लीप इयर डे: 29 फरवरी अलबेली तारीख, जिससे जुड़ी हैं कई अनूठी मान्यताएं

कृष्ण प्रताप सिंह सूर्यचक्र पर आधारित ग्रेगोरियन कैलेंडर आज दुनिया भर में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला कैलेंडर बन गया है. हालांकि 15 अक्टूबर, 1582 को पोप ग्रेगरी तेरहवें द्वारा यह पक्का करने के लिए इसे शुरू किया गया कि क्रिसमस हर वर्ष 25 दिसम्बर को ही पड़े {इससे पहले प्रचलित रोमन कैलेंडर में […]

By कृष्ण प्रताप सिंह | February 29, 2024 8:53 AM

कृष्ण प्रताप सिंह

सूर्यचक्र पर आधारित ग्रेगोरियन कैलेंडर आज दुनिया भर में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला कैलेंडर बन गया है. हालांकि 15 अक्टूबर, 1582 को पोप ग्रेगरी तेरहवें द्वारा यह पक्का करने के लिए इसे शुरू किया गया कि क्रिसमस हर वर्ष 25 दिसम्बर को ही पड़े {इससे पहले प्रचलित रोमन कैलेंडर में ऐसा नहीं हुआ करता था} तो दुनिया ने इसे बहुत उत्साह के साथ या एकजुट होकर नहीं अपनाया था. अलबत्ता, बाद में अलग-अलग देशों ने अलग-अलग वक्त पर कुछ अपनी सुविधा तो कुछ ब्रिटिश साम्राज्य के विश्वव्यापी प्रभुत्व के चलते इसे अपनाया और आधिकारिक दर्जा दिया. अपने देश की बात करें तो गुलामी के दौर में तत्कालीन ब्रिटिश सत्ताधीशों ने 1752 में इसे लागू किया और तभी से यह देश का आधिकारिक कैलेंडर बना हुआ है.

हम जानते हैं कि इस कैलेंडर के सारे महीनों में बराबर-बराबर दिन-रात नहीं होते. जनवरी, मार्च, मई, जुलाई अगस्त, अक्टूबर व दिसम्बर में 31 दिन होते हैं, जबकि अप्रैल, जून, सितम्बर व नवम्बर में 30 और फरवरी में 28, जो हर चैथे साल 29 दिनों में बदल जाते हैं. इस लिहाज से फरवरी की 29 तारीख इस कैलेंडर की दूसरी सभी तारीखों से सर्वथा अलग यानी निराली होती है क्योंकि यह हर साल नहीं बल्कि हर चैथे साल आती है-चार से पूरी तरह विभाजित होने वाले सन् में. कैलेंडर में हर चैथे साल इसकी व्यवस्था के पीछे एक खगोलीय कारण है. यह कि पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 365 दिन, पांच घंटे 48 मिनट और 45.51 सेकेंड लगते हैं. उसके इस एक चक्कर की अवधि ही एक सौर-वर्ष होती है, लेकिन सुविधा के लिहाज से आम सौर-वर्ष 365 दिन के ही बनाये गये हैं. बाकी अवधि हर चैथे साल लगभग 24 घंटे यानी एक दिन में बदल जाती है तो उसे उस साल की फरवरी में जोड़ दिया जाता है.

इसके फलस्वरूप फरवरी तो 28 के बजाय 29 दिन की हो ही जाती है, साल के दिन भी कुल मिलाकर 365 के बजाय 366 हो जाते हैं. ऐसे साल को ‘लीप इयर’ यानी अधिवर्ष कहा जाता है और उसकी 29 फरवरी को ‘लीप इयर डे’. सर्वथा खगोलीय कारणों से किये गये इस काल निर्धारण से विभिन्न देशों में समय के साथ अनेक रोचक सामाजिक व सांस्कृतिक मान्यताएं भी जुड़ गई हैं. इनके कारण 29 फरवरी को पैदा होने वाले लोगों को लीपिंग और लीपर कहकर अलग से रेखांकित किया जाता है. कहीं लीप इयर को उल्लास का अवसर मानकर उसकी खुशी मनाने के लिए सार्वजनिक छुट्टी की मांग की जाती है तो कहीं इसे अशुभ करार दिया जाता है. इटली में तो एक अजीबोगरीब मान्यता है कि लीप इयर में महिलाओं का बरताव बदल जाता है. ऐसी ही एक मान्यता के चलते मिस्र में अनेक युगल लीप इयर में शादी ही नहीं करते हैं. दूसरी ओर डेनमार्क में लीप इयर में कोई पुरुष किसी महिला को ठुकराता है तो उसे उसको 12 जोड़े ग्लव्स देने पड़ते हैं.

एक मान्यता यह भी है कि 29 फरवरी को पैदा होने वाले बच्चे पराक्रम, अध्यवसाय, अध्ययन और आविष्कार की दृष्टि से विलक्षण प्रतिभासम्पन्न और अद्भुत हुआ करते हैं. इसका फिलहाल कोई सर्वस्वीकार्य वैज्ञानिक अध्ययन उपलब्ध नहीं है, लेकिन इस दिन जन्मी कई शख्सियतों का योगदान इस मान्यता को बल प्रदान करता है. मिसाल के तौर पर 1792 में 29 फरवरी को जन्मे भ्रूण विज्ञानी कार्ल अर्नेस्ट वाॅन वेयर ने 1827 में स्तनधारी प्राणियों के अंडाणु की खोज कर दुनिया से अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया.

उन्होंने उसे ऊतकों की परतों से भ्रूण के विकास के बारे में भी बताया. इसी तरह आधुनिक पनडुब्बी के जनक आयरिश अमेरिकी वैज्ञानिक जाॅन फिलिप हालैंड भी 1840 में 29 फरवरी को ही पैदा हुए थे. 1898 में उन्होंने पानी के अन्दर संचालित अमेरिका का पहला हालैंड नामक जलयान बनाया था, जबकि 1860 में हरमन होल्लेरिथ ने इसी दिन सारणी मशीन का आविष्कार किया. अपने देश मंे जनता पार्टी की पहली गैरकांगे्रसी सरकार के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का जन्म भी 1896 में गुजरात के भदेली नामक गांव में, जो अब बुलसर जिले में स्थित है, 29 फरवरी को ही हुआ था. अमेरिकी रंगमंच व फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता डेनिस फारिना समेत कई अन्य राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सैलिब्रिटियों का जन्म दिन भी 29 फरवरी ही है.

इस सबके आईने में देखें तो कह सकते हैं कि 29 फरवरी को जन्मे लोग कड़ी मेहनत करने वाले, अपनी धुन के धनी, मेधावी, दृढ़निश्चयी, देशसेवी और सच्चे तो साथ ही अपनी जिदों को लेकर अड़ियल भी होते हैं. खास मोरार जी के उदाहरण से इसे यों समझ सकते हैं कि 1930 में महात्मा गाँधी द्वारा शुरू किया गया देश की आजादी का संघर्ष अपने मध्य में था, तो मोरार जी ने ब्रिटिश न्याय व्यवस्था में विश्वास खोया तो सरकारी नौकरी छोड़कर उसमें भाग लेने के निश्चय में कोई असमंजस नहीं किया. उनके अनुसार ‘यह एक कठिन निर्णय था लेकिन मैंने महसूस किया कि यह देश की आजादी का सवाल था. परिवार से संबंधित समस्याएं बाद में आती हैं और देश पहले आता है.’ बहरहाल, मोरार जी के नाम उनके जन्म से जुडे़ कई रोचक प्रसंग दर्ज हैं.

अपने राजनीतिक जीवन में लम्बे उतार चढ़ाव देखने के बाद 24 मार्च, 1977 को उन्होंने देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला तो 81 वर्ष के थे. एक अवसर पर पत्रकारों ने उनसे पूछा कि उनकी उम्र के कारण कहीं उन्हें प्रधानमंत्री पद के दायित्वों के निर्वहन में असुविधा तो नहीं होती, उनका जवाब था-नहीं भाई, इसका तो सवाल ही नहीं उठता. अभी मैं बूढ़ा हुआ ही कहां हूं? मैंने तो देश के नौजवानों जितने ही जन्मदिन मनाये हैं. कुल जमा बीस या इक्कीस. क्योंकि मेरा जन्मदिन हर साल नहीं आता.’

दिलचस्प यह कि इस ‘हर चैथे साल’ के चक्कर में वे 24 मार्च, 1977 से 28 जुलाई, 1979 तक दो साल से ज्यादा प्रधानमंत्री पद पर रहने के बावजूद अपना एक भी जन्मदिन नहीं ही मना सके थे. क्योंकि उन सालों में एक भी लीप इयर नहीं था, जिसके चलते 29 फरवरी आई ही नहीं. लेकिन 1964 और 1968 में दो बार वित्तमंत्री के तार पर उन्होंने देश का बजट अपने जन्मदिन के अवसर पर ही पेश किया था. उनके नाम सबसे ज्यादा दस बार देश का बजट पेश करने का रेकार्ड भी है. ज्ञातव्य है कि तब फरवरी की पहली नहीं आखिरी तारीख को आम बजट पेश किया जाता था.

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