पिछले कुछ सालों से कांग्रेस आरक्षित सीटों के मोर्चे पर कमजोर पड़ती जा रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं. देश में लोकसभा की 131 आरक्षित सीटें हैं, जो लोकसभा की कुल सीटों का 24 प्रतिशत है. इनमें से 84 सीटें अनुसूचित जाति की हैं, तो अनुसूचित जनजाति के लिए 47 सीटें हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को आरक्षित 131 सीटों में से केवल 10 सीटों पर जीत मिली थी.
121 रिजर्व सीटें ऐसी थीं, जहां कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा था. जबकि पिछले दो लोकसभा चुनावों से भाजपा की सत्ता में वापसी में इन आरक्षित सीटों का बड़ा योगदान रहा है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में आरक्षित सीटों पर भाजपा सबसे बड़ी खिलाड़ी बन कर सामने आयी. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 131 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 2019 में 86 सीटें जीती थीं. वहीं, 2014 में भाजपा को 60 फीसदी आरक्षित सीटों पर जीत मिली थी. 2014 के आम चुनाव में भाजपा ने लोकसभा में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 84 सीटों में से 40 सीटें जीती थीं.
भाजपा के बाद इस मामले में दूसरा स्थान तृणमूल कांगेस का था, जिसने एससी के लिए आरक्षित सीटों में से 11 सीटें जीतीं. 2014 के लोकसभा चुनाव में एसटी के लिए आरक्षित सीटों में से कांग्रेस की झोली में सिर्फ पांच आयीं, जबकि बीजू जनता दल ने चार सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं तृणमूल कांगेस व टीआरएस दो-दो और कई अन्य दलों को एक-एक सीट से ही संतोष करना पड़ा.
इसी तरह 2009 के लोकसभा चुनाव में एसटी के लिए आरक्षित 47 सीटों में से कांग्रेस ने 20 और भाजपा ने 13 सीटें जींतीं, जबकि बीजद तीन व माकपा दो सीटों पर ही जीत दर्ज कर पायी. शेष सीटें अन्य दलों के खाते में गयीं. वहीं 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एसटी के लिए आरक्षित 41 सीट में से 15 और कांग्रेस ने 14 सीटें पर जीत दर्ज की. जबकि माकपा व झारखंड मुक्ति मोर्चा को तीन-तीन सीटों से ही संतोष करना पड़ा.