नयी दिल्ली : ग्वालियर राजघराने से ताल्लुक रखने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बुधवार 11 मार्च को कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा में शामिल हो गये. सिंधिया ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में भाजपा का दामन थामा. सिंधिया का भाजपा में शामिल होना दादी विजयराजे सिंधिया के नक्शे कदम पर चलते हुए ‘घर वापसी’ जैसा है.
भाजपा में शामिल होने के बाद उन्होंने कहा, कांग्रेस अब पहले वाली पार्टी नहीं रही. उन्होंने मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार पर जमकर निशाना साधा और कहा, राज्य में किसान त्रस्त हैं और युवाओं के पास रोजगार की समस्या है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता ने भी जनसंघ से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. नाटकीय घटनाक्रम में सिंधिया (49) का इस्तीफा आना कांग्रेस के अंदर प्रौढ़ एवं युवा नेता के बीच सत्ता संघर्ष के दौरान पार्टी के अपना घर संभाल पाने में नाकाम रहने को दर्शाता है.
ज्योतिरादित्य का मानना है कि वह कांग्रेस में जिस चीज के हकदार थे उन्हें वह नहीं मिला. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे अपने इस्तीफा पत्र में कहा, इसलिए, अब मेरे लिए आगे बढ़ने का वक्त आ गया है. उनका इस्तीफा ऐसे वक्त आया है जब उनके दिवंगत पिता माधवराव सिंधिया की 75 वीं जयंती है.
माधवराव सिंधिया ने अपना संगठन बनाने के लिए 1996 में कांग्रेस छोड़ दी थी. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक ज्योतिरादित्य का इस्तीफा राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण और प्रतीकात्मक है. मंगलवार सुबह जब पूरा देश होली का जश्न मना रहा था, तभी उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की. इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके 7, लोक कल्याण मार्ग स्थित आवास पर मुलाकात की.
मध्य प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से चल रहे राजनीतिक घमासान के बीच ज्योतिरादित्य के कांग्रेस छोड़ने और पार्टी के 22 विधायकों के इस्तीफे से राज्य की 15 माह पुरानी कमलनाथ सरकार गिरने के कगार पर पहुंच गई है.
सिंधिया ने कांग्रेस अध्यक्ष को मंगलवार को लिखे पत्र में कहा है कि आज के घटनाक्रम की पृष्ठभूमि पिछले एक साल से तैयार हो रही थी. राज्य के गुना से चार बार सांसद रहे सिंधिया ने कहा कि उन्हें 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जीत हासिल करने के बाद उनका वाजिब हक–मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री पद–नहीं दिया गया.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के लंबे समय तक सहयोगी रहे सिंधिया का इस्तीफा कांग्रेस के अंदर मौजूदा शक्ति समीकरण को बदलने वाला है. कांग्रेस में कई युवा नेता नेतृत्व की भूमिका मिलने का इंतजार कर रहे हैं लेकिन दिग्गज नेता खुद को काबिज रखते हुए उनके लिए बहुत कम गुंजाइश छोड़ रहे हैं. सिंधिया के वफादार कार्यकर्ताओं ने इस बात का जिक्र किया कि उन्होंने कांग्रेस को झटका देकर और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ तथा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के नियंत्रण से बाहर निकलते हुए अपने पिता के अपमान का बदला लिया. ये दोनों नेता माधवराव सिंधिया के वक्त में राजनीतिक रूप से सक्रिय थे.
ज्योतिरादित्य की बुआ वसुंधरा राजे (राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री) और यशोधरा राजे सिंधिया (पूर्व मंत्री) सहित समूचा ग्वालियर शाही परिवार अब भाजपा के खेमे में हैं. यशोधरा राजे सिंधिया ने मंगलवार को कहा, उनके (ज्योतिरादित्य के) लिए यह घर वापसी जैसा है.
कांग्रेस के पूर्व सांसद और 16 वीं लोकसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक रहे ज्योतिरादित्य ने लंबे समय तक अपने खुद के राजनीतिक मार्ग का अनुसरण किया. उनकी दिवंगत दादी विजय राजे सिंधिया 1967 में जनसंघ की संस्थापक रही थीं. उनके पिता ने 1980 में कांग्रेस में शामिल होने से पहले 1971 में जनसंघ से राजनीति में पदार्पण किया था. बाद में, माधवराव ने 1996 में संक्षिप्त अवधि के लिए कांग्रेस छोड़ी और बाद में उन्हें शामिल होने के लिए मना लिया गया.
माधवराव जिस तरह से राजीव गांधी के विश्वस्त रहे थे, ठीक उसी तरह ज्योतिरादित्य भी राहुल गांधी के सहयोगी थे. हालांकि, दिवंगत माधवराव 1971 से कभी चुनाव नहीं हारे, जबकि उनके बेटे ज्योतिरादित्य इस परंपरा को कायम नहीं रख सके और 2019 के आम चुनाव में गुना सीट पर अपने एक पूर्व सहयोगी से हार गये.
मध्य प्रदेश में राजनीतिक रूप से मुख्यमंत्री कमलनाथ और पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह द्वारा दरकिनार किये जाने के बाद ज्योतिरादित्य ने कुछ महीने पहले अपने ट्विटर प्रोफाइल से कांग्रेस का उल्लेख हटा दिया. पार्टी के अंदर के लोगों का कहना है कि सिंधिया ने महसूस किया कि राहुल गांधी ने उन्हें निराश किया उन्होंने अपने विश्वस्त (ज्योतिरादित्य) को मुख्यमंत्री बनाने पर जोर नहीं दिया. यहां तक कि बाद में भी, सिंधिया को मप्र कांग्रेस प्रमुख भी नहीं बनाया गया और कमलनाथ ने यह पद अपने पास ही रखा.
उन्हें जनवरी 2019 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का महासचिव नामित किया गया था. लेकिन वह उप्र में पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी के अलावा एक पूरक भूमिका में ही थे. ज्योतिरादित्य 2002 में एक उपचुनाव जीत कर 2002 में गुना से पहली बार सांसद बने थे. उनके पिता की मृत्यु के बाद यह उपचुनाव कराने की जरूरत पड़ी थी. उस वक्त वह 31 साल के थे.
आगे चल कर वह 2007 में कांग्रेस नीत संप्रग-1 सरकार में संचार राज्य मंत्री बने. साल 2009 में वह वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री बने और 2012 में उन्हें संप्रग-2 में ऊर्जा राज्यमंत्री नियुक्त किया गया. साल 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद सोनिया गांधी ने उन्हें लोकसभा में पार्टी का मुख्य सचेतक नियुक्त किया था.