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Explainer: कर्नाटक में लिंगायतों को रिझाने में जुटी भाजपा, 62 उम्मीदवारों पर लगाया दांव

कर्नाटक में भाजपा को जनता दल सेक्यूलर (जेडीएस) और अन्य क्षेत्रीय दलों से जितना खतरा नहीं है, उससे कहीं अधिक खतरा भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस से नजर आ रहा है. यहां के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पटखनी देने के लिए भाजपा पुरजोर कोशिश कर रही है.

बेंगलुरु : कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पछाड़कर जीत हासिल करने के लिए सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हर वह सियासी चाल चल रही है, जिसमें उसे फायदा होता दिखाई दे रहा है. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले हो रहे इस विधानसभा चुनाव में भाजपा अंदरखाते पूरी ताकत झोंके हुई है. इसी क्रम में उसने कर्नाटक के लिंगायत समुदाय के लोगों को रिझाना भी शुरू कर दिया है. बताया जा रहा है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा ने लिंगायत समुदाय के करीब 62 उम्मीदवारों पर दांव लगा दिया है.

भाजपा के लिए कांग्रेस सबसे बड़ा खतरा

चुनावी विशेषज्ञों की मानें, तो कर्नाटक में भाजपा को जनता दल सेक्यूलर (जेडीएस) और अन्य क्षेत्रीय दलों से जितना खतरा नहीं है, उससे कहीं अधिक खतरा भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस से नजर आ रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि यहां के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पटखनी देने के लिए भाजपा पुरजोर कोशिश कर रही है. हालांकि, उनका यह भी कहना है कि इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अगर कर्नाटक में मजबूत होती है, तो 2024 के लोकसभा चुनाव में तो वह भाजपा को टक्कर देगी ही, इसके साथ ही, उसके लिए छत्तीसगढ़ और राजस्थान का विधानसभा चुनाव निकालना भी आसान हो जाएगा.

लिंगायतों पर क्यों खेला दांव

मीडिया की रिपोर्ट और विशेषज्ञों के अनुसार, भाजपा कर्नाटक के चुनावी मैदान में लिंगायत समुदाय के 62 उम्मीदवारों को इसलिए मैदान में उतारा है, क्योंकि वह कांग्रेस के उस आरोप का जवाब देने की कोशिश में लगी है, जिसमें कांग्रेस ने कहा था कि भाजपा लिंगायत समुदाय की अनदेखी कर रही है. अब जबकि भाजपा ने लिंगायत समुदाय के 62 उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया है, तब वह उल्टा कांग्रेस पर ही लिंगायतों की अनदेखी करने का प्रत्यारोप लगा रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि कर्नाटक चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के बीच लिंगायत वार शुरू हो गया है.

भाजपा ने कांग्रेस पर किया वार

लिंगायतों की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए भाजपा ने कांग्रेस पर वार किया है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने अपने एक बयान में कहा है कि कांग्रेस ने लिंगायत समुदाय के लोकप्रिय और निर्वाचित नेता वीरेंद्र पाटिल को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाकर राज्य के लोगों के साथ धोखा किया है. उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस पिछले तीन दशकों में लिंगायत समुदाय के नेताओं को आगे बढ़ने नहीं दिया है. उन्होंने कहा कि अब केवल चुनावी माहौल बनाने के लिए कांग्रेस लिंगायत समुदाय के मुद्दे को उछाल रही है. उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस का रिकॉर्ड ही यह बताता है कि वह लिंगायत विरोधी पार्टी है.

लिंगायत नेता को सीएम फेस बनाने की दी चुनौती

कर्नाटक भाजपा के प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह ने ललकारते हुए कहा कि कांग्रेस को यदि लिंगायत समुदाय के लोगों की इतनी अधिक फिक्र है, तो वह इस समुदाय के किसी नेता को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करके दिखा दे. कर्नाटक भाजपा के दिग्गज नेता बीएस येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र ने भी कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि कर्नाटक के लोग जानते हैं कि लिंगायतों को धोखा किसी पार्टी ने दिया और किसने उनकी अनदेखी की.

लिंगायतों के प्रति भाजपा का झुकाव

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें, तो कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के प्रति भाजपा का झुकाव शुरू से ही रहा है. उनका कहना है कि वर्ष 2004 में भाजपा ने बीएस येदियुरप्पा को दूसरी बार विधानसभा का नेता बनाया था. इसके बाद वर्ष 2006 में भाजपा ने जेडीएस के साथ मिलकर पहली बार सरकार बनाई. उस वक्त बीएस येदियुरप्पा को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था. उन्होंने कहा कि वर्ष 2008 में कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनी और 2019 में बीएस येदियुरप्पा ने दूसरी बार कर्नाटक में मुख्यमंत्री का पद संभाला. उन्होंने कहा कि 2021 में बीएस येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद एक दूसरे लिंगायत नेता बसवराज बोम्मई को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया.

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