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मैथिलीशरण गुप्तः राष्ट्रकवि, पद्म विभूषण से सम्मानित, जिनकी नाम ही है पहचान, पूरा देश कर रहा है जन्मदिवस पर याद

MaithliSharan Gupt: मैथलीशरण गुप्त को कवि बनने की प्रेरणा विरासत में मिली थी. उनके पिता और उनके भाई शेरमशरण गुप्त दोनों ही कवि थे. अपनी रचनाओं में मैथलीशरण गुप्त ने समाज की समस्याओं का विशेष रूप से जिक्र किया है.

Maithli Sharan Gupt: आधुनिक हिन्दी कविता के दिग्गज और खड़ी बोली के प्रथम कवियों में शुमार मैथलीशरण गुप्त की कविताएं शायद ही किसी ने न पढ़ी हो. पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी को अपनी प्रेरणा मानने वाले गुप्त ने अपनी रचनाओं में खड़ी बोली खास तरजीह दी. मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 को झांसी में हुआ था. साहित्य जगत में उन्हें दद्दा नाम से संबोधित किया जाता था. आज उनकी जयंती है. कविता की दुनिया के सिरमौर माने जाने वाले कवि मैथलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि के नाम से भी जाना जाता है.

विरासत में मिली थी कवि बनने की प्रेरणा
मैथलीशरण गुप्त को कवि बनने की प्रेरणा विरासत में मिली थी. उनके पिता और उनके भाई शेरमशरण गुप्त दोनों ही कवि थे. अपनी रचनाओं में मैथलीशरण गुप्त ने समाज की समस्याओं का विशेष रूप से जिक्र किया है. उनकी सोच सुधार युग की राष्ट्रीय नैतिक चेतना ओतप्रोत रही है.

घर पर ही पाई थी तालिम
मैथलीशरण गुप्त की शिक्षा स्कूलों में नहीं हुई थी. स्कूल नहीं जाने के कारण उनके पिता ने उनकी शिक्षा की व्यवस्था घर पर ही कर दी थी. उन्होंने संस्कृत , अंग्रेजी और बंगला भाषा का अच्छा अध्ययन किया था. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने उन्हें शिक्षा दी थी.

साहित्य की दुनिया में प्रवेश
मैथलीशरम गुप्त भले ही स्कूल नहीं गये, लेकिन शिक्षा में उनकी काफी रुचि थी. महज 12 साल की उम्र में ही उन्होंने ब्रज भाषा में कविता लिखना शुरू कर दिया था. उनकी खड़ी बोली में लिखी कविताएं उस समय की खास मासिक पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित होने लगी थी. उनके प्रथम काव्य रंग में भंग ने उन्हें काफी सुर्खियां दी. इसके बाद उन्होंने जयद्रथ वध काव्य लिखा.

राष्ट्रकवि का मिला था दर्जा
मैथलीशरण गुप्त की अधिकांश रचनाएं रामायण, महाभारत, बौद्ध कहानियों और प्रसिद्ध धार्मिक नेताओं के जीवन दर्शन के इर्द-गिर्द रही हैं. उनकी रचनाओं में देश प्रेम, समाज सुधार, राजनीति की भी आभा छटकती है. राष्ट्रीय विषयों पर लिखने के कारण उन्हें राष्ट्रकवि का दर्जा मिला. 1914 में राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत भारत भारती का प्रकाशन किया. भारत भारती ने उनकी प्रसिद्धि में चार चांद लगा दिए. उन्होंने प्रेस की स्थापना कर अपनी पुस्तकें भी छापना शुरू किया. 1931 में वो राष्ट्रपिता गांधी के सम्पर्क में आए थे. सबसे पहले गांधी जी ने उन्हें राष्टकवि कहकर पुकारा था.

“कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को”

पद्म विभूषण से किया गया था सम्मानित
मैथलीशरण गुप्त को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था. भारत सरकार ने साल 1953 में उन्हें यह उपाधि से सम्मानित किया था. 1954 में साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया. भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने साल 1962 में अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया था. हिन्दू विश्वविद्यालय की और से उन्हें डी लिट की उपाधि दी गई थी. उन्हें राज्य सभा का मानद सदस्य भी बनाया गया था. 1964 में अपनी मृत्यु तक वो राज्य सभा के सदस्य बने रहे.

हमेशा अमर रहेंगी उनकी रचनाएं
अनघ’, चन्द्रहास, तिलोत्तमा, निष्क्रिय प्रतिरोध और विसर्जन मैथिलीशरण गुप्त की 5 मौलिक नाटक हैं. उन्होंने कुल 40 मौलिक और 6 अनुदित पुस्तकें प्रकाशित की हैं. भारत भारती, यशोधरा, साकेत, तिलक, पंचवटी उनकी प्रमुख रचनाओं में शामिल हैं. उसके अलावा उन्होंने कई कविताएं भी लिखी हैं. आज उनके जन्मदिवस के दिन उनकी रचनाओं और साहित्य के क्षेत्र में अपूर्व योजदान के लिए पूरा देश उन्हें कर रहा है शत् शत नमन…

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