Shiv Sena पर अधिकार को लेकर एकनाथ शिंदे व उद्धव ठाकरे आमने-सामने, जानें कब-कब टूटी है ठाकरे की पार्टी

Maharashtra Political Crisis: इतना तो तय है कि पार्टी में बंटवारा होगा, लेकिन सवाल है कि किसके पास पार्टी सिंबल होगा और पार्टी होगी. शिंदे के दावे के मुताबिक, दल बदल विरोधी कानून भी अब शिवसेना के टूट के आड़े नहीं आयेगी, क्योंकि शिंदे के पास 55 में से 40 विधायकों का समर्थन प्राप्त है.

By Prabhat Khabar News Desk | June 25, 2022 7:41 AM

Shiv Sena Crisis: महाराष्ट्र में शिवसेना का संकट बढ़ता जा रहा है. अब सियासी गलियारों में चर्चा हो रही है कि बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना किसकी होगी और किसे पार्टी का चुनाव चिह्न धनुष-बाण मिलेगा. शिवसेना और उसके चुनाव चिह्न को लेकर बागी नेता एकनाथ शिंदे और पार्टी सुप्रीमो उद्धव ठाकरे आमने-सामने हैं. शिवसेना के 55 विधायकों में से दो तिहाई यानी 37 से अधिक विधायकों के साथ आ जाने से गदगद शिंदे अब दावा कर रहे हैं कि पार्टी के 40 विधायक उनके साथ हैं. उद्धव पर हिंदुत्व को छोड़ने का आरोप लगाते हुए शिंदे अब शिवसेना और उसके चुनाव चिह्न तक पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं.

बहरहाल, जानकार बताते हैं कि इतना तो तय है कि पार्टी में बंटवारा होगा, लेकिन सवाल है कि किसके पास पार्टी सिंबल होगा और पार्टी होगी. जानकारों का कहना है कि एकनाथ शिंदे के दावे के मुताबिक, दल बदल विरोधी कानून भी अब शिवसेना के टूट के आड़े नहीं आयेगी, क्योंकि शिंदे के पास 55 में से 40 विधायकों का समर्थन प्राप्त है. दल बदल विरोधी कानून के प्रावधानों के अनुसार, विलय के लिए किसी विधायक दल को दो-तिहाई सदस्यों की सहमति की जरूरत होती है, जिन्होंने किसी अन्य राजनीतिक दल के साथ विलय करने की सहमति दी हो.

एक व्यक्ति ने गवर्नर को लिखा पत्र, कहा – मुझे बनाएं कार्यवाहक सीएम

महाराष्ट्र के बीड जिले के एक व्यक्ति ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को पत्र लिख कर खुद को राज्य का कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाने की मांग की है. केज तहसील के दहीफल निवासी श्रीकांत गदाले ने दावा किया कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने आम लोगों की समस्याओं की उपेक्षा की है. मैं 10-12 साल से राजनीति में हूं और समाज सेवा कर रहा हूं. गदाले ने राज्यपाल से उन्हें कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करने और उन्हें एक मौका देने का आग्रह किया है.

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एनसीपी और कांग्रेस के मंत्री जारी कर रहे सरकारी आदेश

उद्धव सरकार के अस्तित्व पर छाये संकट के बीच प्रदेश सरकार के विभागों द्वारा बीते चार दिनों में हजारों करोड़ रुपये के विकास संबंधी कार्यों के लिए निधि जारी करने के आदेश दिये गये. इन विभागों में अधिकतर गठबंधन सहयोगी एनसीपी और कांग्रेस के नियंत्रण वाले हैं. 20 से 23 जून के बीच विभागों ने 182 सरकारी आदेश (जीआर) जारी किये हैं. वहीं, विपक्षी भाजपा ने राज्यपाल से पिछले कुछ दिनों में दिखी ‘जीआर की हड़बड़ी’ को रोकने की मांग की है.

शिवसेना की पहली टूट नहीं

शिवसेना में टूट पहली बार नहीं है. इससे पहले भी इसके ऊपर संकट आये हैं और वह इससे उबर कर मजबूती के साथ उभरी है.

1991 : छगन भुजबल ने छोड़ा साथ

छगन भुजबल ने 1960 के दशक में शिवसेना से सियासी पारी की शुरुआत की. बाला साहेब ठाकरे ने 1985 में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी थी. हालांकि, 1991 में भुजबल ने न सिर्फ शिवसेना छोड़ा, बल्कि आठ विधायकों के साथ एनसीपी में चले गये.

2005 : नारायण राणे ने छोड़ी पार्टी

महाराष्ट्र के पूर्व सीएम नारायण राणे भी एक वक्त शिवसेना के कद्दावर नेताओं में शामिल थे. वह पहली बार 1990 में शिवसेना से विधायक बने. भुजबल ने शिवसेना छोड़ी, तो राणे का कद बढ़ने लगा. एक फरवरी 1999 को राणे मुख्यमंत्री बने. जब उद्धव ठाकरे को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया, तो उन्होंने बगावत कर दी. तीन जुलाई 2005 को कांग्रेस में शामिल हो गये. उनके साथ 10 विधायक भी चले गये.

2006 : राज ठाकरे ने भी की बगावत

राज ठाकरे जनवरी 2006 तक शिवसेना में थे. हालांकि, उद्धव को अहमियत मिलता देख, वह नाराज हो गये. इसके बाद उन्होंने हजारों शिवसेना कार्यकर्ताओं के साथ पार्टी छोड़ दी.

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