नई दिल्ली : भारत में छह अगस्त को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष की साझा उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा ने मंगलवार को अपना नामांकन दाखिल कर दिया है. इससे पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के प्रत्याशी जगदीप धनखड़ ने सोमवार को अपना पर्चा दाखिल कर दिया था. मीडिया की रिपोर्ट की मानें तो उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए जगदीप धनखड़ को एनडीए का प्रत्याशी बनाकर भाजपा देश के जाट समुदाय के साधने के साथ ही कई निशाने भी साध लिये हैं. वहीं, विपक्ष की ओर से मार्गरेट अल्वा को उम्मीदवार बनाकर संयुक्त प्रगतिशील गठनबंधन (यूपीए) ने भाजपा के खिलाफ अपनी एकजुटता और मजबूती को प्रदर्शित करने की कोशिश की है. माना यह भी जा रहा है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के प्रत्याशी जगदीप धनखड़ की जीत पक्की है. आइए जानते हैं कि इस चुनाव में कौन किस पर कितना भारी है.
उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल रोल 775 सदस्यों का है. इसमें लोकसभा के 543 और राज्यसभा के 232 सदस्य शामिल हैं. हाल में हुए द्विवार्षिक चुनावों में भाजपा को तीन सीटों का नुकसान हुआ और 1 जुलाई को उच्च सदन राज्यसभा में उसके सदस्यों की संख्या घटकर 92 सांसदों की रह गई. वहीं निम्न सदन लोकसभा में उसके पास बहुमत है. हाल में यूपी के उपचुनावों में भाजपा ने दोनों सीटें झटक लीं और अब लोकसभा में उसकी संख्या 303 पहुंच गई है. इस प्रकार, उपराष्ट्रपति चुनाव में भाजपा के कुल सांसदों की संख्या की बात करें तो उसे पास 395 सांसद या वोट हैं, जबकि उपराष्ट्रपति चुनाव में जीत का जादुई आंकड़ा 388 मतों का है.
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाना गांव के किसान परिवार में जन्म लिये हैं. बताया जाता है कि उनकी किसानों के बीच बड़ी पैठ है और वे सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील और राजनेता रहे हैं. जगदीप धनखड़ हरियाणा के किसान नेता के रूप में प्रसिद्ध चौधरी देवीलाल के करीबी रहे हैं और अपने समय के अधिकांश जाट नेताओं की तरह धनखड़ भी मूल रूप से देवीलाल से जुड़े हुए थे. जगदीप धनखड़ को देवीलाल ने उन्हें 1989 में कांग्रेस का गढ़ रहे झुंझुनू संसदीय क्षेत्र से विपक्षी उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा था. इस चुनाव में जगदीप धनखड़ ने जीत दर्ज की थी.
भारत में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी, तब हरियाणा के जगदीप धनखड़ की जनता दल में भी काफी धाक था. खास बात यह है कि जगदीप धनखड़ भाजपा या आरएसएस की मूल विचारधारा से नहीं आते, बल्कि किसान राजनीति से आते हैं. वह संवैधानिक पदों पर रहकर चुप रहने वाले नेता नहीं, बल्कि अहम मुद्दों पर अपनी टिप्पणी देने वाले नेता के तौर पर जाने जाते हैं. साल 1989 में धनखड़ भाजपा के समर्थन से जनता दल के टिकट पर झुंझुनू से लोकसभा से चुनाव जीते थे और पहली बार संसद पहुंचे थे. वे केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे थे. जनता दल के विभाजन के बाद वो देवेगौड़ा के खेमे में चले गए थे और जनता दल से टिकट नहीं मिलने पर वो बाद में कांग्रेस में चले गए. उन्होंने अजमेर से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. साल 2003 में भाजपा में शामिल हो गए.
मार्गरेट अल्वा का जन्म 14 अप्रैल 1942 को मैंगलूर के पास्कल एम्ब्रोस नजारेथ और एलिजाबेथ नजारेथ के यहां हुआ. अल्वा को अपनी पढ़ाई आगे बढ़ाने के लिए बंगलौर ले जाया गया, जहां माउंट कार्मेल कॉलेज और राजकीय ला कॉलेज में इनकी शिक्षा-दीक्षा हुई. 24 मई 1964 में उनकी शादी निरंजन अल्वा से हुई. उनकी एक बेटी और तीन बेटे हैं. दोनों बेटे क्रमश: निरेत अल्वा और निखिल अल्वा ने मिलकर 1992 में मेडिटेक नमक कंपनी की स्थापना की, जो कि एक टेलीविज़न सॉफ्टवेयर कंपनी है. निरंजन अल्वा स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी और भारतीय संसद की पहली जोड़ी जोकिम अल्वा और वायलेट अल्वा के पुत्र हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि मार्गरेट अल्वा राजस्थान की राज्यपाल चुकी हैं. इतना ही नहीं मारगेट अल्वा ने 6 अगस्त 2009 से 14 मई 2012 तक उत्तराखंड की पहली महिला राज्यपाल के रूप में कार्य किया. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक वरिष्ठ सदस्य और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की आम सचिव हैं. वे मर्सी रवि अवॉर्ड से सम्मानित हैं.
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इतना ही नहीं, मार्गरेट अल्वा कांग्रेस पार्टी की महासचिव रहने और तेजस्वी सांसद के रूप में पांच पारियां (1974 से 2004) खेल चुकने के साथ-साथ केन्द्र सरकार में चार बार महत्वपूर्ण महकमों की राज्यमंत्री रहीं. एक सांसद के रूप में उन्होंने महिला-कल्याण के कई कानून पास कराने में अपनी प्रभावी भूमिका अदा की. महिला सशक्तिकरण संबंधी नीतियों का ब्लू प्रिन्ट बनाने और उसे केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा स्वीकार कराये जाने की प्रक्रिया में उनका मूल्यवान योगदान रहा. केवल देश में में ही नहीं, समुद्र पार भी उन्होंने मानव-स्वतन्त्रता और महिला-हितों के अनुष्ठानों में अपनी बौद्धिक आहुति दी. दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति ने तो उन्हें वहाँ के स्वाधीनता संग्राम में रंगभेद के खिलाफ लड़ाई लड़ने में अपना समर्थन देने के लिए राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया. वे संसद की अनेक समितियों में रहने के साथ-साथ राज्य सभा के सभापति के पैनल में भी रहीं.