आजकल लॉकडाउन के साथ-साथ आम का भी मौसम चल रहा है और आपमें में से शायद ही कोई होंगे, जिसे आम खाना पसंद न हो. इसका नाम भले ही आम है, लेकिन यह अपने अंदर कई खासियत छिपाये रहता है. मिठास और खुशबू के मामले में यह दूसरे सभी फलों पर भारी पड़ता है. यही वजह है कि इसे फलों का राजा भी कहते हैं. तुम्हें तो इसके खट्टे टिकोले ही ललचाने लगते हैं. इस फल को चाहनेवाले पूरी दुनिया में मौजूद हैं. जानते हैं कि आम की हर वेराइटी क्यों होती है बेहद खास.
फलों का राजा आम मूल रूप से भारत का फल है. इसके बॉटनिकल नाम ‘मेंगीफेरा इंडिका’ में आने वाले इंडिका से भी इस बात का पता चलता है. दरअसल, ग्रीक व लैटिन भाषा में इंडिया के लिए इंडिका शब्द का प्रयोग होता है. इतिहास में भी इस बात का जिक्र मिलता है कि सन् 327 ईसा पूर्व में सिकंदर के सैनिकों ने सिंधु घाटी में आम के पेड़ देखे थे. कालिदास के साहित्य में भी आम का जिक्र है. इनके अलावा ह्वेनसांग और इब्ने बतूता के विवरणों में भी आम का उल्लेख मिलता है. मुगल वंश के संस्थापक बाबर ने बाबरनामा में लिखा है कि हिंदुस्तान के अपने फलों में एक अंबा यानी आम है. हालांकि, एक राय यह भी है कि इसकी उत्पत्ति नॉर्थ-ईस्ट इंडिया से सटे म्यांमार में हुई थी. माना जाता है कि यह पहली बार भारत में पांच से छह हजार साल पहले उगाया गया था.
दुनियाभर में हर साल लगभग दो करोड़ मीट्रिक टन आम की पैदावार होती है. इसमें सबसे बड़ा हिस्सा भारत का ही होता है. आपको जान कर आश्चर्य होगा कि दुनिया के 10 प्रतिशत देशों में ही 80 प्रतिशत से ज्यादा आम की पैदावार होती है. दुनियाभर में आम का निर्यात करनेवाले मुख्य देश भारत, पाकिस्तान, मेक्सिको, प्यूर्टोरिको, ब्राजील, इस्राइल, साउथ अफ्रीका और पेरू हैं. दुनियाभर में आम की प्रजातियां दो इंच से लेकर 10 इंच तक लंबी होती हैं. आम के बारे में कहा जाता है कि इसकी जितनी किस्में, उतने ही किस्से हैं. अपने देश में ही इसकी सैकड़ों किस्में मौजूद हैं.
अल्फांसो : आम यदि फलों का राजा है, तो अल्फांसो को आमों का राजा कहा जा सकता है. इसकी पैदावार खासतौर से महाराष्ट्र में होती है. कई और राज्यों में इसे बादामी, खादेर, हापुस और कगड़ी हापुस आदि नामों से भी जाना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि आम की इस वेरायटी का नाम भारत में पुर्तगाली उपनिवेश स्थापित करने वाले जनरल अल्फांसो डी अल्बुकर्क के नाम पर रखा गया है. यह मीडियम साइज, तिरछापन लिए हुए अंडाकार, पीले छिलके वाला और रेशे के बिना होता है. इसकी गुठली भी छोटी होती है. बाकी किस्मों से यह आम थोड़ा महंगा होता है.
जर्दालु : बिहार के भागलपुर इलाके में होने वाले जर्दालु आम की खुशबू आपको इसे खाने के लिए मजबूर कर देगी. पक जाने पर इसके पीले रंग की वजह से इसका नाम जर्दालु रखा गया है. इसे बिहार के कुछ अन्य हिस्सों में जर्दा के नाम से भी जाना जाता है. इसके गूदे में रेशे नहीं होते. इसका स्वाद ही कुछ ऐसा है कि एक बार जो इसे चख ले वह इसका दीवाना हो जाता है. भागलपुर से हर वर्ष देश के राष्ट्रपति सहित देश के अन्य गण्यमान्य लोगों व अतिथियों को यह आम भेजा जाता रहा है. यह मई से जून के बीच बाजारों में उपलब्ध रहता है.
तोतापरी : इस आम की तोते की चोंच जैसी नोक और रंग के कारण इसे तोतापरी कहा जाता है. यह मुख्यत: आंध्र प्रदेश की आम की एक किस्म है. इसकी नुकीली शक्ल से ही तुम इसे पहचान सकते हो. इसका साइज मीडियम होता है, लेकिन रंग सुनहरा पीला होता है. यह जून से जुलाई के सीजन में आनेवाली वेराइटी है.
लंगड़ा : आम की यह वेराइटी आमतौर सभी जगह मिलती है, पर इसकी ऑरिजिन उत्तर प्रदेश के बनारस की मानी जाती है. इसका रंग पत्तियों जैसा हरा होता है. इसे ही बिहार व पश्चिम बंगाल में मालदा आम के नाम से भी जाना जाता है. यह गूदेदार और बहुत मीठा होता है. उत्तर भारत में सबसे ज्यादा पसंद किया जानेवाला यही आम है. देश-विदेश में भी इसका नाम प्रसिद्ध हो चुका है. कहा जाता है कि इस आम की वेराइटी को पहली बार उगानेवाला व्यक्ति एक पैर से लंगड़ा था, इसलिए इसे लंगड़ा कहा जाता है.
हिमसागर : पश्चिम बंगाल में हिमसागर एक बहुत ही लोकप्रिय आम की किस्म है. यह बांग्लादेश में भी काफी लोकप्रिय है. यह देखने में हरा होता है, लेकिन स्वाद में लाजवाब होता है. हिम यानी कि बर्फ, जिस तरह से फ्रिज से बाहर निकालते ही बर्फ पिघल जाती है और आप उसे ज्यादा समय तक नहीं रख पाते, उसी तरह से हिमसागर आम की वेराइटी सबसे कम समय के लिए मार्केट में आती है. इस आम का स्वाद सिर्फ मई महीने में ही ले सकते हो.
दशहरी : दशहरी आम का सबसे ज्यादा उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है. कहा जाता है कि दशहरी आम का पहला पेड़ लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन से सटे दशहरी गांव में लगाया गया था. इसी गांव के नाम पर इसका नाम दशहरी आम पड़ा. यह साइज में मीडियम, लेकिन लंबापन लिए होता है. इसे भी आम की बेहतरीन किस्मों में से एक माना जाता है. यह भी खुशबूदार, मीठा, हरा-पीला रंग का होता है.
देसी या बीजू : इसका साइज छोटा होता है. इसे बीजू कहने का तात्पर्य है कि इस तरह के आम का पौधा कलम की जगह सीधे आम के बीज से पेड़ का रूप लेता है. ऐसे आम पकने पर पिलपिले महसूस होते हैं. रेशेदार होने की वजह से इसे आसानी से काट कर नहीं खाया जा सकता, लेकिन चूस कर खाने के मामले में इस आम का कोई जोड़ नहीं है. यह सीजन की शुरुआत में ही पकने लगते हैं. ये बाकी किस्मों के मुकाबले सस्ता होते हैं. इसके अलावा भी आम की कई किस्में हैं, जिनमें सफेदा, चौसा, नीलम, केसर, किशन भोग, फजली, गुलाब खास, सिंदूरी आदि प्रमुख हैं, इन सबकी भी अपनी विशेषता है.
-संस्कृत भाषा में इसे आम्रः कहा जाता है. इसी से इसका नाम आम पड़ गया.
-1490 के अंत में पुर्तगाली लोग केरल से मसालों के साथ आम और इसका नाम भी ले गए. वे लोग इसे मांगा बोलते थे. मांगा से अंग्रेजी में मैंगो हो गया.
-ए हिस्टोरिकल डिक्शनरी ऑफ इंडियन फूड, किताब के मुताबिक, आम को तोड़ने की तकनीक सबसे पहले पुर्तगालियों ने इस्तेमाल की थी. पुर्तगालियों को आम इतने ज्यादा पसंद थे कि वे जहां गए आम के बीज ले गए और इससे कई देशों को परिचित करवाया.
-प्राचीन भारत में आम के पेड़ को समृद्धि का प्रतीक माना जाता था. ट्रैवलर और लेखक ह्वेंनसांग ने भी आम के विषय में यह लिखा है कि राजा द्वारा समृद्धि के लिए सड़क किनारे आम के पेड़ लगाए जाते थे.
Posted By : Sameer Oraon