-संजना गोयल-
2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ के श्रोताओं के लिए एक अनूठा सुझाव दिया था- मैंने सोचा था कि हम लोगों को विकलांग कहते हैं या जानते हैं क्योंकि उनके शरीर की संरचना में कुछ कमी है या जिनके अंग सही से काम नहीं करते हैं. हालांकि, जब हम उनके साथ बातचीत करते हैं, तो हमें पता चलता है कि … भगवान ने उन्हें कुछ अलग शक्ति प्रदान की है जिसे हम अपनी आंखों से नहीं देख सकते हैं, लेकिन जब हम उन्हें काम करते हुए देखते हैं तो हमें उनकी प्रतिभा का एहसास होता है. इसलिए, मैंने सोचा कि क्यों न हमारे देश में ‘विकलांग’ की बजाय ‘दिव्यांग’ शब्द का इस्तेमाल किया जाये.
यह अक्षमता के क्षेत्र में समावेशिता और पहुंच की दिशा में एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण की शुरुआत थी और मैं विश्वास के साथ कह सकती हूं कि यह इस माध्यम की शक्ति है, जिसे प्रधानमंत्री ने महसूस किया है और आत्मसात किया है. इस क्षेत्र के साथ मेरे तीन दशकों से अधिक के जुड़ाव और खुद व्हील चेयर पर होने के कारण, मैंने देखा है कि जब दिव्यांगजनों की बात आती है तो राष्ट्र के सामने कुछ गंभीर चुनौतियां होती हैं, जिनमें से तीन – अनुत्पादकता, शिक्षा और पहुंच सबसे महत्वपूर्ण हैं. हालांकि, पिछले एक दशक में, हमारे प्रधानमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व में देश में एक आदर्श बदलाव देखा गया है. ‘सबका साथ, सबका विकास’ की दृष्टि से, 3 दिसंबर, 2015 को सुगम्य भारत अभियान का शुभारंभ, विकलांग व्यक्तियों को जीवन के सभी पहलुओं में स्वतंत्र रूप से भाग लेने के लिए समान अवसर प्रदान करने की दिशा में उठाया गया एक आवश्यक कदम था.
लेकिन सरकार की इस नीति के साथ-साथ, ऐसे लोगों के इर्द-गिर्द की कहानी में बदलाव की पहल करना भी उतना ही आवश्यक था या जैसा कि मैं इसे ‘व्यवहार परिवर्तन के लिए जन समर्थन’ कहना चाहती हूं. उस रेडियो संबोधन के सात साल बाद आज समाज में विकलांग व्यक्तियों के प्रति लोगों के नजरिए में बदलाव साफ नजर आ रहा है. ‘मन की बात’ हमारे प्रधानमंत्री को सीधे जनता से जोड़ती है जहां वे इस मुद्दे पर विस्तार से बोलते हैं और इससे व्यक्तियों और संगठनों को अपने-अपने क्षेत्रों में अधिक काम करने की ऊर्जा मिलती है. इसने सभी क्षेत्रों में विकलांग व्यक्तियों के बारे में सार्वजनिक धारणा को बदलने में मदद की है, चाहे वह मीडिया, शिक्षा या खेल हो, जिसके लिए कई पैरालंपियनों ने प्रधानमंत्री को धन्यवाद भी दिया है.
नवप्रवर्तन के लिए विचारों को आमंत्रित करने से लेकर, जो दिव्यांगजनों को उनके लिए मौजूदा पहल और नीतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद कर सकते हैं, प्रधानमंत्री इस महत्वपूर्ण विषय पर प्रकाश डालने के लिए अक्सर ‘मन की बात’ के मंच का उपयोग करते हैं. यहां तक कि देश में की जा रही छोटी से छोटी अभिनव और प्रेरक पहल को भी उनके द्वारा अपने रेडियो संबोधन में सामने लाया जाता है. उदाहरण के लिए मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का उदाहरण लें, एक वंशानुगत विकार जो मांसपेशियों के द्रव्यमान के क्रमिक नुकसान का कारण बनता है, जिसे 27 नवंबर, 2022 को प्रसारित ‘मन की बात’ के 95वें एपिसोड में हाइलाइट किया गया था, जहां प्रधानमंत्री ने हमारे संस्थान इंडियन एसोसिएशन ऑफ मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के बारे में बात की थी जिसने बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने में अद्भुत काम किया था. हालांकि अभी लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन विकलांग व्यक्तियों के जीवन और अधिकारों में नयी दिलचस्पी हमें सफलता की नयी ऊंचाइयों तक ले जायेगी.
यह परिवर्तनकारी ‘मन की बात’ कार्यक्रम 30 अप्रैल, 2023 को 100 एपिसोड के एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर पहुंच रहा है. मुझे उम्मीद है कि यह मंच आने वाले समय में भी समावेशी भारत के सपने को साकार करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनेगा. कुछ महत्वपूर्ण विषय जिनमें अधिक जागरूकता की आवश्यकता है, वे हैं ‘यूनिवर्सल डिजाइन’ ताकि दिव्यांगजनों तक पहुंच बढ़ाई जा सके, कार्यस्थल में दिव्यांगजनों के लिए एक समान अवसर बनाने के लिए ‘समुचित समायोजन’ का दृष्टिकोण, और संभावित स्टार्टअप और इनोवेटर्स के लिए बाजार पहुंच के पर्याप्त अवसर को बढ़ावा देना सहायक टच (एटी) क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए इसकी मांग बढ़ रही है.
‘एक पृथ्वी – एक परिवार – एक भविष्य’ विषय के साथ जी20 में भारत की अध्यक्षता प्रगति और विकास के आसपास की चर्चाओं में विकलांग व्यक्तियों को शामिल करने को प्राथमिकता देने का अवसर प्रस्तुत करती है. यह भारत को समावेशिता और पहुंच को बढ़ावा देने में एक वैश्विक पथ प्रदर्शक के रूप में स्थापित करेगा, क्योंकि अपनी शताब्दी वर्ष की ओर अग्रसर भारत के लिए यह एक महान लक्ष्य है. इसके लिए, यह सुझाव दिया जाता है कि साल भर चलने वाले अभियान को लागू किया जाये, जिसमें हर महीने की 11 तारीख को ‘विकलांगता के लिए विशेष दिन’ के रूप में नामित किया जाता है. यह दिन विकलांग व्यक्तियों को नौकरियों की पेशकश, साहस और पहल की कहानियों को साझा करने और इस विचार को शुरू करने के लिए ‘मन की बातद का बेहतर मंच के रूप में जश्न मनाने और समर्थन करने का अवसर होगा. सांकेतिक तिथि के रूप में 11 का चुनाव इस अवधारणा को दर्शाता है कि छोटे प्रयास जब संयुक्त होते हैं तो महत्वपूर्ण परिणाम प्राप्त कर सकते हैं. इस प्रकार, विकलांगता अधिकारों और समावेशन को बढ़ावा देने के लिए हर योगदान मूल्यवान है और इसे स्वीकार किया जाना चाहिए.
मैं ‘मन की बात’ की आगामी 100वीं कड़ी और राष्ट्रीय महत्व के विभिन्न मुद्दों पर हमारे प्रधानमंत्री के ज्ञान के शब्दों को सुनने के लिए उत्सुक हूं. मुझे विश्वास है कि सरकार द्वारा हम सबमें ‘कर सकते हैं की भावना जगाने वाले कदमों की चर्चा ‘मन की बात’ में और उसके माध्यम से होती रहेगी, ताकि पूरा देश समावेशी भारत के निर्माण के लिए उत्साह, प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए ‘पंच प्राण’ को पूरा करते हुए, इससे ओत-प्रोत हो सके, क्योंकि हम ‘अमृत काल’ में प्रवेश कर चुके हैं.
(लेखिका इंडियन एसोसिएशन ऑफ मस्कुलर डिस्ट्रॉफी की अध्यक्ष हैं)