बेंगलुरु: कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा है कि मुस्लिम विवाह एक करार (Muslim Marriage an Agreement) है. यह हिंदू विवाह (Hindu Marriage) की तरह कोई संस्कार नहीं है. मुस्लिमों का निकाह एक करार है और तलाक (Divorce) के बाद यह खत्म हो जाता है. इसके साथ ही कोर्ट ने सायरा बानो की गुजारा भत्ता से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया.
कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस न्यायाधीश कृष्णा दीक्षित ने अपने आदेश में कहा कि मुस्लिम विवाह एक करार है, जिसमें विविध शेड हैं. ये हिंदू विवाह की तरह संस्कार नहीं है, क्योंकि तलाक के बाद मुस्लिम समाज के लोग कई अधिकारों और कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करते.
जस्टिस दीक्षित ने कहा कि मुसलमानों में निकाह एक करार के साथ शुरू होता है. तलाक के साथ ही यह करार खत्म हो जाता है. भले निकाह किसी विशिष्ट व्यक्ति का हो या आम आदमी का. लोकसत्ता की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बेंगलुरु के भुवनेश्वरी नगर में रहने वाले एजाज-उर-रहमान की याचिका पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की है.
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रिपोर्ट के मुताबिक, निकाह के कुछ ही महीने बाद एजाज-उर-रहमान ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया. उसने पत्नी को 5 नवंबर 1991 को महज 5 हजार रुपये की मेहर देकर तलाक दे दिया था. बाद में उसने दूसरी शादी कर ली. दूसरी पत्नी से रहमान के एक बेटा भी है.
उधर, वर्ष 2002 में रहमान की पहली पत्नी सायरा बानो ने निर्वहन भत्ता की मांग की. रहमान नहीं माना, तो सायरा बानो कोर्ट पहुंच गयी. फैमिली कोर्ट ने रहमान को आदेश दिया कि जब तक सायरा जीवित है या वह दूसरा निकाह नहीं कर लेती, तब तक उसे हर महीने 3,000 रुपये गुजारा भत्ता दे.
करीब 9 साल बाद वर्ष 2011 में सायरा बानो ने एक बार फिर कोर्ट का रुख किया. उसने कोर्ट से गुजारिश की कि उसका गुजारा भत्ता बढ़ाकर 25 हजार रुपये कर दिया जाये. कर्नाटक हाईकोर्ट ने उसकी इस याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मुस्लिम समाज में होने वाला निकाह कोई संस्कार नहीं है, यह एक करार है. तलाक के साथ ही यह खत्म हो जाता है.
Posted By: Mithilesh Jha