Manmohan Singh: जून 1991 का समय था जब भारत आर्थिक संकट के कठिन दौर से गुजर रहा था. मनमोहन सिंह, जो उस समय यूजीसी के अध्यक्ष थे, नीदरलैंड्स में एक सम्मेलन में भाग लेकर दिल्ली लौटे थे. दिल्ली पहुंचने के बाद रात को वे आराम करने चले गए. उसी रात उनके दामाद विजय तनखा को पीसी एलेक्जेंडर का फोन आया. एलेक्जेंडर, जो पीवी नरसिम्हा राव के करीबी सहयोगी थे, ने आग्रह किया कि वे मनमोहन सिंह को जगाएं. हालांकि, मनमोहन सिंह ने इस कॉल को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया.
अगली सुबह 21 जून 1991 को, जब मनमोहन सिंह यूजीसी कार्यालय में थे, उन्हें घर जाने और कपड़े बदलकर तत्काल शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने का संदेश मिला. बाद में यह स्पष्ट हुआ कि उन्हें वित्त मंत्री के रूप में शपथ लेनी थी. अपनी आत्मकथा “Strictly Personal, Manmohan & Gursharan” में इस घटना का उल्लेख करते हुए उन्होंने लिखा, “यह सभी के लिए अप्रत्याशित था जब मुझे नए मंत्रिमंडल में शामिल होते हुए देखा गया. बाद में मेरी मंत्रालय की जिम्मेदारी तय हुई, लेकिन नरसिम्हा राव जी ने सीधे कहा कि मैं वित्त मंत्री बनने जा रहा हूं.”
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इस नियुक्ति ने भारत की आर्थिक दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 2500 करोड़ रुपये तक गिर चुका था, वर्ल्ड बैंक ने ऋण देने से मना कर दिया था, और महंगाई अपने चरम पर थी. ऐसे में मनमोहन सिंह का वित्त मंत्री बनना भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास का एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ.
1991 में, मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री का कार्यभार संभालने के बाद भारत की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए ऐतिहासिक कदम उठाए. उन्होंने मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाने के साथ निर्यात से जुड़े कई प्रतिबंधों को समाप्त किया. इन सुधारों ने विदेशी निवेशकों के लिए भारत के द्वार खोल दिए और विभिन्न क्षेत्रों में सरकारी एकाधिकार का अंत किया. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में निजीकरण की प्रक्रिया शुरू करके देश में आर्थिक उदारीकरण की नींव रखी गई.
24 जुलाई 1991 को, मनमोहन सिंह ने अपना पहला बजट पेश किया, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ. इस बजट में सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) की स्थापना का प्रावधान किया गया, जिससे भारतीय कंपनियों के लिए पूंजी जुटाने की प्रक्रिया सरल हो गई. इसके साथ ही, वित्तीय क्षेत्र के लिए एक नई समिति का गठन किया गया, जिसने भविष्य के आर्थिक सुधारों की रणनीति तैयार करने में अहम भूमिका निभाई. बजट में सरकारी खर्चों में कटौती और वित्तीय अनुशासन लागू करने पर भी जोर दिया गया.
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पीवी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की जोड़ी ने मिलकर 1991 के सुधारों के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दी. इन सुधारों ने भारत को एक मजबूत आर्थिक ताकत के रूप में उभरने में मदद की और देश को विकास के नए मार्ग पर अग्रसर किया.