रचना प्रियदर्शिनी
महात्मा गांधी लियो टॉल्स्टॉय, डेविड थोरो, सुकरात और गोपाल कृष्ण गोखले के विचारों से प्रभावित थे, इसमें कोई शक नहीं है, परंतु उन्होंने अपनी माता पुतलीबाई और पत्नी कस्तूरबा गांधी सहित हर खास और आम महिलाओं को भी अपनी प्रेरणा का स्रोत बनाया. यही कारण है कि महिलाओं के विषय पर उनके विचारों में ठहराव कम, निरंतर गतिशीलता अधिक देखने को मिलती है. महात्मा गांधी मानते थे कि महिला-पुरुष की संयुक्त साझेदारी के बिना महिला सशक्तीकरण संभव नहीं है. उनके अनुसार, यह साझेदारी आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षिक पर महिलाओं को मजबूत बनाये बिना संभव नहीं है.
गांधीजी पर पहला प्रभाव उनकी मां का पड़ा. अपनी मां से वे काफी प्रभावित थे. उन्होंने कहा- ‘‘मेरी मां ने मेरी याददाश्त पर जो उत्कृष्ट प्रभाव छोड़ा, वह अहिंसा व संतत्व है. कृष्ण भक्ति परंपरा में वह गहरी धार्मिक आस्था रखती थीं. वह दैनिक प्रार्थना के बिना अपना भोजन लेने के बारे में नहीं सोचती थीं. वह सबसे कठिन प्रतिज्ञाएं लेती थीं और उन्हें बिना किसी हिचकिचाहट के पूरा करती थीं. बीमारी उनके लिए आराम करने का कोई बहाना नहीं थी. इंग्लैंड जाने की अनुमति से पहले उन्होंने शराब, महिलाओं और मांस को नहीं छूने की जो कसम दिलाई, इंग्लैंड प्रवास के दौरान उसने मेरी रक्षा की.’’
‘बा’ के नाम से विख्यात कस्तूरबा गांधी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की धर्मपत्नी और भारत के स्वाधीनता आंदोलन की अग्रणी कार्यकर्ता थीं. असहयोग आंदोलन के दौरान जेल जानेवाली महिलाओं में वह सबसे आगे थीं. बा- बापू से स्वतंत्र भी थीं और बापू में प्याप्त भी थीं. बकौल गांधी जी, बा उनकी कारयित्री शक्ति और जीवन का अभिन्न अंग थीं. मोहनदास करमचंद गांधी के ‘बापू’ बनने की ऐतिहासिक प्रक्रिया में बा हमेशा एक खामोश ईंट की तरह नींव में बनी रहीं. निरक्षर होने के बावजूद उन्हें अच्छे-बुरे को पहचानने का विवेक था. उनकी यही बात गांधी जी को अच्छी लगती थी. गांधी जी, बा की अडिग इच्छाशक्ति के भी कायल थे. वो जो ठान लेती थीं, उसे कर के ही दम लेती थीं. गांधी जी से कई मुद्दों पर असहमत होने के बावजूद बा ने न सिर्फ अपना पत्नी धर्म निभाते हुए उनका साथ दिया, बल्कि जरूरत पड़ने पर उनसे भी अपने निर्णयों को भी बखूबी स्वीकार करवाया. जब भी गांधी से बा की किसी बात पर लड़ाई होती, तो वह ‘उपवास’ को अपने प्रतिरोध का हथियार बनातीं. आगे चल कर गांधीजी को ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने के लिए सत्याग्रह शुरू करने की प्रेरणा इसी से मिली. उन्होंने कहा- ‘‘बा ने दमन के प्रतिरोध के लिए अपनी निजी वेदना के भीतर से ही एक शस्त्र विकसित किया, जिसने मुझे बलिदान की भावना और सत्याग्रह के सूत्र विकसित करने के सूत्र दिये.’’
वहीं लेखक गिरिराज किशोर द्वारा लिखित पुस्तक ‘बा’ में शामिल एक प्रसंगनुसार- ‘बापू- बा के बारे में अपने विचार महादेव भाई (सहयोगी) के सिवाय और किसी के सामने प्रकट नहीं करते थे. एक बार उनसे बातों-ही-बातों में बापू ने यह स्वीकार किया था कि बा की सहजता और सरलता उन्हें जकड़ लेती है और वह उन्हें हर मायने में सहज कर देती हैं.’
‘सफ्रागेट्स’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘एक संगठित विरोध के माध्यम से वोट के अधिकार की मांग करने वाली महिलाएं.’ 20वीं शताब्दी की शुरुआत में इसका उपयोग एक सक्रिय महिला संगठन द्वारा प्रयुक्त किया गया, जिसने ‘वोट्स फॉर वीमेन’ के बैनर तले सार्वजनिक चुनावों में वोट देने के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी थी. 1906 और 1909 में गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के अधिकारों की पैरवी करने के लिए लंदन का दौरा किया. दोनों ही दफे अपनी यात्राओं के दौरान उन्होंने ‘मताधिकार’ की मांग करनेवाली महिला कार्यकर्ताओं को सड़क पर विरोध प्रदर्शन करते हुए देखा. गांधी इस बात से बेहद प्रभावित हुए कि गिरफ्तारी देने वाले मताधिकारी अक्सर स्थापित परिवारों से आते थे. उनमें युद्ध नायक, जनरल फ्रेंच की बहन और उदारवादी राजनेता रिचर्ड कोबडेन की बेटी शामिल थीं. उन आंदोलनों ने देश के स्वतंत्र होने पर सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के लिए कांग्रेस की प्रतिबद्धता का समर्थन करने के लिए अपनी मातृभूमि में गांधी जी के निर्णय को भी प्रभावित किया.
मीरा बेन का असली नाम मेडेलीन स्लेड था. वह मुंबई के नौसेना के ईस्ट इंडीज स्क्वाड्रन में कमांडर इन चीफ के पद पर तैनात सर एडमंड स्लेड की बेटी थीं. गोरी नस्ल की अंग्रेजन होने के बावजूद वह हिंदुस्तान की आजादी के पक्ष में थीं. मेडेलीन को प्रकृति से काफी प्रेम था और उन्होंने हिंदी सहित 14 अलग-अलग भाषाएं सीखी थीं. गांधी जी पर लिखे एक साहित्य को पढ़ कर उनसे बेहद प्रभावित हुईं और उन्होंने गांधी जी की अवधारण ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया. एक संभ्रांत परिवार की लड़की सादी धोती और जमीन पर सोने लगी. उनकी इसी सादगी और आत्मबल ने गांधी जी को बेहद प्रभावित किया. अपनी आत्मकथा “द स्पिरिट्स पिलग्रिमेज” में उन्होंने महात्मा गांधी के साथ अपनी पहली मुलाकात का जिक्र करते हुए बताया है कि उस समय महात्मा गांधी ने उनसे कहा था कि तुम मेरी बेटी बनकर रहोगी. महात्मा गांधी ने उन्हें ‘मीरा बेन’ नाम दिया. मीरा बेन ने भी करीब 34 वर्षों का अपना जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित कर दिया. उत्तर प्रदेश के मुलदास पुर में किसान आश्रम की स्थापना में उनका अहम योगदान रहा. वह गांधी जी के साथ जेल भी गयीं.
पंजाब के कपूरथला रियासत की राजकुमारी अमृता कौर अपने सात भाइयों में अकेली बहन थीं. उन्होंने ईंगलैंड के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की थी. उनके पिता ने ईसाई धर्म अपना लिया था, लेकिन अमृता भारतीयों पर अंग्रेजों द्वारा किये गये जा जुल्मों को देख कर बेहद आहत होती थीं. गोपाल कृष्ण गोखले से राजकुमारी के परिवार के अच्छे संबंध से थे. उन्हीं के जरिये राजकुमारी की जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद महात्मा गांधी से जालंधर में मुलाकात हुई और उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने की अपनी इच्छा जतायी. गांधी जी ने उनके सेवाभाव की परीक्षा लेते हुए उन्हें सेवाग्राम आश्रम में हरिजनों की सेवा करना और साफ-सफाई का काम सौंप दिया. अमृत कौर ने पूरी निष्ठा और सेवाभाव से इस जिम्मेदारी को निभाया और गांधी जी की परीक्षा में सफल हुईं. तब गांधी जी ने उन्हें अपनी शिष्या बना लिया. वह लगातार 16 वर्षों तक उनकी सचिव रहीं. सरोजनी नायडू के साथ मिलकर उन्होंने ऑल इंडिया वुमन कांफ्रेंस की स्थापना की. आजादी के बाद वह स्वतंत्र भारत की प्रथम स्वास्थ्य मंत्री बनीं. इनके अलावा, एनी बेसेंट, सरोजिनी नायडू, कमलादेवी चट्टोपाध्याय और पुष्पाबेन मेहता आदि स्त्रियों से भी गांधी जी काफी प्रभावित थे.
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