हरिद्वार : बढ़ते कोरोना संक्रमण को देखते हुए कुंभ को प्रतीकात्मक रूप देकर सीमित करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के बाद जूना समेत सात अखाड़ों ने कुंभ विसर्जन (समाप्ति की घोषणा) तो कर दिया लेकिन इस पर विवाद की तलवारें खिंच गई हैं. शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष व शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप ने इसे राजनीति से प्रेरित फैसला बता दिया तो निर्मोही अणि अखाड़े के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्र दास ने इसे परंपरा से खिलवाड़ करार दिया है.
स्वामी आनंद स्वरूप ने कहा कि कुंभ का आयोजन पंचांग पर आधारित है. कोई भी अखाड़ा कुंभ का मनमर्जी से विसर्जन नहीं कर सकता. प्रधानमंत्री ने तो मेले को प्रतीकात्मक बनाने की अपील की थी लेकिन अखाड़ों ने नेताओं को खुश करने के लिए कुंभ का विसर्जन ही कर डाला. उन्होंने कहा जब अखाड़े स्वयं फैसले कर रहे तो अखाड़ा परिषद जैसी संस्था का महत्व ही क्या रह गया.
उधर, अखिल भारतीय श्रीपंच निर्मोही अणि अखाड़े के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्र दास ने कहा कि परंपरानुसार ही देवताओं को स्थापित और विसर्जित किया जाता है. असमय कुंभ का विसर्जन परंपराओं के विरुद्ध है. उन्होंने कहा कि 27 अप्रैल के शाही स्नान में कोरोना गाइड लाइन का पालन करते हुए तीनों वैष्णव अखाड़ों के साथ श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन, श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन के साथ श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के संत भी शामिल होंगे. निर्मल अखाड़े के कोठारी महंत जसविंदर सिंह ने कहा कि कुंभ 30 अप्रैल तक चलेगा. 27 अप्रैल का शाही स्नान सब मिलकर करेंगे.
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि कुंभ में कोविड के अत्यधिक प्रसार होने का डर फैलाया जा रहा है. साजिश के तहत कुंभ और हरिद्वार को बदनाम किया जा रहा है. उन्होंने दावा किया कि हरिद्वार महाकुंभ से कोविड नहीं फैल सकता, यह पिछले प्रयाग कुंभ में 33 वैज्ञानिकों के शोध में सिद्ध हुआ था. गंगाजल वैक्सीन का काम करता है और संक्रामक बीमारियों से लड़ने की शरीर की क्षमता बढ़ जाती है.
खोजी द्वाराचार्य पीठ के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी रामरिक्ष पाल देवाचार्य ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील का समर्थन किया है. उन्होंने अपील की कि 27 अप्रैल के शाही स्नान में बैरागी सीमित संख्या में ही स्नान करें.
Posted By : Amitabh Kumar