देश में 17 फीसदी दलित वोटर, लुभाने के लिए दलों में होड़

देश की सियासत में दलित समुदाय एक बड़ी ताकत है. सभी राजनीतिक दल इस बड़े वोटबैंक को अपने पाले में करके सत्ता के सिंहासन पर काबिज होना चाहते हैं. मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक, देश में 17 प्रतिशत दलित वोटर हैं. राजनीतिक दलों की नजर इन्हीं 17 प्रतिशत दलित मतदाताओं पर है, जो उनकी सियासी नैय्या […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 14, 2024 6:11 AM

देश की सियासत में दलित समुदाय एक बड़ी ताकत है. सभी राजनीतिक दल इस बड़े वोटबैंक को अपने पाले में करके सत्ता के सिंहासन पर काबिज होना चाहते हैं. मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक, देश में 17 प्रतिशत दलित वोटर हैं. राजनीतिक दलों की नजर इन्हीं 17 प्रतिशत दलित मतदाताओं पर है, जो उनकी सियासी नैय्या पार लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. देश में कुल 543 लोकसभा सीटें है, जिसमें दलित समुदाय के लिए 84 सीटें आरक्षित हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव आरक्षित सीटों के नतीजे देखें, तो इन सीटों पर भाजपा का एकछत्र राज कायम है. 17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में दलित समुदाय के लिए आरक्षित 84 सीटों में से भाजपा ने 46 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था, जबकि कांग्रेस महज पांच सीटें ही हासिल कर सकी थी. बाकी सीटें अन्य क्षेत्रीय दलों ने जीती थी. वहीं, 2014 में दलित सुरक्षित 84 सीटों में से भाजपा ने 40 सीटें जीती थी, तो कांग्रेस को सिर्फ सात सीटें मिली थी.

भाजपा की अगुआई वाली एनडीए और कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन दोनों की कोशिश एससी-एसटी समुदाय के लिए रिजर्व सीटों पर जीत दर्ज करने की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी जनकल्याणकारी योजनाओं के जरिये इस पर मजबूत पकड़ बनाये रखने की कोशिश में हैं. मोदी कई बार कह चुके हैं कि गरीब और वंचितों का विकास ही असल सामाजिक न्याय है. भाजपा ने अपनी तमाम योजनाओं के जरिये लाभार्थी वोटबैंक तैयार किया है. वहीं, कांग्रेस दलित वोटों को अपने पाले में करने की कोशिश में है, जिसके लिए घोषणा पत्र में सबसे ज्यादा जगह कल्याणकारी योजनाओं को दी गयी है. कांग्रेस के दलित चेहरे के तौर पर मल्लिकार्जुन खरगे हैं, जो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं. इन दोनों समुदाय की राजनीति करने वाले क्षेत्रीय दलों के साथ अन्य पार्टियां भी इस वोटबैंक में हिस्सेदारी के लिए हाथ-पैर मारती दिखायी दे रही हैं. ऐसे में देखना है कि 2024 में दलित वोटर किस पर अपना भरोसा जताते हैं.

देश में सबसे अधिक दलित आबादी पंजाब में
राज्य दलित आबादी (% में) निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित सीटें
आंध्र प्रदेश 16.41 42 7
अरुणाचल प्रदेश 00 02 0
असम 7.15 14 1
बिहार 15.91 40 6
छत्तीसगढ़ 12.82 11 1
गोवा 1.74 02 0
गुजरात 6.74 26 2
हरियाणा 20.17 10 2
हिमाचल प्रदेश 25.19 04 1
जम्मू-कश्मीर 7.38 06 0
झारखंड 12.08 14 1
कर्नाटक 17.15 28 5
केरल 9.10 20 2
मध्य प्रदेश 15.62 29 4
महाराष्ट्र 11.81 48 5
मणिपुर 3.78 02 0
मेघालय 0.58 02 0
मिजोरम 0.11 01 0
नगालैंड 00 01 0
ओडिशा 17.13 21 3
पंजाब 31.94 313 4
राजस्थान 17.83 25 4
सिक्किम 4.63 01 0
तमिलनाडु 20.01 39 7
त्रिपुरा 17.83 02 0
उत्तर प्रदेश 20.70 80 17
उत्तराखंड 18.76 05 1
पश्चिम बंगाल 23.51 42 10

केंद्र शासित दलित आबादी (% में) निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित सीटें
दिल्ली 16.75 07 1
चंडीगढ़ 18.86 01 0
दादर एवं नगर हवेली 1.80 01 0
दमन-दीव 2.52 01 0
पुदुचेरी 15.73 01 0
लक्षद्वीप 000 01 0
अंडमान 000 01 0

कुल 16.63 543 84

2019 में भाजपा को 41%, तो कांग्रेस को 28% दलित वोट मिले
वर्ग भाजपा कांग्रेस अन्य
सामान्य 61% 17% 22%
ओबीसी 58% 18% 24%
एससी 41% 28% 31%
एसटी 49% 30% 21%
मुस्लिम 10% 51% 39%
अन्य 35% 33% 32%

राज्य दलित आबादी (% में) निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित सीटें

आंध्र प्रदेश 16.41 42 7
अरुणाचल प्रदेश 000 02 0
असम 7.15 14 1
बिहार 15.91 40 6
छत्तीसगढ़ 12.82 11 1
गोवा 1.74 02 0
गुजरात 6.74 26 2
हरियाणा 20.17 10 2
हिमाचल प्रदेश 25.19 04 1
जम्मू-कश्मीर 7.38 06 0
झारखंड 12.08 14 1
कर्नाटक 17.15 28 5
केरल 9.10 20 2
मध्य प्रदेश 15.62 29 4
महाराष्ट्र 11.81 48 5
मणिपुर 3.78 02 0
मेघालय 0.58 02 0
मिजोरम 0.11 01 0
नगालैंड 0000 01 0
ओडिशा 17.13 21 3
पंजाब 31.94 313 4
राजस्थान 17.83 25 4
सिक्किम 4.63 01 0
तमिलनाडु 20.01 39 7
त्रिपुरा 17.83 02 0
उत्तर प्रदेश 20.70 80 17
उत्तराखंड 18.76 05 1
पश्चिम बंगाल 23.51 42 10

केंद्र शासित दलित आबादी (% में) निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित सीटें
दिल्ली 16.75 07 1
चंडीगढ़ 18.86 01 0
दादर एवं नगर हवेली 1.80 01 0
दमन-दीव 2.52 01 0
पुदुचेरी 15.73 01 0
लक्षद्वीप 000 01 0
अंडमान 000 01 0

कुल 16.63 543 84

17वीं लोकसभा में आरक्षित सीटें और विजेता दल

आंध्र प्रदेश 04 (वाईएसआर सीपी 04)
असम 01 (भाजपा 01)
बिहार 07 (जदयू 02 लोजपा 03 भाजपा 01 )
छत्तीसगढ़ 01 (भाजपा01)
गुजरात 02 (भाजपा02)
हरियाणा 02 (भाजपा02)
हिमाचल प्रदेश 01 (भाजपा01)
झारखंड 01 (भाजपा01)
कर्नाटक 05 (भाजपा 05)
केरल 02 (कांग्रेस 02)
मध्य प्रदेश 04 (भाजपा04)
महाराष्ट्र 05 (भाजपा02 शिवसेना 02 स्वतंत्र01)
ओडिशा 03 (बीजद03)
पंजाब 04 (भाजपा02 कांग्रेस02)
राजस्थान 04 (भाजपा04)
तमिलनाडु07 (डीएमके 04 कांग्रेस01 सीपीआइ 01 वीसीके 01)
उत्तर प्रदेश 17 (भाजपा14 बसपा02 अपना दल एस 01)
तेलंगाना 03 (कांग्रेस 01 भाजपा01 बीआरएस01)
उत्तराखंड 01 (भाजपा01)
पश्चिम बंगाल 10 (टीएमसी05 भाजपा05)
दिल्ली 01 (भाजपा01)

राजनीतिक लोकतंत्र, सामाजिक लोकतंत्र के बिना संभव नहीं : बाबासाहेब

बाबासाहेब आंबेडकर ने दो रास्ते बताये, जिनके माध्यम से दलित समुदाय अपनी सामाजिक-आर्थिक जरूरतों और मांगों को पूरा कर सकते थे- आंदोलन की राजनीति और संसद में प्रतिनिधित्व. ऐतिहासिक रूप से, प्रत्यक्ष संघर्ष के माध्यम से, दलित आंदोलनों ने अस्पृश्यता से लड़ाई लड़ी और एक समतावादी समाज की मांग की जिसमें न्यूनतम मजदूरी, आत्म-सम्मान, गरिमा और भूमि स्वामित्व को मानक रूप से सुनिश्चित किया गया हो. 1950 में, संविधान की मसौदा समिति का नेतृत्व करने वाले आंबेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि राजनीतिक लोकतंत्र सामाजिक लोकतंत्र के बिना लंबे समय तक नहीं चल सकता. उन्होंने कहा कि ऐसी राजनीति के मूल में स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा होगा.

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