जानिये, राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे से कांग्रेस का दामन छोड़ने वाले ज्योतिरादित्य का क्या है कनेक्शन…?
पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है, लेकिन उनका भाजपा या विजयाराजे सिंधिया या फिर वसुंधरा राजे सिंधिया से क्या नाता है, इसे बहुत कम लोग ही जानते होंगे. आइए, जानते हैं कि ज्योतिरादित्य की वसुंधरा राजे के साथ क्या कनेक्शन है.
नयी दिल्ली : पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को कांग्रेस से अपना इस्तीफा दे दिया है और उनके साथ कांग्रेस के करीब 14 अन्य विधायकों ने भी पार्टी से अपना त्याग पत्र दे दिया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर ज्योतिरादित्य सिंधिया कौन है? अगर नहीं जानते हैं, तो आइए हम बताते हैं कि ग्वालियर के महाराज कहे जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया कौन हैं और उनका कांग्रेस और भाजपा से नाता क्या है?
दरअसल, एक जनवरी, 1971 जन्में भारत सरकार की 15वीं लोकसभा के मंत्रिमंडल में वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री के तौर पर काम कर चुके हैं. सिंधिया लोकसभा मध्य प्रदेश के गुना संसदीय सीट से चुनाव जीतकर केंद्रीय मंत्री के तौर पर शपथग्रहण किये थे. पिता स्व माधवराव सिंधिया की विरासती सीट से ज्योतिरादित्य ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी गुना संसदीय सीट से ही चुनावी मैदान में ताल ठोकी थी, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.
राजमाता विजयाराजे के पोते हैं और माधवराव के बेटे हैं ज्योतिरादित्य : ज्योतिरादित्य सिंधिया स्व. माधवराव सिंधिया के बेटे और ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया के पोते हैं. उनकी बुआ वसुंधरा राज सिंधिया राजमाता विजयाराजे की बेटी और माधवराव सिंधिया की बहन हैं. राजमाता विजयराजे सिंधिया जनसंघ के जमाने से ही उसके साथ थीं और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उनके मधुर राजनीतिक संबंध थे. राजमाता विजयाराजे सिंधिया हमेशा यही चाहती थीं कि उनके उत्तराधिकारी भाजपा में रहकर ही चुनाव लड़ें.
माधवराव ने 26 साल की उम्र में लड़ा था चुनाव : माधवराव सिंधिया लगातार 9 बार सांसद रहे. उन्होंने 1971 में पहली बार 26 साल की उम्र में गुना संसदीय सीट से चुनाव जीता था और फिर वे कभी पीछे मुड़कर नहीं देखे. 1971 में उन्होंने यह चुनाव जनसंघ के टिकट पर लड़ा था. आपातकाल हटने के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में उन्होंने निर्दलीय के रूप में गुना से चुनाव लड़ा था. जनता पार्टी की लहर होने के बावजूद वह दूसरी बार यहां से जीते. 1980 के चुनाव में वह कांग्रेस में शामिल हो गये और तीसरी बार गुना से चुनाव जीत गये.
माधवराव ने 1984 में वाजपेयी को दी थी टक्कर : 1984 में कांग्रेस ने अंतिम समय में उन्हें गुना की बजाय ग्वालियर से लड़ाया था. यहां से उनके सामने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मैदान में थे. उन्होंने वाजपेयी को भारी मतों से हराया था. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में की पढ़ाई महाराज माधवराव सिंधिया का जन्म 10 मार्च, 1945 को हुआ था. माधवराव राजमाता विजयाराजे सिंधिया और जीवाजी राव सिंधिया के पुत्र थे. माधवराव ने सिंधिया स्कूल से शिक्षा हासिल की थी. उसके बाद वे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी पढ़ने चले गये. माधवराव सिंधिया का नाम मध्य प्रदेश के चुनिंदा राष्ट्रीय राजनीतिज्ञों में काफी ऊपर लिया जाता था.
गुना की सीट से विजयाराजे आठ बार रही थीं सांसद : माधव राव सिंधिया की मां और ज्योतिरादित्य की दादी गुना संसदीय सीट से आठ बार सांसद रही थीं. उनका विवाह ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से 21 फरवरी, 1941 को हुआ था. पति के निधन के बाद वे राजनीति में सक्रिय हुई थीं और 1957 से 1991 तक आठ बार ग्वालियर और गुना से सांसद रहीं. 25 जनवरी, 2001 में उन्होंने अंतिम सांस लीं.
माधवराव से खफा विजयाराजे ने लिखी थी अजीब वसीयत : ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया की एक वसीयत ने सभी को चौंका दिया था. उन्होंने अपनी वसीयत में राजघराने की संपत्ति का बंटवारा नहीं किया था, उसमें लिखा था कि मेरा बेटा मेरा अंतिम संस्कार नहीं करेगा. विजयाराजे सिंधिया अपने ही इकलौते पुत्र कांग्रेस नेता रहे माधवराव सिंधिया से बेहद खफा थीं. कहा जाता था कि विजयाराजे का सार्वजनिक जीवन जितना ही प्रभावशाली और आकर्षक था, उनका व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन उतना ही मुश्किलों भरा था. राजमाता का देहांत 25 जनवरी 2001 को हो गया था. इसके बाद कुछ महीने बाद ही 30 सितम्बर, 2001 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में माधवराव सिंधिया की मौत हो गयी थी. माधवराव के निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिता की विरासत को संभाली और करीब 18 साल पहले वर्ष 2002 में उन्हें कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता दी गयी.
18 साल की कांग्रेसी राजनीति का कर दिया पटाक्षेप : मंगलवार को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने कांग्रेसी राजनीति का पटाक्षेप कर पार्टी से अपना इस्तीफा दे दिया है. इस्तीफा देने के बाद उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे पत्र में कहा है कि वह 18 वर्षों से कांग्रेस के प्राथमिक सदस्य रहे हैं, लेकिन अब राह अलग करने का वक्त आ गया है. यह पत्र कल यानी 9 मार्च का ही है. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपना इस्तीफ सौंपा है. अब उनका दादी विजयाराजे की पार्टी भाजपा में जाने की बस औपचारिकता भर बाकी रह गयी है.