मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को ऐलान किया कि राज्य की सरकारी नौकरियों में केवल राज्य के बच्चों का हक होगा. उन्होंने बाहरियों को रेकने के लिए सरकारी नौकरियों को राज्य के लोगों के लिए आरक्षित का ऐलान किया. उन्होंने कहा कि इसके लिए जल्द ही नया कानूनी कदम उठाएंगे. हालांकि जन्मस्थान के आधार पर नागरिकों से नौकरी में भेदभाव संविधान का उल्लंघन है.
सीएम शिवराज के इस फैसले पर विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोग प्रतिक्रिया दे रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने बुधवार को एक ट्वीट कर कहा कि धरती का लाल (जन्मस्थान के आधार पर) सिद्धांत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ई) का उल्लंघन करता है. इसमें कहा गया है कि भारत के सभी नागरिकों को भारत के किसी भी हिस्से में निवास करने और बसने का अधिकार है.
The ‘son of the soil’ theory violates Article 19(1)(e) of the Indian Constitution which states “ All citizens have the right to reside and settle in any part of the territory of India “.
— Markandey Katju (@mkatju) August 19, 2020
दरअसल भारतीय संविधान विशेष रूप से जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है. इसी तरह संविधान का अनुच्छेद 16(2) कहता है कि राज्य (यहां देश) के तहत किसी भी रोजगार या कार्यालय के संबंध में कोई भी नागरिक, केवल धर्म, जाति, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के लिए भी अयोग्य नहीं माना जाएगा या उससे भेदभाव नहीं किया जाएगा.
सीएम शिवराज के बयान के बाद देशभर में मौलिक अधिकारों पर बहस शुरू हो सकती है. खासकर समानता के अधिकार पर. जहां संविधान में साफ है कि किसी भी नागरिक से उसके जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने डोमिसाइल रिजर्वेशन को शिक्षण संस्थानों में संवैधानिक करार दिया है. हालांकि, सरकारी नौकरियों में क्षेत्रवाद के आधार पर आरक्षण को लेकर कोर्ट भी सख्त रही हैं.
दरअसल, अदालतों का भी मानना है कि इस तरह सरकारी नौकरियों में क्षेत्र के आधार पर आरक्षण से नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अभी तक अपने इस ऐलान का कोई ब्योरा नहीं दिया है, हालांकि महज जन्मस्थान के आधार पर आरक्षण को संवैधानिक मान्यता नहीं मिल सकती.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पिछले साल ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सबऑर्डिनेट सर्विस सेलेक्शन कमीशन के भर्ती नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया था. क्योंकि इसमें राज्य की निवासी महिलाओं को तरजीह देने का नियम रखा गया था. इसस पहले 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान में सरकारी शिक्षकों की नियुक्ति को अवैध करार दे दिया था. यहां राज्य चयन बोर्ड ने एक खास जिले और उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के आवेदकों को भर्ती में खास तवज्जो दी थी.
बता दें कि कुछ राज्य पहले ही स्थानीय नागरिकों के लिए नौकरियां आरक्षित करने पर विचार कर रहे हैं. कुछ ने तो भाषा को राज्य में रहने का आधार बनाया है. इनमें महाराष्ट्र भी शामिल है, जहां 15 साल से ज्यादा रह चुके और मराठी में पारंगत लोग ही नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं. वहीं जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरियां सिर्फ वहां रहने वालों के लिए ही रिजर्व हैं. उत्तराखंड में भी कुछ पदों के लिए स्थानीय लोगों की ही भर्ती का नियम है. इसके अलावा पश्चिम बंगाल में कुछ पदों पर नियुक्ति के लिए बंगाली लिखना-पढ़ना आना जरूरी है.
Posted By: Utpal kant