Mewar Royal Family Dispute: क्या है मेवाड़ राजपरिवार का विवाद? विश्वराज सिंह को मिली धूनी दर्शन की अनुमति
Mewar Royal Family Dispute: मेवाड़ के 77वें महाराणा विश्वराज सिंह मेवाड़ को भारी विवाद के बाद बुधवार को पांच लोगों के साथ महल के अंदर धूनी दर्शन की अनुमति मिल गई.
Mewar Royal Family Dispute: मेवाड़ राजपरिवार विवाद के बीच विश्वराज सिंह मेवाड़ समेत 5 लोगों को महल के अंदर धूनी दर्शन की अनुमति दी गई. दर्शन के बाद राज्याभिषेक की प्रक्रिया पूरी हो गई. धूनी दर्शन के बाद मेवाड़ के नव-महाराणा विश्वराज सिंह मेवाड़ ने कहा, एक तरफ हम दर्शन से संतुष्ट हैं, वहीं दूसरी तरफ हम सोच रहे हैं कि अगर हम यह सब बिना किसी परेशानी के कर लेते तो बेहतर होता. कानूनी कार्यवाही चल रही है. मैं समर्थकों का शुक्रगुजार हूं और मैंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है.
Mewar Royal Family Dispute: महाराणा विश्वराज सिंह मेवाड़ को सिटी पैलेस में धूनी दर्शन के लिए नहीं मिली थी इजाजत
राजसमंद से भाजपा विधायक और मेवाड़ के नव-विरासित महाराणा विश्वराज सिंह मेवाड़ और उनके समर्थकों को महल में प्रवेश करने से रोक दिया गया था. जिसके बाद सिटी पैलेस के बाहर विश्वराज अपने समर्थकों के साथ डेरा डाल दिया था. विश्वराज सिंह के समर्थकों का सिटी पैलेस के प्रतिनिधियों के साथ झड़प और बाद में पथराव भी हुआ था. इस बीच जिला प्रशासन लगातार स्थिति को कंट्रोल में करने की कोशिश कर रहा था.
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विश्वराज सिंह मेवाड़ का चचेरे भाई लक्ष्य और चाचा अरविंद से गतिरोध
मेवाड़ के 77वें महाराणा विश्वराज सिंह मेवाड़ का राज्याभिषेक के बाद अपने चचेरे भाई डॉ लक्ष्य राज सिंह मेवाड़ और चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ के साथ गतिरोध हुआ.
खून से राजतिलक की अनोखी परंपरा
जब मेवाड़ के 77वें महाराणा विश्वराज सिंह मेवाड़ को फतेह प्रकाश महल की राजगद्दी पर बैठाया गया, तो उन्हें खून से राजतिलक किया गया. यह परंपरा बहुत पुरानी है. जिसे सलूंबर ठिकानेदार पूरा करते हैं. राज्याभिषेक के बाद मेवाड़ के शासक को एकलिंगजी महादेव मंदिर में दर्शन करने जाना पड़ता है. क्योंकि शासक खुद को एकलिंगनाथ जी का दीवान मानते हैं.
क्या है मेवाड़ राजपरिवार का विवाद?
मेवाड़ राजपरिवार का विवाद बहुत पुराना है. 1955 में जब भगवंत सिंह महाराणा बने, तो उन्होंने पैतृक संपत्ती को बेचना और लीज पर देना शुरू कर दिया. जिसका विरोध उनके बड़े बेटे महेंद्र सिंह ने की. महेंद्र सिंह ने अपने पिता के खिलाफ केस कर दिया और संपत्ती को हिंदू उत्तरााधिकारी कानून के तहत बांटने की मांग की. जिसके बाद भगवंत सिंह ने 15 मई 1984 को अपनी वसीयत तैयार की और छोटे बेटे अरविंद सिंह को संपत्ति का एग्जीक्यूटर बनाया. साथ ही उन्होंने अपने बड़े बेटे अरविंद सिंह को संपत्ति से बेदल कर दिया. हालांकि उसी साल उनका निधन हो गया. उसके बाद छोटे बेटे अरविंद सिंह ने मेवाड़ पर अपना कब्जा कर लिया. उसी के बाद विवाद शुरू हो गया.