नवरात्र के सातवें दिन कालरात्रि देवी की पूजा की जाती है. नैवेद्य में गाय का घी,चावल का चिउड़ा, गुड़ अर्पण करें. इससे आपकी जन्मपत्री के ग्रहों की बाधा, दुष्टों व शत्रुओं का नाश होगा़ आकस्मिक रोग, बाधा, विघ्न विपत्ति दूर होगी़ मां की कृपा से आप शोकमुक्त होंगे. शक्ति ही सर्वोपरि है़ वे अनेक रूप में जानी जाती हैं.
ग्रंथों में सर्वत्र देवी की अखंड और अपार महिमा का विवरण-वर्णन मिलता है, जिससे स्पष्ट होता है कि शक्ति सृष्टि की मूल नाड़ी,चेतना का प्रवाह और सर्वव्यापी है. शक्ति की उपासना आज की उपासना नहीं है, वह अत्यंत प्राचीन बल्कि अनादि है. वह एक महाशक्ति ही परमात्मा है, जो विभिन्न रूपों में विविध लीलाएं करती हैं.
परमात्मा के पुरुष वाचक सभी स्वरूप इन्हीं अनायी, परमेश्वरी आद्यामहाशक्ति के ही हैं. ये ही महाशक्ति अपनी मायाशक्ति को जब अपने अंदर छिपाये रखती हैं, उससे कोई क्रिया नहीं करतीं, तब निष्क्रिय, शुद्ध ब्रह्म कहलाती हैं. ये ही जब उसे विकासोन्मुख करके एक से अनेक होने का संकल्प करती है, तब स्वयं ही पुरुष रूप से मानो अपनी ही प्रकृति रूप योनि में संकल्प द्वारा चेतनरूप बीज स्थापन करके सगुण, निराकार परमात्मा बन जाती है. श्रीमद् भगवद गीता में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-
चेतन परमात्मा रूपी महाशक्ति के बिना जड़ प्रकृति से यह सारा कार्य कदापि संपन्न नहीं हो सकता. इस प्रकार महाशक्ति विश्व रूप विराट पुरुष बनती है और इस सृष्टि के निर्माण में स्थूल निर्माणकर्ता प्रजापति के रूप में आप ही अंशावतार के भाव से ब्रह्मा और पालन-कर्ता के रूप में विष्णु और संहारकर्ता के रूप में रूद्र बन जाती है. ये ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि अंशावतार भी किसी कल्प में दुर्गा रूप से होते हैं.
प्रस्तुति : डॉ एनके बेरा