विकसित देशों में जलवायु नीतियों के लिए बहुत कम समर्थन, बोले मुख्य आर्थिक सलाहकार नागेश्वरन
नागेश्वरन ने एक रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में हरित नीति के लिए समर्थन सबसे कम है. विशेष रूप से जो देश कार्बन टैक्स का विरोध कर रहे हैं, वे ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क, जर्मनी, ब्रिटेन और अमेरिका हैं.
नयी दिल्ली: मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेश्वरन ने सोमवार को कहा कि विकसित देशों को अपने नागिरकों को जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से निपटने की नीति अपनाने की आवश्यकता के बारे में समझाने की जरूरत है. उन्होंने यह भी कहा कि समृद्ध देशों में जीवाश्म ईंधन पर कर सहित जलवायु नीतियों के मामले में बहुत कम समर्थन है.
गरीब देशों को वित्तपोषण वास्तविकता से कोसों दूर
नागेश्वरन ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकसित देशों की तरफ से गरीब देशों को वित्तपोषण का जिक्र करते हुए कहा कि यह वास्तविकता से कोसों दूर है, क्योंकि उनके अपने देशों में ही काफी चुनौतियां हैं. उन्होंने यहां एक कार्यक्रम में कहा कि उच्च आय वाले देशों में जीवाश्म ईंधन पर कर सहित जलवायु नीतियों के मामले में बहुत कम समर्थन है.
विकसित देशों के समक्ष घरेलू स्तर पर भी बड़ी चुनौतियां
सीईए ने कहा कि वास्तव में विकसित देशों के समक्ष घरेलू स्तर पर भी बड़ी चुनौतियां हैं. इसमें से एक चुनौती अपने लोगों को जलवायु परिवर्तन से निपटने की नीति अपनाने की आवश्यकता के बारे में समझाने की भी है. उन्होंने कहा, ‘…उनके समक्ष वित्तीय रूप से स्वयं को प्रभावित किये बिना अपने देशों में जलवायु नीतियां बनाने को लेकर भी बड़ी समस्या है.’
इन देशों ने कार्बन टैक्स का किया विरोध
नागेश्वरन ने एक रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में हरित नीति के लिए समर्थन सबसे कम है. विशेष रूप से जो देश कार्बन टैक्स का विरोध कर रहे हैं, वे ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क, जर्मनी, ब्रिटेन और अमेरिका हैं.
विकसित देश नहीं दे रहे पैसे
उन्होंने कहा, ‘इसीलिए, जब हम विकसित देशों से वित्तपोषण पर गौर करते हैं, तो वह वास्तविकता से कोसों दूर लगता है, क्योंकि उनके समक्ष घरेलू स्तर पर ही कहीं अधिक बड़ी चुनौतियां हैं.’ सीईए ने वित्त को महत्वपूर्ण करार देते हुए कहा कि सार्वजनिक, निजी और बहुपक्षीय स्रोतों से कोष जुटाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बुनियादी ढांचे के विकास की जरूरत है और संपत्ति को बाजार पर चढ़ाने का मतलब संपत्ति की आर्थिक दक्षता को बढ़ाना है.