नई दिल्ली : केंद्र की मोदी सरकार ने बुधवार को अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल कर लिया. यूपी चुनाव और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की ताकत की वास्तविक पहचान कराने के लिए उनके भतीजे और कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया को तो उनका ईनाम मिल गया, लेकिन जिस पार्टी को छोड़कर सिंधिया आए थे, उसी पार्टी को छोड़कर यूपी से कांग्रेसी नेता जितिन प्रसाद ने भी भाजपा का दामन अभी हाल ही के महीनों में थामा था. वे अब भी भाजपा का प्रसाद पाने का इंतजार कर रहे हैं.
जिस समय जितिन प्रसाद ने कांग्रेस के हाथ को झटककर भाजपा का दामन थामा था, उस समय मीडिया में राजनीतिक विश्लेषक इस बात की चर्चा जोर-शोर से कर रहे थे कि यूपी में भाजपा से नाराज ब्राह्मण मतदाताओं को पक्ष में करने के लिए उन्हें पार्टी में शामिल कराया गया है. तब यह भी चर्चा की जा रही थी कि पार्टी आलाकमान उन्हें ठाकुरों के समानांतर खड़ा करने के लिए या तो राज्य में पिछले दरवाजे से प्रसाद वितरण कर सकता है या फिर केंद्र में अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है.
लेकिन, बुधवार को जब मोदी सरकार ने अपने नए सिपहसालारों को शपथ दिलाना शुरू किया, तो केंद्रीय नेतृत्व में उनका कहीं नामोनिशान नहीं था. इसके पहले भी, जब सूबे की योगी सरकार राजनीतिक संकट में घिरी थी, तब भी जितिन को कोई खास तवज्जो नहीं दी गई. अब जबकि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर केंद्रीय नेतृत्व ने पूरी तरह से बिसात बिछा दी है, तो जितिन न तो सूबे कहीं नजर आ रहे हैं और न ही केंद्र में.
आपको बता दें कि जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का एक प्रभावशाली ब्राह्मण चेहरा माना जाता था, लेकिन जितिन प्रसाद के राजनीति में आने से बहुत पहले ब्राह्मण कांग्रेस से दूर हो गए थे. लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद जितिन प्रसाद ने 2020 में ब्राह्मण चेतना परिषद की शुरुआत की. वह हाल के महीनों में अपने ब्रह्म चेतना संवाद के माध्यम से ब्राह्मण मतदाताओं को जुटाने का प्रयास कर रहे हैं. उनके इस अभियान में वे ब्राह्मण मतदाता हैं, जिन्होंने बहुत पहले खुद को कांग्रेस से दूर कर लिया था.
उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव अब कुछ ही महीने बाद होने वाला है. भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस बात को लेकर चिंतित है कि वर्तमान की योगी सरकार सूबे के ब्राह्मणों के खिलाफ है. सूबे में करीब 10 से 12 फीसदी ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या है, लेकिन समझा यह जाता है कि ये 10 से 12 फीसदी ब्राह्मण मतदाता करीब 25 फीसदी मतदाताओं के बीच प्रभावशाली हैं.
Posted By : Vishwat Sen