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‘एनसीईआरटी के सिलेबस से हटाया नहीं गया है डार्विन का सिद्धांत, अब केवल 12वीं में पढ़ाया जाएगा पाठ’

शिक्षा राज्य मंत्री ने डॉ सुभाष सरकार ने कहा कि डार्विन के सिद्धांत को एनसीईआरटी के सिलेबस से हटाने का दावा भ्रामक है. उन्होंने कहा कि जब कोरोनाकाल से छात्रों पर पढ़ाई का बोझ कम करने की बात की जा रही है. इसी सिलसिले में सिलेबस का सरलीकरण किया जा रहा है.

नई दिल्ली : राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के सिलेबस से डार्विन के मानव विकास सिद्धांत के पाठ को हटाए जाने को लेकर भारत भर में छिड़ी बहस के बीच केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री डॉ सुभाष सरकार ने अपनी सफाई दी है. मीडिया से बातचीत के दौरान शनिवार को उन्होंने कहा कि डार्विन के सिद्धांत को एनसीईआरटी के सिलेबस से हटाया नहीं गया है, बल्कि अब इससे संबंधित पाठ केवल 12वीं कक्षा के छात्रों को पढ़ाया जाएगा.

पढ़ाई का बोझ किया जा रहा है कम

समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत के दौरान शिक्षा राज्य मंत्री ने डॉ सुभाष सरकार ने कहा कि डार्विन के सिद्धांत को एनसीईआरटी के सिलेबस से हटाने का दावा भ्रामक है. उन्होंने कहा कि जब कोरोनाकाल से छात्रों पर पढ़ाई का बोझ कम करने की बात की जा रही है. इसी सिलसिले में सिलेबस का सरलीकरण किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि अगर 10वीं कक्षा का कोई छात्र डार्विन के सिद्धांत को पढ़ना चाहता है, तो वह पढ़ सकता है, लेकिन 12वीं कक्षा के सिलेबस में डार्विन का सिद्धांत अब भी मौजूद है और इसका पाठी 12वीं कक्षा के छात्रों को पढ़ाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इस तरह के भ्रामक दावे नहीं किए जाने चाहिए.

9वीं-10वीं कक्षा से हटाया गया डार्विन का सिद्धांत

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, एनसीईआरटी ने 9वीं और 10वीं कक्षा के सिलेबस से दुनिया के महान वैज्ञानिक चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को हटा दिया है. बता दें कि भारतीय शिक्षा प्रणाली के तहत निचली कक्षाओं से ही डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत के जरिए बच्चों को यह बताया जाता रहा है कि लाखों वर्षों के बदलावों के बाद बंदरों की प्रजाति से मानव का विकास हुआ है. यह दुनिया के महान वैज्ञानिक चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन का ही शोध निष्कर्ष है कि धरती पर मौजूद सभी जीव एक ही प्रजाति की उत्पत्ति हैं. डार्विन के सिद्धांत में यह दर्शाया गया है कि भौगोलिक और वातारणीय परिस्थितियों में ढल जाने की प्रवृत्ति ने जैव विविधता को जन्म दिया और नई-नई प्रजातियां बनती चली गईं. अब जबकि एनसीईआरटी ने निचली कक्षाओं से डार्विन के सिद्धांत को हटाने का फैसला किया है, तो शिक्षकों को इस बात की चिंता है कि छात्रों को मानव विकास की यात्रा का ज्ञान कैसे मिलेगा?

निचली कक्षाओं से ही बच्चों को क्यों दिया जाता है विशेष ज्ञान

आपको बता दें कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था के तहत स्कूली छात्रों को निचली कक्षा से ही विशेष ज्ञान देने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. निचली कक्षाओं से ही विशेष ज्ञान का सरलीकरण करके बाल सुलभ बनाया जाता है और उसकी पढ़ाई सरल-सुबोध पाठ के तौर पर बच्चों को पढ़ाया जाता है. शिक्षकों की मानें, तो चाहे वह हिंदी-अंग्रेजी साहित्य हो, विज्ञान, भूगोल, नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र या कोई भी विषय हो, बच्चों को निचली कक्षाओं से ही सरल-सुबोध तरीके से ज्ञान देने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.

ऊंची कक्षाओं में छात्रों की बढ़ेगी परेशानी

उनका कहना है कि अर्थशास्त्र में माल्थस का सिद्धांत ‘प्रिंसपल ऑफ पॉपुलेशन’ या अर्थशास्त्री अल्फ्रेड मार्शल के पूर्ति और मांग का सिद्धांत भी निचली कक्षाओं से ही पढ़ाया जाता है. इसी प्रकार, डार्विन का सिद्धांत भी निचली कक्षाओं से पढ़ाया जाता है, ताकि ऊंची कक्षाओं में जाने के बाद उन्हें इन सिद्धांतों या विशेष ज्ञान को समझने में सहूलियत हो. उनका कहना है कि ऐसे पाठों को जब निचली कक्षाओं से हटा दिया जाएगा, तो बच्चों को ऊंची कक्षाओं में इन सिद्धांतों से अचानक रूबरू होने के बाद उनकी परेशानी बढ़ जाएगी.

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छात्रों के भविष्य के लिए ठीक नहीं है 9वीं-10वीं से पाठ को हटाना

बात दें कि भारत में 9वीं और 10वीं में विज्ञान विषय में डार्विन के सिद्धांत को विस्तारपूर्वक पढ़ाया जाता रहा है. इसमें जीव की उत्पत्ति से लेकर इंसान बनने तक प्रक्रिया को बताया गया है. डार्विन की एवोल्यूशन थ्योरी आज भी सर्वमान्य है. इस थ्योरी को सिलेबस से हटाने को लेकर विज्ञान शिक्षक भी हैरान हैं. शिक्षकों का कहना है कि डार्विन का यह सिद्धांत विज्ञान वर्ग के बच्चों के लिए काफी अहम है. विज्ञान विषय से इसे हटाना समझ से बाहर की चीज है. कोरोना के नाम पर एनसीईआरटी ने सिलेबस का बोझ कम करने के बहाने जो कदम उठा रहा है, वह छात्रों के भविष्य के हित में कतई नहीं है.

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