Kisan Andolan नयी दिल्ली : केंद्र सरकार की तीन कृषि कानूनों (Farm Laws) के विरोध में किसानों का प्रदर्शन जारी है. आज शुक्रवार को किसान प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के बीच 11वें दौर की वार्ता चल रही है. 10 दौर की वार्ता विफल रही और कोई भी ठोस परिणाम सामने नहीं आया. एक ओर किसान जहां तीनों कृषि कानूनों को पूरी तरह निरस्त करने साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य और कृषि मंडियों पर सरकार की ओर से गारंटी चाहते हैं. वहीं सरकार किसानों की मांग पर कानूनों में संशोधन के लिए तैयार है.
20 जनवरी को हुए दसवें दौर की वार्ता के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि सरकार अगले एक-डेढ़ सालों तक कृषि कानूनों को होल्ड पर रखने के लिए तैयार है. तब किसान नेताओं ने भी कहा था कि सरकार एक-डेढ़ साल के लिए कृषि कानूनों पर रोक लगाने के लिए तैयार है, लेकिन हम आपस में चर्चा करने के बाद ही कोई फैसला लेंगे. आइए, जानते हैं उन पांच कारणों के बारे में, जिसकी वजह से सरकार कृषि कानूनों को टालना चाहती है…
12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए कृषि कानूनों पर रोक लगा दी और सरकार को मामले को जल्द से जल्द हल करने का निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के निपटारे के लिए एक पैनल भी बनाया है जो दोनों पक्षों से बात कर कोर्ट को रिपोर्ट सौंपेगी. अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों पर पहले ही रोक लगा दी है तो सरकार इस मामले को ज्यादा तूल नहीं देना चाहेगी. ऐसा कम ही देखा गया है कि सुप्रीम कोर्ट से सदन में बने किसी कानून पर रोक लगायी हो.
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द इंडियन एक्सप्रेस को दिये एक इंटरव्यू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाहक सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा कि इस मामले में जल्द से जल्द समाधान निकलना चाहिए. उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों को समाधान निकालने का प्रयास करना चाहिए. एक आम राय बननी ही चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार को भी किसानों के साथ संवेदनशीलता के साथ पेश आना चाहिए. इस मामले को ज्यादा दिन नहीं लटकाया जाना चाहिए. उसके बाद एक बीजेपी नेता ने भी कहा कि संघ नहीं चाहता के उसके लोग इस मुद्दे पर बंटें.
केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस महामारी के कारण साल 2020 में शीतकालीन सत्र को बजट सत्र में समाहित कर दिया है. 29 जनवरी से बजट का सत्र शुरू होने वाला है. अगर किसानों का आंदोलन पहले की तरह ही जारी रहता है तो दोनों सदनों में सरकार को विपक्ष का विरोध झेलना पड़ सकता है. वहीं सत्र के दौरान किसान संसद का घेराव या संसद मार्च जैसे कदम भी उठा सकते हैं. ऐसे में सरकार की फजीहत होने का भी खतरा है. सरकार बजट सत्र को शांतिपूर्ण ढंग से संचालित करना चाहती है.
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केंद्र की तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों ने 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर परेड निकालने की घोषणा पहले ही कर दी है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट कर दिया है कि किसान जितने दिनों तक चाहें प्रदर्शन कर सकते हैं, यह उनका अधिकार है. ट्रैक्टर परेड पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसान दिल्ली में रैली निकालेंगे या नहीं यह तय करना कोर्ट का काम नहीं है. दिल्ली पुलिस को यह निर्णय लेना होगा कि वह किसानों की रैली को मंजूरी देती है या नहीं.
कृषि कानूनों के विरोध दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के धरने का 50 से अधिक दिन हो गया. इस दौरान बारिश, धूप और कंपकपाती ठंड में भी किसान वहां जमे रहे. इस दौरान कभी भी ऐसा मौका नहीं आया जब संघ को सरकार के इन कानूनों के पक्ष में खुलकर बात करते देखा गया हो. इन कानूनों पर संघ का खुलकर सामने नहीं आना यह दर्शाता है कि सरकार ने गहन चिंतन के बाद इन कानूनों को नहीं लाया है. मतलब कानूनों के रिव्यू की गुंजाइश बची है.
Posted By: Amlesh Nandan.