Karnataka Election 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो चली है. प्रदेश की तीनों बड़ी पार्टियां जातिगत समीकरण को साधने में लगी हुई हैं. प्रदेश की कुल 225 विधानसभा सीटों में से 224 सीटों पर 10 मई को मतदान होगा जबकि 13 मई को वोटिंग के बाद कर्नाटक में नयी सरकार के गठन का रास्ता साफ हो जाएगा.
दूसरे राज्यों की तरह कर्नाटक की राजनीति में भी जातीय समीकरण काफी महत्व रखता है. कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों का प्रभाव बहुत ज्यादा है जिसे साधे बिना कोई भी पार्टी प्रदेश में सरकार बनाने की सोच भी नहीं सकती है. आइए जानते हैं कि कर्नाटक की राजनीति का जातीय समीकरण क्या है…
पहले बात करते हैं लिंगायत समुदाय की. जी हां..कर्नाटक में सबसे बड़ा समुदाय लिंगायत है, जिसकी जनसंख्या करीब 14% कर्नाटक में है. फिलहाल, लिंगायत के सबसे बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा हैं, जो भाजपा की ओर से प्रदेश में मार्चा संभाले हुए हैं. लिंगायत समुदाय का कर्नाटक का 75-80 विधानसभा सीटों पर प्रभाव दिखता है. इन सीटों पर 58 विधायक हैं. लिंगायत समुदाय का मुख्य मठ सिद्धगंगा है, जो तुमकुर में स्थित है.
इसके बाद वोक्कालिगा समुदाय पर नजर डालते हैं. इनकी आबादी 11% है. फिलहाल, वोक्कालिगा के सबसे बड़े नेता एचडी देवगौड़ा हैं, जो जेडीएस की कमान संभाले हुए हैं. वोक्कालिगा समुदाय का कर्नाटक की 54 सीटों पर प्रभाव दिखता है. इन सीटों पर 42 विधायक हैं. वोक्कालिगा समुदाय का मुख्य मठ आदिचुनचनगिरी है, जो मांड्या में स्थित है.
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अब बात करते हैं कुरुबा समुदाय की, जिसकी आबादी 7% है. फिलहाल, कुरुबा के सबसे बड़े नेता सिद्धारमैया हैं, जो कांग्रेस पार्टी की ओर से वोट मांगते नजर आ रहे हैं. कुरुबा समुदाय का मुख्य मठ श्रीगैरे है, जो दावणगेरे में स्थित है. यह तीन सीट पर ताकतवर है. इसके अलावा, कर्नाटक में मुस्लिम आबादी 13% है. वहीं, एससी 7 %, एसटी 7% कर्नाटक में है. ओबीसी की बात करें तो इनकी आबादी प्रदेश में 12 प्रतिशत है और ये 13 सीट पर ताकतवर हैं. अगड़ी जातियां प्रदेश में 3 प्रतिशत हैं जो 9 सीट पर ताकतवर है.