मराठा आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि 50 फीसद तय आरक्षण सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने इस मामले पर आज सुनवाई करते हुए स्पष्ट कर दिया कि इंदिरा साहनी केस पर आया फैसला सही है, इसलिए उसपर पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं है.
Supreme Court's five-judge Constitution bench starts pronouncing its judgment on petitions challenging the constitutional validity of a Maharashtra law that grants reservation to the Maratha community in education and jobs pic.twitter.com/aIh3GGcljc
— ANI (@ANI) May 5, 2021
ध्यान रहे कि मराठा आरक्षण को लेकर खूब बवाल मचा था.राज्य सरकार ने इस पर फैसला लेते हुए आरक्षण का ऐलान किया था. बंबई उच्च न्यायाल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी. बंबई हाई कोर्ट ने शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा था.
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इस मामले पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा, 50% आरक्षण की सीमा लांघी नहीं जा सकती है. ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च को ही अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. आज इस इस मामले पर फैसला दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने 1992 के इंदिरा साहनी फैसले (इसे मंडल फैसला भी कहा जाता है) पर बड़ी पीठ द्वारा पुनर्विचार करने की जरूरत है, जिसमें आरक्षण की सीमा 50 फीसदी निर्धारित की गई थी. कोर्ट ने इस पर फैसला लिया कि इस पर और सुनवाई की जरूरत नहीं है. संविधान की धारा 342ए के तहत तो हमने संविधान संसोधन को बरकरार रखा है और यह किसी संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है.
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ध्यान रहे कि बंबई हाई कोर्ट ने जून 2019 में कानून को बरकरार रखते हुए कहा था कि 16 फीसदी आरक्षण उचित नहीं माना था और कहा था कि रोजगार में आरक्षण 12 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की ओर से दलील दी गई है कि महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को रिजर्वेशन देने का फैसला संवैधानिक है और संविधान के 102 वें संशोधन से राज्य के विधायी अधिकार खत्म नहीं होता है.