महबूबा की पीडीपी ने फिर अलापा अनुच्छेद-370 का राग, परिसीमन की किसी भी कार्यवाही में शामिल होने से किया इनकार
मंगलवार को जस्टिस देसाई को लिखी चिट्ठी में पीडीपी ने कहा है कि परिसीमन आयोग के पास संवैधानिक और कानूनी जनादेश नहीं है. इस परिसीमन के जरिए जम्मू-कश्मीर के लोगों के राजनीतिक तौर पर कमजोर करने के मद्देनजर वह किसी भी कार्यवाही में शामिल नहीं होगी.
नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर में करीब दो दशक बाद एक बार फिर नए तरीके से परिसीमन किया जा रहा है. इसी प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही सूबे की सियासत पूरी तरह गरमा गई है. इस बीच, खबर यह है कि राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने अनुच्छेद-370 का राग दोबारा अलापते हुए परिसीमन आयोग की किसी भी कार्यवाही में शामिल होने से इनकार कर दिया है. इस बाबत पीडीपी ने परिसीमन आयोग की अध्यक्ष जस्टिस (रिटायर्ड) रंजना प्रकाश देसाई को चिट्ठी लिखकर किसी भी कार्यवाही से दूर ही रहने की बात कही है.
मंगलवार को जस्टिस देसाई को लिखी चिट्ठी में पीडीपी ने कहा है कि परिसीमन आयोग के पास संवैधानिक और कानूनी जनादेश नहीं है. इस परिसीमन के जरिए जम्मू-कश्मीर के लोगों के राजनीतिक तौर पर कमजोर करने के मद्देनजर वह किसी भी कार्यवाही में शामिल नहीं होगी.
जस्टिस देसाई को लिखे दो पन्नों की चिट्ठी में पीडीपी के महासचिव गुलाम नबी लोन हंजूरा ने कहा है कि उनकी पार्टी परिसीमन की कार्यवाही से दूर रहने का फैसला किया है. वह ऐसी किसी भी कार्यवाही में शामिल नहीं होगी, जिसके नतीजे व्यापक तौर पर पूर्व नियोजित माने जा रहे हों, जिससे सूबे के लोगों के हित प्रभावित हो सकते हों.
स्पेशल स्टेटस वापस लेकर छीना गया लोकतांत्रिक अधिकार
अपनी चिट्ठी में हंजूरा ने लिखा है कि 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से स्पेशल स्टेटस को वापस लेकर उसे दो केंद्र शासित प्रदेश में बांट दिया. उन्होंने लिखा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-370 को अवैध और असंवैधानिक तरीके से वापस कर दिया गया और जम्मू-कश्मीर के लोगों को उनके वैधानिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया.
पार्टी विशेष के फायदे के लिए परिसीमन
हंजूरा ने अपनी चिट्ठी में अपना मत जाहिर करते हुए कहा कि परिसीमन आयोग के पास संवैधानिक और कानूनी जनादेश की कमी है. इसके अस्तित्व तथा उद्देश्यों ने जम्मू-कश्मीर के लोगों को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है. पीडीपी ने आरोप लगाया कि इस परिसीमन का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर में एक विशेष पार्टी के उद्देश्यों को साकार करना है. दूसरे चीजों की तरह लोगों के विचारों और इच्छाओं को सबसे कम तवज्जो दी जाएगी.
सवालों के घेरे में है हरेक कदम
पार्टी ने कहा कि व्यापक रूप से ऐसा माना जा रहा है कि इस कार्यवाही की रूपरेखा और परिणाम पहले से निर्धारित है और यह महज औपचारिकता भर है. हरेक कदम सवालों के घेरे में है. पीडीपी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोगों के इतने अपमान, संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकारों को कम करने, राजनीतिक नेतृत्व, आम नागरिकों की बदनामी करने और उन्हें कैद में रखने के बावजूद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 जून को सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, हम उसमें शामिल हुए.
1995 में आखिरी बार हुआ था परिसीमन
बता दें कि जम्मू-कश्मीर में आखिरी दफा वर्ष 1995 में परिसीमन हुआ था. 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के पारित होने के बाद इस राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पुनर्गठित कर दिया गया. लद्दाख के अलग होने के बाद जम्मू-कश्मीर में 107 विधानसभा सीटें रह गई हैं. इनमें 24 गुलाम कश्मीर के लिए आरक्षित हैं. 46 कश्मीर और 37 सीटें जम्मू संभाग में हैं. इन सीटों में सिर्फ सात सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं और यह सिर्फ जम्मू संभाग के हिंदू बाहुल्य इलाकों में ही हैं.
Posted by : Vishwat Sen