नयी दिल्ली : देश भर में कोरोनावायरस महामारी के बीच म्यूकोरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगल इंफेक्शन (black fungal infection) ने कई लोगों की जान ले ली है. देश के कई जाने माने विशेषज्ञ इससे बचाव के सटीक उपाय ढूढ़ने में लगे हैं. डॉ रणदीप गुलेरिया (Dr Randeep Guleria) और डॉ नरेश त्रेहान (Dr Naresh Trehan) ने इसकी पहचान करने के तरीके बताए हैं. शुक्रवार को मेदांता अस्पताल (Medanta Hospital) के चेयरमैन डॉ नरेश त्रेहान ने कहा कि शुरुआती लक्षणों को पकड़कर ब्लैक फंगल इंफेक्शन का युद्ध स्तर पर इलाज करना होगा. तभी इसे फैलने से रोका जा सकता है.
उन्होंने बताया कि कोविड से जुड़े म्यूकोरमाइकोसिस के पहले लक्षण नाक में दर्द और जकड़न, गाल पर सूजन, मुंह के अंदर फंगस पैच, पलक में सूजन आदि हैं. इसके लिए आक्रामक चिकित्सा उपचार की आवश्यकता होती है. उन्होंने कहा कि ब्लैक फंगस को नियंत्रित करने की कुंजी स्टेरॉयड का विवेकपूर्ण उपयोग और मधुमेह का अच्छे से नियंत्रण करना है.
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नयी दिल्ली के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा कि कोविड के मरीजों में फंगल इंफेक्शन देखने को मिल रहा है. सार्स के प्रकोप के समय भी कुछ ऐसे मामले देखने को मिल रहे थे. अनियंत्रित मधुमेह के बीच कोरोना संक्रमित होना म्यूकोरमाइकोसिस को दावत देता है. इसलिए मधुमेह का नियंत्रण बेहद जरूरी है.
डॉ गुलेरिया ने कहा कि कोविड की इस लहर में स्टेरॉयड का उपयोग काफी अधिक बढ़ गया है. हल्के और प्रारंभिक लक्षणों में स्टेरॉयट का इस्तेमाल दूसरे संक्रमण का कारण बन सकता है. उन्होंने कहा कि जिन लोगों को स्टेरॉयड की हाई डोज दी जा रही है और उनका मधुमेह नियंत्रित नहीं किया जा रहा है उनमें म्यूकोरमाइकोसिस के मामले ज्यादा देखने को मिल रहे हैं.
उन्होंने कहा कि हमें कोरोना संक्रमण के इस दौर में ब्लैक फंगल इंफेक्शन की रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करना होगा. उन्होंने तीन उपाय बताए…
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ब्लड शुगर के स्तर का अच्छे से नियंत्रण करना चाहिए, खासकर कोविड मरीजों को.
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स्टेरॉयड लेने वालों को नियमित रूप से रक्त शर्करा के स्तर की निगरानी करनी चाहिए.
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सावधान रहना चाहिए कि स्टेरॉयड और उनकी खुराक कब दें.
अफवाहों के प्रति लोगों को सचेत करते हुए डॉ गुलरिया ने कहा कि कई जगहों पर मैसेज वायरल हो रहे हैं कि कच्चा खाना खाने से ब्लैक फंगल का संक्रमण हो रहा है. इस पर ध्यान न दें. इसके कोई सबूत नहीं मिले हैं. वहीं ऑक्सीजन के प्रकार को इसके लिए कारक बताया जा रहा है. जबकि इसका इससे कोई लेना देना नहीं है. उन्होंने कहा कि होम आइसोलेशन में रह रहे लोगों में भी मामले देखने को मिले हैं.
Posted By: Amlesh Nandan