कारगिल विजय दिवस : मिलिए उन वीर सपूतों से, जिनके अदम्य साहस ने दिलायी जीत
26 जुलाई, कारगिल विजय दिवस, उन शहीदों को नमन करने का दिन है, कारगिल युद्ध में देश के जिन वीर सपूतों ने अदम्य साहस और शौर्य का परिचय दिया. आइए उन वीर सपूतों को याद करते हैं...
कारगिल विजय दिवस. इस साल 26 जुलाई को कारगिल विजय के 24 वर्ष पूरे हो रहे हैं. यह दिन उस गौरव के पल को याद करने का दिन है, जब देश के वीर सपूतों ने ऑपरेशन विजय को सफलतापूर्वक अंजाम देकर दुश्मन देश के घुसपैठियों को मार भगाया था. इस युद्ध में हमारे बहुत से जवान शहीद हुए. यह उन शहीदों को नमन करने का दिन है. कारगिल युद्ध में देश के वीर सपूतों ने अदम्य साहस और शौर्य का परिचय दिया. आइए इस मौके पर वीर सपूतों को करते हैं याद…
कैप्टन विक्रम बत्रा
कैप्टन विक्रम बत्रा उन वीर योद्धाओं में से एक हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध में सामरिक रूप से महत्वपूर्ण कई चोटियों पर भारत को कब्जा दिलाया था. हिमाचल प्रदेश के छोटे से कस्बे पालमपुर के रहने वाले विक्रम को पाकिस्तानी लड़ाकों ने भी उनकी बहादुरी के लिए ‘शेरशाह’ के नाम से नवाजा था. सामने से होती भीषण गोलीबारी में घायल होने के बावजूद उन्होंने अपनी डेल्टा टुकड़ी के साथ चोटी नंबर 4875 पर हमला किया, मगर एक घायल साथी अधिकारी को युद्धक्षेत्र से निकालने के प्रयास में मां भारती का लाडला विक्रम बत्रा 7 जुलाई की सुबह शहीद हो गया. अमर शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को अपने अदम्य साहस व बलिदान के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैनिक पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया.
कैप्टन अनुज नैय्यर
17 जाट रेजिमेंट के बहादुर कैप्टन अनुज नैय्यर टाइगर हिल्स सेक्टर की एक महत्वपूर्ण चोटी ‘वन पिंपल’ की लड़ाई के हीरो थे. प्वाइंट 4875 की यह पोस्ट 6000 फुट की ऊंचाई पर थी. इसे जीतना बेहद जरूरी था, ताकि आगे की राह को आसान बनाया जा सके. एक दल के साथ कैप्टन नैय्यर ने 6 जुलाई की रात को चढ़ाई शुरू की. कदम-कदम पर मौत से सामना होना तय था, लेकिन कैप्टन नैय्यर साथियों के साथ आगे बढ़ते रहे. नैय्यर इस लड़ाई में अपने छह साथियों के शहीद होने के बाद भी मोर्चा संभाले रहे. वे गंभीर रूप से घायल हो गये थे, लेकिन आखिरी सांस तक वह डटे रहे. आखिरकार भारत को इस मोर्चे में जीत मिली. इस वीरता के लिए कैप्टन अनुज को मरणोपरांत दूसरे सबसे बड़े सैनिक सम्मान ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया.
कैप्टन मनोज पांडेय
1/11 गोरखा राइफल्स के कैप्टन मनोज पांडेय की बहादुरी की कहानियां आज भी बटालिक सेक्टर के ‘जुबार टॉप’ पर लिखी है. कारगिल युद्ध के दौरान उनकी बटालियन सियाचिन में थी और उनका तीन महीने का कार्यकाल भी पूरा हो गया था, लेकिन उसी दौरान आदेश आया कि बटालियन को कारगिल की तरफ बढ़ना है. अपनी गोरखा पलटन को लेकर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में ‘काली माता की जय’ के नारे के साथ उन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये. अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में लड़ते हुए कैप्टन मनोज ने दुश्मनों के कई बंकर नष्ट कर दिये. गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद मनोज अंतिम क्षण तक लड़ते रहे. भारतीय सेना की ‘साथी को पीछे न छोड़ने की परंपरा’ का मरते दम तक पालन करने वाले मनोज पांडेय को उनके शौर्य व बलिदान के लिए मरणोपरांत ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया.
सूबेदार मेजर योगेंद्र यादव
यूपी के बुलंदशहर के रहने वाले योगेंद्र यादव उन वीरों में से हैं, जो कारगिल युद्ध के दौरान गंभीर रूप से घायल हो गये थे. मात्र 16 वर्ष, पांच महीने की उम्र में योगेंद्र यादव सेना की 18 ग्रेनेडियर में भर्ती हुए थे. ऑपरेशन विजय के दौरान वे 18वीं ग्रेनेडियर्स की घातक प्लाटून के सदस्य थे. इस प्लाटून को जम्मू कश्मीर के द्रास सेक्टर में टाइगर हिल टॉप को कब्जाने का जिम्मा मिला था. 3 जुलाई, 1999 को दुश्मन की भारी गोलाबारी के बीच योगेंद्र ने इस बर्फीली चट्टान पर चढ़ाई शुरू की और ऊपर पहुंचकर दुश्मन के बंकर को ध्वस्त कर दिया. इस ऑपरेशन में योगेंद्र यादव को एक-दो नहीं, बल्कि कुल 15 गोलियां लगीं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कई पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. युद्धोपरांत 14 महीने तक योगेंद्र यादव को अस्पताल में रहना पड़ा. टाइगर हिल फतह करने पर योगेंद्र यादव को महज 19 वर्ष की उम्र में परमवीर चक्र का सम्मान मिला. वह ऐसे तीसरे जीवित अफसर हैं, जिन्हें सेना का सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र मिला है.
बोफोर्स तोप की भी रही अहम भूमिका
कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ाने में बोफोर्स तोपों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी. इन तोपों ने पाकिस्तानी घुसपैठियों द्वारा कब्जा की गयी चोटियों पर अचूक गोलीबारी करते हुए दुश्मनों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था. स्वीडन से खरीदी गयी इस घातक हथियार से 27 किलोमीटर तक गोले दागे जा सकते थे. वजन में हलका होने के कारण युद्ध भूमि में एक स्थान से दूसरे स्थान पर इसे ले जाना अपेक्षाकृत आसान था. अत: यह तोप पहाड़ी इलाकों में बहुत उपयोगी साबित हुआ. 155 एमएम लंबी बैरल वाली यह तोप एक मिनट में 10 गोले दाग सकती है तथा यह -3 डिग्री से लेकर 70 डिग्री के ऊंचे कोण तक फायर करने की क्षमता रखती है.
अन्य रोचक बातें
कारगिल युद्ध वर्ष 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच लद्दाख के बाल्टिस्तान जिले में लड़ा गया था.
3 मई, 1999 को 5000 पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत में घुसपैठ की और कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया था.
8 मई, 1999 को भारतीय सेना द्वारा घुसपैठियों को वापस खदेड़ने के लिए ‘ऑपरेशन विजय’ शुरू किया गया, जिसकी समाप्ति की घोषणा 26 जुलाई, 1999 को हुई.
कारगिल युद्ध करीब 18 हजार फुट की ऊंचाई पर और -10 डिग्री सेल्सियस के तापमान के साथ लड़ा गया था.
कारगिल युद्ध देश ने भी अपने कई वीर सपूतों को खोया. इस युद्ध में हमने करीब 527 से अधिक वीरों को खो दिया, जबकि 1300 से ज्यादा सैनिक इसमें घायल हो गये थे.