी 2004 में पश्चिम बंगाल के धनंजय चटर्जी को दी गयी थी. कोलकाता में 15 वर्षीय एक स्कूली छात्रा के साथ बलात्कार और उसकी हत्या के मुजरिम धनंजय चटर्जी को 14 अगस्त 2004 को तड़के साढ़े चार बजे फांसी पर लटका दिया गया था. 14 साल तक चले मुकदमे और विभिन्न अपीलों और याचिकाओं को ठुकराये जाने के बाद धनंजय को कोलकाता की अलीपुर जेल में फांसी दी गयी थी. धनंजय को फांसी के फंदे पर करीब आधे घंटे तक लटकाये रखा गया, जिसके बाद शव को उतारकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया.
2015 में याकूब मेमन के बाद निर्भया के दोषियों की बारी : 1993 मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन को 30 जुलाई, 2015 को सुबह 6.25 बजे फांसी दी गयी. उसके बाद से किसी भी तरह के अपराध में किसी को भारत में फांसी नहीं हुई है. अब 20 मार्च, 2020 को निर्भया के गुनहगारों की बारी है. याकूब को फांसी देने की प्रक्रिया में दो घंटे से ज्यादा समय लगा था. तड़के उसे नींद से उठाया गया. इसके बाद वह नहाने गया. फिर उसे धार्मिक किताब पढ़ने या प्रार्थना करने का समय दिया गया. याकूब को उसकी पसंद का खाना दिया गया. खास बात यह रही कि याकूब को किसी जल्लाद ने नहीं, बल्कि जेल सुपरिटेंडेंट योगेश देसाई ने फांसी दी. निर्भया के गुनहगारों के लिए पवन जल्लाद को मेरठ से तिहाड़ बुलाया गया है.
भारत में मौत की सजा के लिए फांसी ही क्यों? : ब्रिटिश राज में बनी दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 में मौत की सजा देने के लिए फांसी का प्रावधान था. आजादी के बाद भी यही व्यवस्था लागू रही. इसकी धारा 354(5) कहती है, ‘जब किसी व्यक्ति को मौत की सजा सुनायी जायेगी तो उसे तब तक गर्दन से लटकाया जायेगा जब तक उसकी मौत न हो जाये.’ सेना कानून, नौसेना कानून और वायुसेना कानून में फांसी के अलावा गोली मारने का भी विकल्प है. भारत में दोषी को फंदे से इस तरह लटकाया जाता है कि उसकी गर्दन टूट जाये और फिर उसे तब तक लटकाये रखा जाता है जब तक उनका दम न निकल जाये.
पाकिस्तान, सिंगापुर, जापान में भी सजा-ए-मौत के लिए फांसी दी है, बस फंदे से लटकाने के तरीकों में थोड़ा-बहुत अंतर होता है. अमेरिका में मौत की सजा देने के लिए जहरीले इंजेक्शन का इस्तेमाल होता है. उसके कुछ राज्यों में बिजली के झटके से भी जान ली जाती है. दुनिया में सऊदी अरब ही इकलौता ऐसा देश है जहां सिर कलम कर मौत की सजा दी जाती है. एक तलवार से अपराधी का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता है. इसे देखने के लिए भीड़ जुटती है. इंडोनेशिया में फायरिंग स्क्वॉड का इस्तेमाल होता है. चीन, नॉर्थ कोरिया, ताइवान में भी गोली मारी जाती है.