Manipur No work No Pay: हिंसा के बाद से गायब सरकारी कर्मचारियों की कटेगी सैलरी, मणिपुर सरकार ने दिखाई सख्ती
Manipur Violence सरकार ने ऐडमिनिस्ट्रेटिव सेक्रेटरी से सभी कर्मचारियों की सूची मांगी गई है. जो हिंसा के बाद से अपने ऑफिस में उपस्थित नहीं हुए हैं. सरकार ने सभी कर्मचारियों के नाम, पद, ईआईएन और वर्तमान पते की डीटेल मांगी है.
मणिपुर में एक ओर जहां हिंसा लगातार जारी है, वहीं भाजपा के नेतृत्व वाली बिरेन सिंह सरकार ने 1 लाख सरकारी कर्मचारियों को तगड़ा झटका दिया है. सरकार ने सभी कर्मचारियों के खिलाफ नो-वर्क-नो-पे सख्ती लागू कर दी है. यानी काम पर नहीं जा रहे सरकारी कर्मचारियों की सैलरी में कटौती की जाएगी.
सरकार ने सरकारी कर्मचारियों पर क्यों दिखाई सख्ती
दरससल मणिपुर की बिरेन सिंह सरकार ने वैसे सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ सख्ती दिखाई है, जो 3 मई को हिंसा भड़कने के बाद से बिना अधिकृत छुट्टी के अपने कार्यालयों से बाहर हैं. खासकर उन कर्मचारियों के खिलाफ जो पहाड़ी जिलों की घाटी में तैनात किया गया है.
सरकार ने कर्मचारियों की मांगी रिपोर्ट
सरकार ने ऐडमिनिस्ट्रेटिव सेक्रेटरी से सभी कर्मचारियों की सूची मांगी गई है. जो हिंसा के बाद से अपने ऑफिस में उपस्थित नहीं हुए हैं. सरकार ने सभी कर्मचारियों के नाम, पद, ईआईएन और वर्तमान पते की डीटेल मांगी है.
सीएम बिरेन सिंह ने दिल्ली में की गृह मंत्री से मुलाकात
गौरतलब है कि मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर मुख्यमंत्री बिरेन सिंह ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भेंट की थी और राज्य की मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी दी थी. मुलाकात के बाद उन्होंने बताया था कि मणिपुर की स्थिति से केंद्र सरकार भी चिंता में है. सिंह ने नयी दिल्ली में शाह को मणिपुर के ताजा हालात के बारे में जानकारी दी और कहा कि राज्य एवं केंद्र सरकार हिंसा को काफी हद तक नियंत्रित करने में सफल साबित हुई हैं.
मणिपुर में क्यों भड़की हिंसा
गौरतलब है कि मणिपुर में मेइती और कुकी समुदाय के बीच हुए जातीय संघर्ष में अब तक 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किए जाने के बाद मणिपुर में हिंसक झड़पें शुरू हो गई थीं.
मणिपुर में मेइती समुदाय की आबादी सबसे अधिक
पूर्वोत्तर के इस राज्य में मेइती समुदाय की आबादी करीब 53 प्रतिशत है, जिसमें से ज्यादातर इंफाल घाटी में रहती है, जबकि नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की आबादी 40 फीसदी के आसपास है और ये ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.