भारत के विधि आयोग ने कहा कि “कानूनी प्रावधान को निरस्त करने से देश की सुरक्षा और अखंडता पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है” भारत के विधि आयोग ने भारत में राजद्रोह पर 153 साल पुराने औपनिवेशिक कानून को बनाए रखने की सिफारिश की है, जिसमें जोर दिया गया है कि “कानूनी प्रावधान को निरस्त करने से देश की सुरक्षा और अखंडता के लिए गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं.” इसके बजाय, आयोग ने भारतीय दंड संहिता या आईपीसी (राजद्रोह कानून) की धारा 124ए में संशोधन करने का समर्थन किया “ताकि प्रावधान की व्याख्या, समझ और उपयोग में अधिक स्पष्टता लाई जा सके.”
पैनल ने हाल में सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा कि वह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए के दुरुपयोग संबंधी विचारों के मद्देनजर सिफारिश करता है कि केंद्र इसे रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी करे. 22वें विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ऋतु राज अवस्थी (सेवानिवृत्त) ने विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को प्रावरण पत्र में लिखा, ‘‘इस संदर्भ में, वैकल्पिक रूप से यह भी सुझाव दिया गया है कि आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 196(3) की तरह एक प्रावधान को सीआरपीसी की धारा 154 में नियम के रूप में शामिल किया जा सकता है, जो आईपीसी की धारा 124ए के तहत प्राथमिकी दर्ज कराए जाने से पहले आवश्यक प्रक्रियात्मक सुरक्षा प्रदान करे. ’’
रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि राजद्रोह संबंधी धारा 124ए के कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ प्रक्रियात्मक दिशानिर्देशों को निर्धारित करना अनिवार्य है, लेकिन प्रावधान के दुरुपयोग के आरोपों का मतलब यह नहीं है कि इसे निरस्त कर दिया जाए. आयोग ने कहा कि राजद्रोह की ‘‘औपनिवेशिक विरासत’’ इसे निरस्त करने का वैध आधार नहीं है. विधि आयोग ने रिपोर्ट में कहा कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम जैसे कानूनों का अस्तित्व आईपीसी की धारा 124ए के तहत परिकल्पित अपराध के सभी तत्वों को शामिल नहीं करता है.
‘‘राजद्रोह के कानून का उपयोग’’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘इसके अलावा, आईपीसी की धारा 124 ए जैसे प्रावधान न होने पर, सरकार के विरुद्ध हिंसा को उकसाने वाली हर अभिव्यक्ति के खिलाफ विशेष कानूनों और आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत निपटा जाएगा, जिनमें अभियुक्तों को लेकर कहीं अधिक कड़े प्रावधान हैं.’’ इसमें कहा गया है कि आईपीसी की धारा 124ए के किसी भी कथित दुरुपयोग को पर्याप्त प्रक्रियात्मक सुरक्षा कदम उठाकर रोका जा सकता है, लेकिन प्रावधान को पूरी तरह से निरस्त करने से ‘‘देश की सुरक्षा और अखंडता पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है तथा इसके परिणामस्वरूप विनाशकारी ताकतों को अपने नापाक मंसूबों को आगे बढ़ाने की खुली छूट मिल सकती है.’