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Chandrayaan-3 Cost: चंद्रयान-3 में आए इतने खर्च, US ने 63 साल पहले ही खर्च कर दिये थे 3000 गुना ज्यादा पैसे

मिशन चंद्रयान-3 में खर्च को इस बात से समझ सकते हैं कि अमेरिका ने आज से 63 साल पहले ही भारत के कुल खर्च से 3000 गुना अधिक पैसे कर दिये थे. अमेरिका ने अपना पहला लूनर मिशन 1960 में शुरू किया था. उस समय मिशन में कुल खर्च 25.8 अरब डॉलर खर्च हुए थे.

चंद्रयान-3 की चांद पर सफल लैंडिंग के लिए इस समय देश और दुनिया में प्रार्थना की जा रही है. इसरो आज शाम 6:04 बजे लैंडर विक्रम को चांद पर उतारने की कोशिश करेगा. इस प्रक्रिया का लाइव प्रसारण किया जाएगा. हर किसी की निगाहें मिशन चंद्रयान पर टिकी हैं. आइये हम आपको जानकारी देते हैं कि इसरो के इस बहुउद्देश्य मिशन में अबतक कितेन पैसे खर्च हुए.

चंद्रयान-2 से 363 करोड़ रुपये कम आया मिशन-3 का खर्च

भारतीय अनुसंधान शोध संगठन (ISRO) को मिशन चंद्रयान-3 के लिए 4 साल से अधिक समय लग गये. लेकिन इसरो ने इसमें लगने वाले खर्च को बढ़ाने की बजाए और भी कम कर दिया. यानी इस पूरे मिशन में चंद्रयान-2 में आये खर्च से 363 करोड़ रुपये कम खर्च हुए हैं. इसरो के अनुसार इस पूरे मिशन में करीब 615 करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है.

चंद्रयान-2 में इसरो ने कितना किया था खर्च

चंद्रयान-2 में इसरो ने 978 करोड़ रुपये खर्च किये थे. इसरो ने इसे 2019 में लॉन्च किया था. हालांकि इसरो का चंद्र मिशन-2 असफल साबित हुआ था.

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अमेरिका ने 63 साल पहले ही खर्च कर दिये थे 3000 गुना अधिक पैसे

मिशन चंद्रयान-3 में खर्च को इस बात से समझ सकते हैं कि अमेरिका ने आज से 63 साल पहले ही भारत के कुल खर्च से 3000 गुना अधिक पैसे कर दिये थे. अमेरिका ने अपना पहला लूनर मिशन 1960 में शुरू किया था. उस समय मिशन में कुल खर्च 25.8 अरब डॉलर खर्च हुए थे. यानी भारतीय मुद्रा में इसे देखें तो करीब दो लाख करोड़ रुपये आता है.

नासा 2025 तक चंद्र मिशन पर 93 बिलियन डॉलर करेगा खर्च

नासा 2025 तक अपने आर्टेमिस चंद्रमा कार्यक्रम पर लगभग 93 बिलियन डॉलर खर्च करने की राह पर है, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के महानिरीक्षक ने अनुमान लगाया है.

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आज शाम 6:04 बजे होगी चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के महत्वाकांक्षी तीसरे चंद्र मिशन के तहत चंद्रयान-3 का लैंडर मॉड्यूल (एलएम) आज शाम को चंद्रमा की सतह पर उतरने को तैयार है. ऐसा होने पर भारत पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बनकर इतिहास रच देगा. लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) से युक्त लैंडर मॉड्यूल के आज शाम छह बजकर चार मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र के निकट सॉफ्ट लैंडिंग करने की उम्मीद है.

ऐसे होगी चंद्रयान-3 की लैंडिंग

सभी मापदंडों की जांच करने और लैंडिंग का निर्णय लेने के बाद इसरो बेंगलुरु के निकट बयालालू में अपने भारतीय गहन अंतरिक्ष नेटवर्क (आईडीएसएन) से निर्धारित समय पर लैंडिंग से कुछ घंटे पहले सभी आवश्यक कमांड एलएम पर अपलोड करेगा. इसरो के अधिकारियों के अनुसार, लैंडिंग के लिए, लगभग 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर लैंडर पावर ब्रेकिंग चरण में प्रवेश करेगा और अपने चार थ्रस्टर इंजन को रेट्रो फायर करके गति को धीरे-धीरे कम करके चंद्रमा की सतह तक पहुंचना शुरू करेगा. अधिकरियों के अनुसार इससे यह सुनिश्चित होता है कि लैंडर दुर्घटनाग्रस्त न हो, क्योंकि इसमें चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण भी काम करता है. उन्होंने कहा कि यह देखते हुए कि लगभग 6.8 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचने पर, केवल दो इंजन का उपयोग किया जाएगा, अन्य दो को बंद कर दिया जाएगा, जिसका उद्देश्य लैंडर को ‘रिवर्स थ्रस्ट’ देना होता है, लगभग 150-100 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचने पर लैंडर अपने सेंसर और कैमरों का उपयोग करके सतह को स्कैन करेगा ताकि यह जांचा जा सके कि कोई बाधा तो नहीं है और फिर वह सॉफ्ट-लैंडिंग करने के लिए नीचे उतरना शुरू करेगा.

क्या कहा इसरो के अध्यक्ष सोमनाथ ने

इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने हाल ही में कहा था कि लैंडिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा लैंडर के वेग को 30 किलोमीटर की ऊंचाई से अंतिम लैंडिंग तक कम करने की प्रक्रिया और अंतरिक्ष यान को क्षैतिज से लंबवत करने की क्षमता होगी. सोमनाथ ने समझाया था, लैंडिंग प्रक्रिया की शुरुआत में गति लगभग 1.68 किलोमीटर प्रति सेकंड होता है, लेकिन (इस गति पर) (लैंडर) चंद्रमा की सतह पर क्षैतिज होगा. चंद्रयान-3 यहां लगभग 90 डिग्री झुका हुआ है, इसे लंबवत होना होगा. यह पूरी प्रक्रिया गणितीय रूप से एक बहुत ही दिलचस्प गणना होती है. हमने बहुत सारे सिमुलेशन किए हैं. यहीं पर हमें पिछली बार (चंद्रयान -2) दिक्कत हुई थी. सॉफ्ट-लैंडिंग के बाद, रोवर अपने एक साइड पैनल का उपयोग करके लैंडर के अंतर से चंद्रमा की सतह पर उतरेगा.

तो टल सकती है चंद्रयान-3 की लैंडिंग

इसरो के अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के निदेशक नीलेश देसाई ने कहा, 23 अगस्त को लैंडर मॉड्यूल के तकनीकी मानक असामान्य पाये जाने की स्थिति में इसकी ‘लैंडिंग’ 27 अगस्त तक के लिए टाली जा सकती है.

खास होंगे आखिरी के 17 मिनट

सॉफ्ट-लैंडिंग की महत्वपूर्ण प्रक्रिया को इसरो अधिकारियों सहित कई लोगों ने 17 मिनट का खौफ करार दिया है. लैंडिंग की पूरी प्रक्रिया स्वायत्त होगी, जिसके तहत लैंडर को अपने इंजन को सही समय और उचित ऊंचाई पर चालू करना होगा, उसे सही मात्रा में ईंधन का उपयोग करना होगा और अंततः नीचे उतरने से पहले यह पता लगाना होगा कि किसी प्रकार की बाधा या पहाड़ी क्षेत्र या गड्ढा नहीं हो.

अमेरिका, रूस, चीन की श्रेणी में शामिल हो जाएगा भारत

यदि चंद्रयान-3 मिशन चंद्रमा पर उतरने और चार साल में इसरो की दूसरी कोशिश में एक रोबोटिक चंद्र रोवर को उतारने में सफल रहता है तो भारत अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ के बाद चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा. चंद्रमा की सतह पर अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ और चीन ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कर चुके हैं, लेकिन उनकी ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर नहीं हुई है.

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