जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) में पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) का कुनबा बिखर रहा है. अनुच्छेद 370 और 35 ए हटाए जाने के बाद से महबूबा के दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का आधार हिल गया है. पार्टी के तमाम कद्दावर नेता किनारा करने लगे हैं. स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद द्वारा बनाई गई इस पार्टी ने कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस को चुनौती दी थी लेकिन अब पीडीपी का वजूद खतरे में है. महबूबा को हर मोड़ पर नेशनल कांफ्रेंस के सहारे की जरुरत पड़ने लगी है.
महबूबा के तिरंगे के बारे में दिए गए बयान के बाद पीडीपी के तीन बड़े नेताओं और संस्थापक सदस्यों के त्यागपत्र से पीडीपी को भारी झटका लगा है. तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी ये पार्टी के साथ जुड़े रहे थे. इससे पहले पूर्व मंत्री चौधरी जुल्फकार अली भी पार्टी का साथ छोड़ जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी का दामन थाम चुके हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद जब पीडीपी से एक-एक कर पूर्व विधायक व मंत्री अलग होने लगे तब भी जम्मू के नेताओं ने उनका साथ दिया लेकिन अब जम्मू में पार्टी का आधार हिल गया है. 2014 के चुनाव के बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में विपरीत विचारधारा वाली पार्टी भाजपा के साथ मिलकर सरकार का गठन किया गया. पीडीपी के नाराज नेताओं का कहना है कि मुफ्ती के असामयिक निधनके बाद से पार्टी पटरी से उतर गई.
पीडीपी, गुपकर एलायंस जम्मू कश्मीर में चुनाव लड़ने पर लेगा अंतिम निर्णय: पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने पिछले दिनों कहा कि उनकी पार्टी और हाल ही बने ‘पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकर डिक्लेयरेशन’ साथ मिल कर निर्णय करेंगे कि केंद्र शासित क्षेत्र में चुनाव लड़ना है अथवा नहीं. जम्मू कश्मीर की मुख्यधारा की पार्टियों ने पूर्ववर्ती राज्य का विशेष दर्जा बहाल कराने और इस मुद्दे पर सभी पक्षकारों से बातचीत के लिए 15 अक्टूबर को गुपकर एलायंस का गठन किया है. जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को पिछले वर्ष अगस्त में समाप्त किए जाने के बाद से महबूबा हिरासत में थीं. रिहा होने के बाद पहली बार मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि पूर्व राज्य का झंडा और संविधान बहाल होने तक उन्हें व्यक्तिगत तौर पर चुनाव लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं है.
Posted By : Amitabh Kumar